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Posts from 13 to 18 May including We the Middle Class and other Drishta kavi

सुप्रीम कोर्ट को बता दो कि आज सुबह 24 मजदूर मर गए सड़क पर 53 वे दिन तक 600 मज़दूर मर गए है - किससे ज्यादा मरे लोग - कोरोना से या अव्यवस्था और कुप्रबंधन से सरकार के - कोई समझाओ जज साहब को
सरकार के साथ न्यायपालिका भी बेख़बर है , अदालतों में बैठे लोग अंधे हो गए क्या - दिख नही रहा इन्हें , कल उन न्यायाधीशों को शर्म नही आई कि वे मासूम बन रहे है, संविधान का अर्थ नही मालूम, हम सबके मौलिक अधिकारों का खुले आम उल्लंघन हो रहा, एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने के लिए अनुमति राज्य किस कानून के आधार पर तय कर रहें हैं, जज साहब आप लोग हो किस दुनिया मे
भाजपा के मोदी शाह और शिवराज को मप्र में सरकार खरीदने की हवस ना होती और नमस्ते ट्रम्प करने का शौक नही होता ना इस आदमी को तो कम से कम इतनी बर्बादी नही होती - 30 जनवरी को पहला केस आया था क्या किया, कोई दृष्टि नही - विजन नही - अपढ़ और कुपढ़ों से क्या उम्मीद कर सकते है
इन सारी मौतों की जवाबदेही कोरोना नही बल्कि इस सरकार की है और इस बात को याद रखा जाना चाहिये कि कैसे दो लोग पिछले 6 सालों से देश को हर मोर्चे पर बर्बाद कर रहें हैं
पर इन बेशर्मों को होश है कुछ - सबसे खराब, लापरवाह और निकम्मे है ये सब -धिक्कार क्यों ना हो इन पर
और राष्ट्रपति तो है ही स्टाम्प अपने यहाँ - और ये वाला तो वो ही लाये है जिसका होना ना होना कभी नज़र ही नही आया, जितनी भी इज्जत थी इस सरकार के कुछ कामों के लिए वह खत्म हो गई है और यह भी रेखांकित किये जाने की जरूरत है कि इस बड़बोले प्रधान की बात की भी अब इस देश मे इज्जत नही है - रोक सको तो रोक लो कोई - पुलिस भी डंडे मारकर अब थक गई है और लोग है कि मान नही रहें और अब ये लोग ना लौटेंगे शहरों को - आओ अम्बानी अडानी गेती फावड़ा लेकर मैदान में करो 200 रूपये रोज पर मजूरी दिहाड़ी
देश है या मजाक
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"जी नमस्ते, कैसी है आप "- कवि बोला - असल में तीन - चार दिन से फोन कर रहा था आपको, लगातार बंद ही बंद आ रहा था, आज अभी ट्राय किया तो लग गया
" कोई काम है आपको " - कवियत्री बोली
" जी नही , बस दो चार कविताओं पर सुझाव दे देती तो हंस, वागर्थ, पूर्वाग्रह, आजकल या जनमत आदि को भेज देता - आप कहें तो अभी सुना दूँ "
" सुन बै ओ कवि की दूम, फोन मेरा, रिचार्ज मैं अपने रुपये से करवाती हूँ, अपने व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए रखा है - मेरी मर्जी जब चल्लू रखूँ या बंद रखूँ - समझा और इन दिनों दुनिया छुट्टी पर है तो तेरी कविताएँ सुनेगा कौन - चल निकल, जास्ती टैंम खोटी मत कर - बड़ा आया फोन बंद था "
" जी, जी, जी - मैं कहीं और ट्राय करता हूँ "
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हे कवियों इतने भी कविता पाठ लाइव ना करें कि प्रतिरोधी इंजेक्शन बनने लगे और हर पैदा होने वाले को कविता से बचाव के टीके लगाना पड़े
फोकट में सब मिल रहा तो क्या कवि गोष्ठी भूल जाओगे - फिर लम्पटई , लिफ़ाफ़ा, लीलामृत और ज्यादा कविता सुनाने के लालच का क्या होगा प्रभु
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हार्ड वर्क वालों से विनम्र अनुरोध
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देश के प्रधान मंत्री से देश का अनुरोध है कि बहुत हो गया जनता को बेवकूफ बनाने का धन्धा, अब एक खुली पत्रकार वार्ता करें और उसके बाद देश से लाइव बात करें यदि हिम्मत है तो बगैर लिखें और किसी छंगू मंगू की मदद के मुद्दों पर बात करें - आर्थिक, सामाजिक, कल्याण, विकास और नीतियों पर
