नैनं छिंदन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:
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देवास में एक मित्र है, उसकी बहन के पति का केस है जो खरगोन में किडनी फेल होने से भयानक तकलीफ में थे, बड़ी मुश्किल और बहुत प्रयास करने के बाद उन्हें इंदौर लाने की अनुमति मिली थी विशेषज्ञ को दिखाने की क्योकि वहां डायलिसिस सुविधा और विशेषज्ञ नही थे, खरगोन प्रशासन पहले उन्हें खंडवा या देवास जाने का ई पास देने पर अड़ा था, देवास में पता किया तो डायलिसिस हो तो रहा था पर अनियमित सा था और उन्हें ले भी आते तो ऑपरेशन कर जुगलर और फिसचुला बनाने वाले सर्जन उपलब्ध होते या नही - यह पक्का नही था - हम लोग इंदौर में अनुमति मिलने का इंतज़ार करते रहें
बड़ी मुश्किल से अनुमति मिली , इंदौर आये उनका इलाज आरम्भ हुआ, सर्जन से जुगलर लगाकर डायलिसिस शुरू किया और कोशिश कर रहे थे कि वे बच जाएं, पर स्थिति बिगड़ती गई और आखिर कल उनका मेदांता अस्पताल, इंदौर में उनका निधन हो गया, यहाँ तक लाते - लाते इतनी देर हो गई थी कि कहा नही जा सकता - मेदांता में डॉक्टरों ने बहुत कोशिश की - जुगलर लगाकर डायलिसिस शुरू भी किया पर उन्हें बचाया नही जा सका
आज उन्हें खरगोन जाने की अनुमति दी गई है - परिवार में पत्नी और बेटा अस्थियां लेकर लौट रहे है
सनद रहे यह कोरोना से हुई मृत्यु नही - बल्कि प्रशासनिक कुप्रबंधन, लापरवाही और अराजक कानून व्यवस्था से हुई विशुद्ध हत्या है, भयावह है यह सब, पूरे सरकारी तंत्र का फोकस सिर्फ कोरोना हो गया है, मैंने पहले भी लिखा था कि अन्य बीमारी के मरीजों की उपेक्षा की जा रही है डॉक्टर्स की मजबूरी है कि वे कुछ बोल भी नही सकते और कर भी नही सकते - पूरा स्वास्थ्य विभाग बीमार है गम्भीर रूप से और हम सब असहाय है बेबस है
कोरोना के अलावा दुर्घटनाओं और बाक़ी बीमारियों से मरने वाले इस इतिहास में दर्ज नही है, लगता है लिखने का भी असर अब खत्म हो गया है , बहुत दुखी हूं - सच कहते है मजदूर कि " कोरोना से तो बाद में मरेंगे भूख, लापरवाही और कुप्रबंधन से ज्यादा मरेंगे " और दुर्घटनाओं से लेकर बाकी केस हम देख ही रहें हैं
आईये थाली, झाँझ मंजीरे और घँटे बजाये, बाकी सब चंगा सी
उन्हें नमन और श्रद्धांजलि लिखते भी शर्म आती है मुझे - क्या मैं भी दोषी नही इस पूरी व्यवस्था में
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बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ
बेटी है तो कल है
बेटी पढ़ेगी समाज गढेगी
जैसे नारों के कारण ही ज्योति जैसी लड़कियां बाजार के हिस्से आ रही है अमेरिकन राष्ट्रपति से लेकर हम लोग भी चर्चा कर रहें है
एक बार ज्योति से कोई जाकर पूछ लें कि रास्ते भर यानि 1300 किमी तक, कितने महान लोग मिलें जिन्होंने उसकी बात सुनी या उसके मन की बात को समझने का प्रयास किया
अब जरा कुलदीपक की परिभाषा भी बदल दीजिये समाज शास्त्रियों
ट्वीट किया क्या महामात्य ने, मन की बात में बोलेंगे क्या, फोन पर बात की और नीतीश कुमार पांच रुपये देने की घोषणा की क्या तुमने, राष्ट्रपति से लेकर कहाँ गए फ़िल्म इंडस्ट्री के सेवक - आमिर खान, सलमान खान - कुछ बोलिये ना
स्मृति ईरानी से लेकर तमाम महामहिलाएं और बाकी भोले जनसेवक इस चित्र को याद रखना - यदि तुम 2024 में आये वोट मांगने तो पूछूंगा ज्योति का नाम, गांव का नाम और उसके पिता का नाम
और भारतीय साइकिल एसोसिएशन के साहेबान आप क्या उसके पैमानों की परीक्षा लोगे - अगले हफ्ते आपने उसे दिल्ली बुलाया है परीक्षण के लिए - बेट्टा अपने अब्बू को पूछना कि पंचर कैसे जोड़ते है
जेंडर पर बहुत सी दुकानें है देशभर में और वो #UNWomen के अधिकारी और दलाल - कही दिखें क्या और जांबाज किरण बेदी से लेकर महिला प्रशासनिक अधिकारी और आबादी में महिलाओं से ज्यादा महिला कवि है - हम सब अंधे है और निस्पृह
