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Posts of March 2020 II week

एक युवा कांग्रेसी मित्र, जो सिंधिया खेमे में था, अवसाद ग्रस्त है पूछ रहा है -
दादा, अब किस ओर से राजनीति करूँ
मेरा जवाब -
निष्पक्ष रहो, देश और समाज का सोचो
तटस्थ रहो , मुद्दों की बात करो
जो जनकल्याण की बात हो, उसे लिखो
लेखक बनो, साहित्यकार नही - राजनीति अपने आप सध जाएगी
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इन सारे अफसानों में सबसे ज्यादा निराश किया कामरेडों ने, बसपाईयों, सपाइयों और गांधीवादियों ने - मोमता दीदी तो अनथक लड़ ही रही है घर में फासिस्ट ताकतों से लगातार
सबसे टुच्चे निकले कम्युनिस्ट जो बड़े बड़े आख्यान और यहाँ वहाँ घूमकर बकवास का अंबार लगाते थे, जबरन का कूड़ा पेलते थे और कस्बों शहरों में यारबाजी कर खाने पीने की अड्डेबाजियाँ करते थे
ससुरे दारू पीकर ऐसे बहकते थे कि इनको राज्य अभी पैग पूरा होने के पहले ही मिल जाएगा , दूम दबाकर बैठे है 2014 से
इन सबसे बेहतर तो एक्टिविस्ट और एनजीओ कर्मी है - जो चुटका, नर्मदा या किसी जमीनी आंदोलन के माध्यम से सरकारों की नाक में दम कर रहें है - फिर वो कोई भी पार्टी हो
मुलायम, अखिलेश, मायावती तो लगता है अब गौ पालन और अंडे बेचकर आजीविका चला रहे है, कांग्रेस के कमजोर लोग कम से कम लड़ तो रहें है भले एक सीट ना मिले या कोई घास ना डालें
इस सामूहिक आत्महत्या के लिए इन सबको नमन और बहुत हार्ड वाली श्रद्धांजलि
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कई मित्रों को यह सन्दर्भ मालूम ना हो, उनकी जानकारी के लिए -
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फॉस्ट एक क्लासिक जर्मन किंवदंती का नायक है, जो ऐतिहासिक जोहान जॉर्ज फॉस्ट पर आधारित है एरुडाइट फॉस्ट अपने जीवन से बेहद असंतुष्ट है, जो उसे असीमित ज्ञान और सांसारिक सुखों के लिए अपनी आत्मा का आदान-प्रदान करते हुए, एक चौराहे पर शैतान के साथ एक समझौता करने की ओर ले जाता है

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अरबों की जायदाद, दून स्कूल से लेकर सिंधिया स्कूल और विदेशों में पढ़कर अपने बाप दादाओं की सम्पत्ति को देखने का शुल्क वसूल लें - वो गद्दार कह रहा है जनसेवा करने की, कभी जाकर इनके किले के नौकरों से पूछो कि शोषण की क्या इंतेहा है, इतनी अकूत सम्पत्ति में से किसी को छह गज जमीन भी दी जो अब सेवा करेगा
भ्रष्टाचार वो नही था जो बगैर किसी पद के ग्वालियर के प्रशासन के लोगों को घर बुलाकर बैठकें की है
अबे अब प्रधान मंत्री में देश का भविष्य सुरक्षित नजर आ रहा है 18 साल अलग अलग पदों पर रहकर खोखला तुमने ही किया देश को और तुम जैसे रजवाड़ों ने सामंतवाद के चलते देश को बर्बाद किया - अब समझ आई ट्यूबलाईट - क्या मतलब इत्ती पढ़ाई लिखाई का - ये प्रधान तो 2014 में आये
हंसी आ रही है कि इतने चिरकुट और कुपढ़ हो , इतनी समझ तो हमारी पंचायत के किसी अनपढ़ पंच को होती है, संघ और भक्त मंडली " महाराज की जय हो " - नारे नही लगा रही, प पू भागवत जी का ट्वीट आया क्या और आज अमित भाई नही थे सिंधिया लोकार्पण समारोह में - क्यों
यह तुम्हारे जैसे अवसरवादियों के लिए आखिरी पोस्ट है क्योंकि तुम पर लिखना मतलब खुद भी कीचड़ में जाना है, बस याद रखना तुम्हारे जिस बेटे को प्रचार में लेकर घूमते हो ना - एक दिन उसके सवालों का जवाब देना मुश्किल होगा - उम्मीद है यह हिम्मत तुममें कभी नही आ पायेगी - एक बार समर्थ रामदास और शिवराया का जीवन चरित्र ही पढ़ कर समझ लेते बाकी तो छोड़ ही दे
[ ज्योतिरादित्य सिंधिया Control + Delete permanently from dictionary ]
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CAA का पहला शरणार्थी आखिर नागरिकता लेने में सफल हुआ
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सोनिया, प्रियंका और राहुल गांधी यदि कांग्रेस छोड़कर राजनीति से कम से कम दस साल के लिए सन्यास ले लें तो फिर कोई संभावना है कि कांग्रेस दस साल बाद रिवाइव कर जाए
दूसरा, कांग्रेस को दलित, आदिवासी और मुसलमानों की सहानुभूति पाने वाली छबि से मुक्त होकर व्यापक देश के मुद्दों पर स्पष्ट बात करना होगी , बेरोजगारी - जाति प्रथा, आरक्षण, धर्म और योजनाओं के प्रशासनिक क्रियान्वयन पर साफ़ सुथरा व्यवहारिक रोड मैप रखना होगा
दलित, आदिवासियों और मुस्लिम नेताओं से परहेज कर मनुष्यों से नाता जोड़े तो बेहतर होगा - अभी सबसे ज्यादा नुकसान इन तीनों किस्म के भ्रष्ट नेताओं ने किया है
रॉबर्ट वाड्रा से लेकर चिदम्बरम जैसे तमाम विवादास्पद लोगों को कानूनी प्रक्रियाओं के तहत फ़ास्ट ट्रेक की अनुमति राष्ट्रपति से लेकर सुप्रीम कोर्ट से त्वरित न्याय करवाना होगा
काँग्रेस और गांधी परिवार में जब तक छत्तीस का [ कम से कम दिखावटी ] आंकड़ा नही दिखेगा तब तक जीर्णोद्धार संभव नही है
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मप्र में कांग्रेस को डुबोने में कांग्रेस के अलावा कोई नही था, जिन नये विधायकों को मौका देकर पार्टी ने सोचा था कि वे शिक्षित है उन्होंने सबसे ज्यादा कमलनाथ के गड्ढे खोदे और जवानी और पढ़ाई की हेकड़ी में सरकार डूबो दी, मज़ा तो अब आएगा जब ये नौकरी और धन्धा छोड़कर अपने अपने क्षेत्रों में जो करोड़ों का इन्वेस्टमेंट करके बैठे है - उसका डिसइनवेस्टमेंट करना पड़ेगा तब ससुरों को होश आएगा
खतरा बसपा, निर्दलीय और सपा वालों से नही था, नव निर्वाचित विधायकों के दलालों और एजेंट्स ने, [ जो मूल रूप से संघी थे और कांग्रेस सरकार में भाजपा के गुप्तचर थे ] ने सरकार के समक्ष इनका उपयोग कर अपनी रोटी सेंकी और इन अबोध बच्चो को कठपुतली की तरह इस्तेमाल किया जो कि शर्मनाक था
अब बजाना घण्टी और फिर बजाना सीटियां - कोई नही सुनेगा याद रखना
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