देखें तो सही कितनी समझ है देश, जनता, गरीबी, मजदूरों, नीतियों और विकास को लेकर, अपने 6 साल की उपलब्धियां बताओ और आगे का रोड मैप बताओ
हमेंशा नेहरू कांग्रेस को कोसकर खुद पीछे हो जाते हो, मन की बात ठेलकर अपने लग्गू भग्गू को आगे कर देते हो जो बगैर किसी तैयारी के उठकर आ जाते है - निर्मला दो दिन से क्या कह रही है आपको भी समझ आया क्या और राहत कर्ज में क्या फर्क है हम नही जानते क्या, सब भविष्य है तो आज के वर्तमान की समस्याओं का क्या
बहुत हो गया अब आईये गमछा बांधकर , आपसे तो वो राहुल ठीक है जो जनता के सामने रघु रामन से बात करता है, हर हफ्ते पत्रकारों के सहजता से जवाब देता है , बताईये आत्मनिर्भरता का अर्थ - अपने विदेशी गज़ट, भव्य सूट, महंगे उपहार और आयातित गाड़ियां छोड़कर अपने घर से प्रेस क्लब तक पैदल चलकर आईये और फेस कीजिये हमे, जवाब दीजिये हमे और विश्वास जताईये
आपकी छबि और योग्यता, विकास की सच्चाई, अर्थ की समझ, हार्ड वर्क की हकीकत सामने आ गई है देश के सामने
आईये बहुत हिम्मत है ना आपमें और विश्वस्तर के नेता है एक पत्रकार वार्ता करिये, देश से प्रश्न लीजिये और जवाब दीजिये और मन की बात बंद कीजिए - नही सुनना हमें
बोलिये कब आ रहें हैं - आपको कोई खतरा नही होगा यह जनता का वादा है
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चंदा मांगने आए मोहल्ले के लौंडो से कविराज ने कहा कि "साला हमको कोई बुलाता नहीं है और उस स्टेज पर चिल्ला चिल्ला कर जब कहते कविता देशप्रेम की - तब कहीं जाकर 500 - 700 रुपया मिलता है
अभी देखे नहीं फेसबुक पर हिंदी के क्रांतिकारी, प्रगतिशील, अगड़े - पिछड़े, जनवादी, अलित और दलित सब कविता पढ़ रहे थे, 60 - 70 की उम्र के ये कवि पिछले 1 साल में ही कम से कम पांच लाख के नगद पुरस्कार, वो भी टैक्स फ्री, यहां - वहां से बटोर चुके हैं देशभर से
बहुत मजदूरों पर कविता लिख रहे हैं - औरत और बच्चों पर लिख रहे हैं , कउनौ एक ससुरा है जो बाईपास पर जाकर 5 पसेरी धान देकर आया हो किसी गरीब मजदूर को या पुरानी चप्पल की जोड़ - मेहरारू की ही सही, जाओ पहले उससे 5 पसेरी धान और 1 किलो नून ( नमक) लेकर आओ तब मेरे पास आना - नहीं अपने घर के अनाज की कोठी खाली कर दिया तो कविता लिखना बंद कर दूंगा
और तो और ससुरा बेशर्मी से इस बुढ़ापे में लाइव कर रहा है जबकि मोबाइल चलाना आता नही, चमक देखने से आंख फूटती है यह मालूम है उसे, पाजामे का नाड़ा सम्हलता नही - किरान्ति करेंगे जे हिंदी के दुर्दांत कवि "
कविराज का प्रलाप जारी था
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राजा मरिहै - परजा मरिहै, मरिहै सारा गांव
साधौ ये मुर्दों का गांव
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जिनकी सेवा में जुटी है ना सरकार ये वो ही है जो मोदी मोदी करते है, हाउडी मोदी के टिकिट खरीदते है और देश की इमेज बनाते है हरामखोर कही के , कभी वोट नही करते - अपने बाप माँ को यहाँ मरता छोड़ या वृद्धाश्रम में मरने को छोड़कर वही के हो गए है - ऊपर से ये विदेशों में रहकर या बड़े शहरों में रहकर ज्ञान अलग देते है
जिन्होंने वोट दिया है - भुगतना उन्हें ही है , सोच रहा हूँ अब वोट देना बन्द कर दूँ - कोई मतलब तो है नही
मेरे पास 8 प्रकार के नागरिक दस्तावेज़ है इस देश के प्रमाण के रूप में - सब विशुद्ध कचरा है, इस समय किसी काम के नही है - जिनसे एक रुपया ना मिले तो भाड़ में जाये , कहते है ना " वा सोना का जारिया - जा सो टूटे कान "
वापिस ले लो सब दस्तावेज़ और मेरे अब तक के चुनावों में किये हुए वोट वापिस दे दो, बहुमत के नाम पर कब तक मूर्ख बनाओगे, लोकतंत्र का अर्थ यह तो नही कि मेरे वोट से सरकार बनें और कोई नरपिशाच और सत्ता का लोलुप गुंडा, मवाली आकर सत्ता खरीद लें - दो कौड़ी के घटिया और नीच लोग बिक जाये और अपना जमीर बेच दें - क्या वोट और नागरिक की इच्छा का कोई अर्थ नही, यदि कोई मतलब नही है और यही खरीदी बिक्री का खेल करना है तो क्यों मतदान की अपील, चुस्त व्यवस्था और लम्बी चौड़ी प्रक्रिया करते हो हरामखोरों - जब तुम्हे सब कुछ खरीदकर अपने आकाओं के इशारों पर मुजरे ही करने है तो बख़्श दो हमें इस चुनाव की नौटँकी से
मेरे अपने ही कुछ रिश्तेदार मित्र कमाते खाते दूसरे मुल्कों का, वहाँ डरपोक बनकर रंग भेद के शिकार बनकर मिमियाते हुए रहते है - एक काम इस देश का नही करते, कभी वोट नही करते और जब आते है सड़क बिजली पानी नेट का रोना रोकर वापिस चले जाते है पर देश प्रेम के नाम पर लंबे प्रवचन पिलाते रहेंगे - घण्टा फर्क नही पड़ता अब देश और देशप्रेम से - जो लोग देश के लिए गड्ढे खोद रहें है उन्हें तो सड़कों पर मरने छोड़ दिया देश के नीति निर्माताओं ने और अभी भी सारी व्यवस्थाएँ बड़े लोगों के लिए ही है - पैकेज की पुड़िया तुम्हे ही मुबारक
सरकार में दम हो तो चुनाव करवाये अब फिर देखें कितना दम है , मर्दानगी है और कितनी छाती चौड़ी है और कहां से कांग्रेस भी UBI की बात करती है - जाति वर्ग भेद और आरक्षण के नाम पर ओछी राजनीति करने वाले कहाँ चले गए चंद्रशेखर रावण, कन्हैया, जिग्नेश से लेकर मुलायम अखिलेश मायावती और तमाम वे लोग जिन्होंने समाज का सत्यानाश कर डाला और आज मुंह छुपाकर बैठे है - साले सब नीच है कोई कम नही है
NRC / CAA के समय बहुत हिन्दू हिन्दू कर रहे थे , देश के बाहर के हिंदुओं की फिक्र थी अब सड़कों पर कौन चल रहा है, किसकी माताएं गर्भवती है, कौन प्रसुताये डेढ़ घँटे बाद नवजात को लेकर 40 डिग्री में पैदल चल रही है - कौन है ये लोग, धिक्कार क्यों ना हो तुम्हारी, और पुलिस मार रही है - कहाँ से इतना दोगलापन लाते हो बै
हम अब वोट नही देंगे - हम मध्यम वर्ग है, जानता हूँ कि यह हैश टैग नही होगा, ट्वीट करने से ट्रेंड नही करेगा - क्योकि मध्यम वर्ग की औकात भी नही, बुझदिल, कायर और नपुंसक प्रवृत्ति का है यह दब्बू वर्ग पर अब मैं इससे बाहर निकल रहा हूँ - जो घर जाले आपना चलें हमारे साथ
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We the decision makers - Bloody Middle Class
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मध्यम वर्ग की स्थिति बहुत खराब हो गई है - ना भीड़ में खड़े होकर मांग सकते है, ना लँगर में खा सकते हैं, ना मदद करने वालों से राशन की पोटली मांग सकते है - जेब में नगदी नही हैं, तनख्वाहें मिली नही यदि कहीं से मिली भी तो टैक्स और 40 % कटौत्री के बाद
खर्च भयानक बढ़ा है - लगातार तीसरा माह चल रहा है घर में राशन की खपत बढ़ी है और सब्जी आदि लेने में नगदी खर्च हो गई है, दवाइयों और बाकी छुटपुट खर्चों में सब गुल्लक भी खत्म हो गई
सरकार बनाने - बिगाड़ने में जो वर्ग महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है उसकी स्थिति इस समय सबसे ज़्यादा खराब है - बच्चों की फीस, किश्तें, बीमा, फोन, बिजली के बिल, हाउस टैक्स, पानी का बिल आदि का भुगतान लगातार जारी ही है -हालांकि यह भी पता है कि बीमे का कोई फायदा नही होने वाला है