लॉक डाउन में हम सब त्रस्त ही नही अंधे भी हो गए है जिन्हें ना ज्योति दिख रही, ना सूटकेस पर बच्चा लिए कोई माँ, ना सड़क पर चलती गर्भवती महिलाएं और ना सड़क पर मनुष्य जनती महिलाएं क्योकि भीड़ है और भीड़ का दिमाग़ नही होता ना
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जोगी हम तो लूट गए तेरे प्यार में
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यूपी बॉर्डर से बसें लौटाकर भाजपा और मुख्य मंत्री ने पूरी बेशर्मी से यह दर्शा दिया हैं कि ये लोग जनता को कीड़े मकोड़े समझते है, इतने ढीठ और गैर जिम्मेदार लोग आजाद भारत मे कभी देखें और सुने नही जब लोग जिनमे बच्चे महिलाएं और बुजुर्ग सड़कों पर कड़ी धूप में तड़फ रहें थे तो इन्होंने 800 से ज्यादा बसें वापिस कर दी
काहे का साधु, काहे का योगी और काहे का जननेता - धिक्कार है मुख्य मंत्री होने पर , हद है राजनीति, स्वार्थ और घटियापन की पर बहुत अच्छा लगा दिल को सुकून भी मिला लोगों को इससे बुरे लोग नेतृत्व के रूप में मिलना ही चाहिये जो एन विपदा के वक्त सड़कों पर मरने के लिये भूखा प्यासा छोड़ रहें हैं
देश के अधिकांश राज्यों में सत्ता पर काबिज़ भाजपा और केंद्र में ढुलमुल सरकारें किसके लिए काम कर रही है और पूरे देश को दो माह से कैद करके जन संस्थाओं की नीलामी कर रही है - लोगों की गलती है कि इन लोगों को बर्दाश्त कर रहें है बॉर्डर पर खड़े लोग उखाड़ फेंकते सब कुछ और घुस जाते अंदर
मेरी दिली तमन्ना है कि अगले 50 वर्ष ये ही लोग राज करें ताकि हम लोगों को समझ आएँ कि संविधान, मौलिक अधिकार, अभिव्यक्ति, सुविधा, सरकार और जनपक्षधरता क्या होती है समझ आएगा
ये नया हिंदुस्तान है - घटिया, गैर जिम्मेदार, स्वार्थी और हम सब नीच नालायको का जो इससे भी बदतर शासक डिजर्व करते है - दुर्भाग्य यह है कि यह वही प्रदेश है जिसने सर्वाधिक प्रधान दिए है पर व्यापार जिनके खून में हो उनका क्या और उनसे क्या तर्क करना - एक मोरारजी थे और एक ये है तमाशा बना कर रखा है 6 साल से - एक काम भी ढंग से किया हो तो, बर्बाद करके रख दिया है कश्मीर से कन्याकुमारी तक
राजनीति तो चलो भ्रष्ट और स्वार्थी है ही - पर ब्यूरोक्रेट्स की फौज, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के साथ 80 से ज्यादा ज़िलों के न्यायाधीश, मीडिया और स्वतंत्र अस्तित्व वाली संविधानिक संस्थाएं डूबकर क्यों नही मर जाती जिनकी निष्ठा संविधान और व्यवस्था से होनी चाहिये - वो एक ढोंगी पाखंडी के प्रति अपनी वफादारी निभा रहें हैं - इससे ज्यादा शर्मनाक क्या होगा और
सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति तो है ही धृतराष्ट्र और भीष्म पितामह की भांति जो नमक ख़ाकर नमक का कर्ज अदा कर रहें है और बाकी भाजपा के लोग - इतने कायर और बेवकूफ है कि इन 3 - 4 लोगों की मनमानी झेल रहे है - कहाँ है संस्कृति पुरुष प पू मोहन भागवतजी जो अयोध्या में मन्दिर बनवाने को उत्सुक है बहुत - अब उन्हें अपने लोगों के कृत्य नही दिख रहे या वे भी नमक का कर्ज अदा कर रहें है
कोरोना के नाम पर घटिया राजनीति कर रहें है ये लोग और पूरी तरह से खुले आम गुंडागर्दी मचा रखी है - संविधान के हिसाब से यह आपातकाल है पर राष्ट्रपति को समझ आएँ तब ना अगर आपातकाल लग गया तो इनकी रुपये कमाने और देश बेचने की सदिच्छाएँ कैसे पूरी होंगी - सब धूर्त है
क्यों नही मायावती, अखिलेश और बाकी नेता 3 दिन तक घर में बैठे रहें - अर्थात इस खेल में ये दोनों दलित नेता भी भाजपा के खेल में शामिल है - सुन लो बहुजनों और अब नाचो ता ता थैया और गुणगान करो अपने इन नेताओं का, सही कहते है हाथी शरीर से ही बड़ा अक्ल तो है ही नही तभी एक चींटी औकात बता देती है हाथी को
शर्मनाक और निंदनीय कृत्य
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मुगल काल की बात है एक युवा शाईर अपने उस्ताद की नजरों में चश्मे बद्दूर बनने को बेताब था - अजीब तरह से शेर कहता था, दूसरे मुलुक के शाईरों का पुरखुलूस तर्जुमा करता और किसी बेगैरत सा अपनी धुन में रहता और शीबाखानों से लेकर मयखानों तक बांदियों और हसीनाओं के हुस्न को निहारते रहता - यानि कुल मिलाकर उसकी अय्याशियों से महफ़िल के लोग आज़ीज़ आ गए थे, उसकी बदज़ुबानी के किस्से मुलुक मुलुक में मशहूर हो रहें थे और यह चर्चा थी कि उस्ताद उसे बादशाह सलामत की नजर में चढ़ाने को कुछ भी दे सकते है और वह भी मुतमईन था कि उस्ताद की नज़रों में उससे बेहतर जवाँ शाईर नही इस मिट्टी में
बादशाह सलामत के दरबार के किसी पुरस्कार की सदारत उस्ताद को करनी थी उस बरस, उस्ताद ने सोचा - बरखुरदार के होश ठिकाने आ नही रहें और उम्मीद भी मुझसे कर रहा कि दो कौड़ी का पाँच गिन्नी वाला शाईरी का तख्ते ताज इसके सर माथे रखवा दूँ - पर उस अफगानी फरिश्ते का क्या होगा जिसके मसाले, काबुली चने, जाफरानी पत्ती और किसिम किसिम के खजूर छककर वो और उसका परिवार बारहों मास खाता रहा है
उस्ताद तो जात ही गलीज़ होती है - उसने इस मरदूद को बादशाह सलामत के मदरसे में उर्दू ज़ुबान का मौलवी बनवा दिया - और अफगानी शाईर को जो पठान बिरादर था, को पांच गिन्नियों का तख़्ते ताज पहनवा दिया - दोनो छर्रे ख़ुश, स्थानीय छर्रा अब बांदियों के साथ नज़र नही आता और उसके तर्जुमे भी बंद हो गए
उस्ताद काईयाँ हो तो मदिरा हो या इल्म, दोनो का भरपूर फ़ायदा तो मिल ही जाता है
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एक बूढ़ा बामन और दूसरा बूढ़ा गंजा - दोनो सोशल मीडिया पे फेल थे और साहित्य जगत में चुके हुए कवि सिद्ध हो चुके थे, अब या तो ये नगदी पुरस्कार की राह देखते या कार से ला - ले जाने वाला कवि गोष्ठी का आयोजन तलाशते - बस दोनो को हाथ फेरने को कोई तो चाहिये था साथ ही जो इनके सड़े गले फ़ासीवादी विचारों को मंच पर बोल सकें या जाति, वर्ग संघर्ष के ख़िलाफ़ उगल सकें
एक अश्लील रात को अद्दी पीकर दोनो ने फोन मिलाएं और ताल तलैया किनारे नाव में सवारी करते तय किया कि नए उभरते एक युवा कवि को पुचकारने का ठेका लिया जाये - युवा भी झांसे में आ गया और फिर कहानियों के किस्से चालू हुए जगत में
इधर दोनो कान भरते और उधर वो माउथ पीस बना आग उगलता - साहित्य की गलीज दुनिया ही ऐसी थी - यही हाल मीडिया का था
कुल मिलाकर कुदृष्टि रखने वाले दांत टूटे बूढ़े और गंजे होते जा रहे कवियों को, वरिष्ठ पत्रकारों को सूचना तकनीकी, सोशल मीडिया में दक्ष, भाषा के कौशल से पूर्ण, जान पे खेलने वाले खिलाड़ी लौंडे चाहिये थे - जो सदियों से उपेक्षित थे और नाम, यश जल्दी कमाकर बेताज बादशाह बनने का ख्वाब देखते थे, ये युवा तुर्क कठपुतली बनकर इनके मैदान में हू तू तू - हू तू तू खेल कर असमय मरना चाहते थे
कवियित्रियों के लिए रोज एक मुर्गा या बकरा मारने का अभियान हैश टैग के रूप में जारी था ही
हिंदी साहित्य के इतिहास में लिखा जाएगा कि " कोरोना काल में चोट खाये उपेक्षित बूढ़े कोरोना से नही बल्कि उपेक्षा और कही ना बुलाये जाने से संक्रमित होकर मरें "
" आपकी वाल कल देखी " - कविता पर कमेंट्स देखें , कवियत्री बोली
" जी, आभार आपका, कविताएँ कैसी लगी आपको " कवि का खून बढ़ गया था - पांच लीटर
"कविता तो पढ़ी नही, पर ये बताईये हर कमेंट्स का जवाब 3 - 4 जवाबों में क्यों देते, हर लाईक वाले को अलग - अलग धन्यवाद देते है - डाक्टर ने बोला है क्या कि हर पोस्ट पर कमेंट्स का 300 - 500 का कोटा पूरा नही होगा तो किडनी फेल हो जाएगी या फेसबुक नौकरी है जो हर ऐरै गैरे के जवाब देना आपका संविधानिक कर्तव्य है और महिलाओं के कमेंट्स पर तो ऐसे टूट पड़ते हो आप कि जान ही ले लोगे उनकी " - कवियत्री हांफने लगी थी
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