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Posts of 18 to 20 May 2020 Drisht kavi and Khari Khari

एक बूढ़ा बामन और दूसरा बूढ़ा गंजा - दोनो सोशल मीडिया पे फेल थे और साहित्य जगत में चुके हुए कवि सिद्ध हो चुके थे, अब या तो ये नगदी पुरस्कार की राह देखते या कार से ला - ले जाने वाला कवि गोष्ठी का आयोजन तलाशते - बस दोनो को हाथ फेरने को कोई तो चाहिये था साथ ही जो इनके सड़े गले फ़ासीवादी विचारों को मंच पर बोल सकें या जाति, वर्ग संघर्ष के ख़िलाफ़ उगल सकें
एक अश्लील रात को अद्दी पीकर दोनो ने फोन मिलाएं और ताल तलैया किनारे नाव में सवारी करते तय किया कि नए उभरते एक युवा कवि को पुचकारने का ठेका लिया जाये - युवा भी झांसे में आ गया और फिर कहानियों के किस्से चालू हुए जगत में
इधर दोनो कान भरते और उधर वो माउथ पीस बना आग उगलता - साहित्य की गलीज दुनिया ही ऐसी थी - यही हाल मीडिया का था
कुल मिलाकर कुदृष्टि रखने वाले दांत टूटे बूढ़े और गंजे होते जा रहे कवियों को, वरिष्ठ पत्रकारों को सूचना तकनीकी, सोशल मीडिया में दक्ष, भाषा के कौशल से पूर्ण, जान पे खेलने वाले खिलाड़ी लौंडे चाहिये थे - जो सदियों से उपेक्षित थे और नाम, यश जल्दी कमाकर बेताज बादशाह बनने का ख्वाब देखते थे, ये युवा तुर्क कठपुतली बनकर इनके मैदान में हू तू तू - हू तू तू खेल कर असमय मरना चाहते थे
कवियित्रियों के लिए रोज एक मुर्गा या बकरा मारने का अभियान हैश टैग के रूप में जारी था ही
हिंदी साहित्य के इतिहास में लिखा जाएगा कि " कोरोना काल में चोट खाये उपेक्षित बूढ़े कोरोना से नही बल्कि उपेक्षा और कही ना बुलाये जाने से संक्रमित होकर मरें "
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" आपकी वाल कल देखी " - कविता पर कमेंट्स देखें , कवियत्री बोली
" जी, आभार आपका, कविताएँ कैसी लगी आपको " कवि का खून बढ़ गया था - पांच लीटर
"कविता तो पढ़ी नही, पर ये बताईये हर कमेंट्स का जवाब 3 - 4 जवाबों में क्यों देते, हर लाईक वाले को अलग - अलग धन्यवाद देते है - डाक्टर ने बोला है क्या कि हर पोस्ट पर कमेंट्स का 300 - 500 का कोटा पूरा नही होगा तो किडनी फेल हो जाएगी या फेसबुक नौकरी है जो हर ऐरै गैरे के जवाब देना आपका संविधानिक कर्तव्य है और महिलाओं के कमेंट्स पर तो ऐसे टूट पड़ते हो आप कि जान ही ले लोगे उनकी " - कवियत्री हांफने लगी थी
कविराज का बीपी शूट कर गया था
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लोक मन संस्कार करना
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भारत मे सबसे बड़ी जाति अब मजदूर है जो अब 85 % नए दलित है - फिर उसमें भी विभाजन है - वर्ग वर्ण संकर और क्रीमी या नॉन क्रीमी लेयर्स का - बिहारी, उत्तर प्रदेशी, झारखंडी, छत्तीसगढ़िया, बुंदेलखंडी, प्रवासी, मुंबई -दिल्ली पलट, कोरोना वाहक, समाज का बोझ, पीडीएस खोर, मनरेगा के भुक्खड़ आदि - यही साले शहीद होंगे रोड पर और कल कारखानों में, यही सॉफ्ट टार्गेट है हमारा निर्माण कार्यों में और गृह कार्यों में - दबाओ ससुरों को हड़फ जाओ इनकी मजदूरी और जीवन भर की कमाई, मुसलमान - अब जमाती और तब्लीगी है - सिया सुन्नी नही
उसके बाद हवाई जहाजी मजदूर जो ब्रिटेन, खाड़ी, और अमेरिकन में क्रमशः बंटे हुए है
फिर है घर घुस्सू लोग - जिनमे बकलोल, पेटू, चन्दाखोर आदि, इनमें मायावती,वृंदा करात जैसे लोग भी है जो इसी में चित पावन ब्राह्मणों के समान उभरकर सामने आए पूरी बेशर्मी से
अंत में आते है भाषणवीर जो बिल्ली के गू है - लिपने के ना छाबने के, पर ये उपरोक्त सभी का हक खा रहे हैं
जैसे - जैसे कोरोना की नई प्रजाति बन रही है - वैसे ही हमारे समाज मे ये नई जातियां उभरी है - आप भी जोड़िए ताकि नए समाज के नव निर्माण में आपका नाम सुनहरे हर्फ़ों में लिखा जा सकें
आरक्षण को पुनर्परिभाषित कीजिये देश के निर्णायक गण - भारत भाग्य विधाता का नया गीत लिखिए - सुजलाम सुफलाम बदल गया है - नए राष्ट्रीय प्रतीक चीन्हिये हुजुरे आला , जेंडर - बुजुर्ग - बच्चों को निर्धारित कीजिये, पत्रकारों की नई बिरादरी को भी मान्यता देने के पैमाने बनाईये महाराज, हम सब पलक पाँवड़े बिछाये इंतज़ार कर रहें है मालिक
सब ज्ञानी है, सबको वैश्विक परिदृश्य की जबरदस्त समझ है - उंगलियों की टीप पर ग्लोब रखकर सब जीवित है और चिकित्सकीय कौशल और दक्षताओं से लबरेज़ है - पूरा देश एक है अब, सबको सब बातों का एक्सपोज़र है - सूचना, जानकारी और तकनीक से सब परिपूर्ण है सब बोलते है और पूरा देश चुप रहता है और सहता है - लोकतंत्र में स्वार्थ सिद्धि के नए प्रतिमान सबने देखें है - यह समाहार का विलक्षण समय है और हम मौत का क्रंदन करने के बजाय मन की बात सुनने को अभिशप्त है
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कभी लगता है जो जनसँख्या कम करने की बात करते है सही कहते है, हम अनियंत्रित बेकाबू हो गए है और घोर लापरवाह एवं बुरी तरह आश्रित, सबसे ज्यादा दोष सरकारों का रहा हमें गैर जिम्मेदार बनाने में - हर चीज हमें दे दी और निकम्मा बना दिया
दुर्भाग्य यह है कि हमारे पास राजनीतिज्ञ तो बहुतेरे है पर जनता का कोई जन नेता नही है जो कुछ कहे तो लोग उसकी बात मान लें - नतीजा सामने है कि पुलिस जैसी बर्बर व्यवस्था को आज मैदान सम्हालना पड़ रहा है
दूसरा, देश के तीनों महत्वपूर्ण स्तम्भों से दृष्टि, विजन, मिशन और प्लानिंग का नदारद हो जाना बहुत ही घातक सिद्ध हुआ और इस समय मे यह एकदम साफ हुआ है जब चहूँ ओर हाहाकार मचा है और मौत का तांडव अस्पतालों से सड़कों पर फैला हुआ है - एक कोई भी व्यवस्था अच्छी हो तो बता दें - शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी, पीडीएस, पेंशन, शोध -विकास, डेटा रखने की या कुछ भी
आजादी के 73 वर्षों बाद अब समझ आ रहा है कि भ्रष्टाचार ने कितने भीतर तक घात लगाकर पूरे देश , व्यवस्था, आधार भूत ढांचों और लोगों को बर्बाद कर दिया है - इसलिए सरकारी चपरासी बनने को भी पीएचडी होल्डर तैयार है और योग्य से योग्य भी रुपये, जुगाड़ या आरक्षण का सहारा लेकर इस भ्रष्ट तंत्र में जम जाना चाहता है ताकि एक व्यक्ति भी इसमें आ जाये तो कुटुंब पार हो सकें फिर
वोट की ताकत और वोट की कीमत के साथ वोट की औकात भी अब सबके सामने है
सकारात्मक रहना चाहिये पर अब इस देश का कुछ हो नही सकता और ना कुछ सम्भव है - आप सिर फोड़ सकते है बस
ऐसे जीवन से ना जीना बेहतर है
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एक सीढ़ी की तलाश में था और मिल गई आख़िर सड़क पर ही पड़ी थी
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एक कवि ने इनबॉक्स में कविता भेजी और बोला " अग्रज, प्रणाम, कविता पर प्रतिक्रिया दें और शेयर कर दें आपकी वाल पर, आपकी झांकी है, आप महान है "
मैंने कहा "ओ आह से उपजे पहले कवि, अमर आत्माओं के वागीश, रोमन में लिखी मैं नही पढ़ता - हिंदी में टाइप करके दें या औकात हो तो अंग्रेजी अनुवाद भेज बगैर गलती वाला तब पढूँगा "
कवि बोला - इसलिए तो आपको दी कि हिंदी में टाइप हो जाएगी
मैंने कहा कि - अबै निराला और मुक्तिबोध के हायब्रीड, तेरे कूँ एक हिंदी के पीजीटी का लिंक देता हूँ उसे आलोचना का शौक भी है और बापड़ा स्कूल में सालों से पड़े - पड़े कुंठित हो गया है - उसे भेज दो - वो टाइप भी कर देगा, प्रूफ भी पढ़ देगा और नही तो गूगल इंडिक डाउन लोड कर और हिंदी सीख लें गुरु
15 दिन से राह देख रहा हूँ उस हाइब्रीड की,आया नही अब्बी तक, लगता है फसल बर्बाद हो गई या कविता कला को इल्ली लग गई
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