जिनके बच्चें नौकरी कर भी रहें थे वह भी एक भ्रम था, एक तरह का आई वाश क्योकि बच्चों का वर्क फ्रॉम होम का भरम वो अपने तथाकथित समाज और रिश्तेदारी में बनाये रखना चाहते है - हकीकत यह है कि अधिकांश की नौकरी खत्म हो गई है - माँ - बाप की पेंशन या सस्ती तनख्वाह से घर चल रहे है - ऊपर से मदद करने का दिखावा करना ही पड़ रहा है और बल्कि दे भी रहें है काट कसर करके
बस दिक्कत यह है कि वे अपने दर्द , आँसू छुपाकर खाने की डिशेज परोसकर, लूडो खेलकर, ऑन लाईन गप्प करके अपने गम दिल में दबाए बैठे है पर लावा भयानक रूप से जम गया है - घरों में अब एक डेढ़ हफ्ते से ज्यादा का राशन नही है - पिछले साल के गेहूं खत्म हो गए है , दाल चावल, साबुत अन्न, तेल से लेकर मसाले के डिब्बे अब जवाब दे रहें हैं
मन मे ख़ौफ़, आँखों मे चिंताएं और दिमाग़ में शंकाएं हैं - यदि किसी के पास थोड़ा बहुत काम भी है तो वे करने से डर रहें है कि भुगतान होगा या नही क्योंकि पुराने भुगतान पेंडिंग है और जिनका मिलना अब मुश्किल है, लॉक डाउन खुल भी गया तो बैंक के सेविंग में न्यूनतम जमा राशि भी शेष नही है और अगले छह माह या एक दो साल रुपया आने की उम्मीद नही - अभी तीन से पाँच क्विंटल गेहूं के लिए ही दस बारह हजार नगद कहाँ से आएंगे - यह चिंता घर कर गई है
सब अमीरों गरीबों के लिए पर हम जैसों के लिए क्या जिनके पास एक बाय एक फुट की जगह नही, खेत नही, मकान नही , दुकान नही, कोई उद्योग नही और कुछ भी नही और सब कुछ निभाकर ले जाना है सामाजिकता के नाम पर - खुद्दारी इतनी है कि अपने जमीर को जिंदा भी रखना है - किसी को कह भी नही सकते कि दस बीस हजार उधार ही दे दो
मरण हमेशा इसी वर्ग का होता है ना नौकरी, ना आरक्षण, ना बीपीएल कार्ड , ना लोन, ना सुविधा और इज्जत के नाम पर सिवाय श्राप और बददुआएँ मिलती है सबकी और सरकार से तो कोई आशा भी नही कि कभी सोचेगी हमारे बारे में
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फिर कवि को याद आया कि उसे तो बीच में दस्त लग गए थे सो फेसबुक पर आ नही पाया डेढ़ माह तक - बापड़ा फिर लाइफबॉय से हाथ धोकर लौट आया और अपनी कविताएँ , उन पर लिखी मरे खपे लोगों की 15 पैसे वाले पोस्ट कार्ड पर लिखी जय सीताराम टाईप आलोचना, फटी पुरानी किताबों के शीर्षक और चिपचिपे तेल से काढ़े हुए पर्याप्त बालों वाले सिर की उधड़ी हुई फोटो डालने लगा
भगवान सत्तनारायण के लीलावती, कलावती प्रसंग की तरह औरतें और अकविता के ऊबे और बासी आंदोलनों की उबाल चढ़े लोग फिर दस्त लगें हाथों से पोस्ट की हुई फेसबुकिय सामग्री सूंघने, सॉरी, पढ़ने आने लगे
आजकल कवि सत्तनारायन की कथा के साथ संतोषी माता के व्रत भी रखता है और वैभव लक्ष्मियों को चार चवन्नी भी डालता है
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फिर कविराज ने हिंदी की कोरोना काल में दुर्गति पर आख्यान देते हुए कहा कि दो साहित्यकारों की लड़ाई तीसरे के मरने से हुई, पूरा हिंदी का जगत उमड़ पड़ा
साले, हिंदी के ये मास्टर और डेढ़ लाख हर माह डकारने वाले केंद्र के पीजीटी भी डेविल'स एडवोकेट बनकर कूद गए और इनमें से एक की तो ऐसी कुटाई हुई कि हरामी के डीएनए में अब चापलूसी खत्म हो गई ससुरे की, पर निर्लज्ज है कमीना,अभी भी रोज सुबु पोच जाता है बनियों बामन ठाकुरों के यहाँ
फेसबुक पर बूढों को अभी भी प्रेमपत्र लिखने की हौंस गई नही - अब पीटेगा मास्टर और फिर चुकी हुई बूढ़ी औरतों के पास जाएगा - अले अले सुनने रोते हुए, जवान छमियाएँ तो फोटुबाज कवियों की गोद में है ससुरी
कमबख्त काहे का लेखक, प्रूफ़ रीडर है पिछले जन्म का और अब चापलूसी में ऐसा डूबा जैसे फटे दूध के छैने का बासी रसगुल्ला
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