Skip to main content

दिलखुश चटनी और सिवई का उपमा 6 March 2020 Sandip Ki Rasoi

सिवई का उपमा


● एक कढ़ाई में तेल गरम करके उसमें राई, जीरा और मेथीदाना डालकर बघार लगाएं
● फिर आधा कटोरी ताज़े मटर के दाने, एक मध्यम आकार का बारीक कटा प्याज, एक बारीक कटा टमाटर डालकर अच्छे से भून लें
● अब इसमें साफ धोया हुआ खूब सारा कढ़ी पत्ता डाल दें
● अब बारीक सिवई दो कटोरी डालकर अच्छे से सेंक लें जब तक कि सिवई का रंग हल्का भूरा ना हो जाएं
● अब इस मिश्रण में लाल मिर्च, हल्दी, काली मिर्च का पाउडर और स्वादानुसार नमक डालें
● जब सिवई भूरे रंग की हो जाये तो एक ग्लास पानी डालकर तेजी से चलाएं ताकि गांठें ना पड़ें, जब सिवई फुल जायेंगी तो गैस बन्द कर दें
● अब मिश्रण को एक बढ़िया प्लेट में निकाल लें और इसे खोबरे के बुरादे और हरे धनिये की बारी कटी पत्तियों से सजाएं ,आधा नींबू डालकर गर्मागर्म खाएँ
● मजेदार नाश्ता तैयार है, आपको दो तीन बजे तक रसोई का मुंह देखना नही पड़ेगा
Image may contain: food
***
गर्मी की बहार - दिलखुश चटनी


● गर्मियां आ गई है , इन दिनों टमाटर बहुत ही सस्ते है अभी थोड़े दिनों में महंगे हो जाएंगे, आईये आज बनाते है टमाटर की स्वादिष्ट और पौष्टिक चटनी - जिसे आप एक माह तक फ्रीज में रखकर खा सकते है
● आधा किलो टमाटर लेकर साफ पानी से धोकर सूखा लें और बारीक काटकर रख लें
● अब एक गर्म कढ़ाई में दो चम्मच घी डालें और जीरे के साथ खूब सारे हींग का बघार लगाएं
● इसमें टमाटर डाल दें और पाँच मिनिट ढाँक दें , आधा चम्मच नमक डालकर पकने दें, ध्यान रहें इसमें कोई प्रिजर्वेटिव्हस नही डालना है
● अब खजूर, जो सर्दियों में पैकेट में मिलते है , एक पाव लेकर उसके बीज निकालें और कढ़ाई में डाल दें और फिर अच्छे से हिला कर ढाँक दें
● अब थोड़ा सा गुड़ डालें मिश्रण में और हिलाएं ताकि गुड़ पिघलकर एकजीव हो जायें
● अंत में आम के दो पापड़ के बारीक टुकड़े तोड़कर इसमें डाले और दो मिनिट पकाए
● गैस बंद कर दें और उपर से सूखे मेवे जैसे काजू, बादाम, पिश्ता और किशमिश डालकर मिश्रण को ठंडा होने दें
● स्वादिष्ट, पौष्टिक और जी ललचाने वाली मजेदार चटनी तैयार है - इसका स्वाद अलौकिक है

#संदीप_की_रसोई 

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही