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भावनाओं में उलझकर मूर्ख बनते हम लोग 1 March 2020

भावनाओं में उलझकर मूर्ख बनते हम लोग
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मालूम सब था पहले से पर लगता था कि ऐसा नही है - कलाकार है , संवेनशील है और रिश्तों का अर्थ जानते है भले ही वायवीय है तो क्या आपसी समझ, लगाव, विचारधारा तो एक है, मकसद तो एक है, उद्देश्य और कार्यप्रणाली तो जानते है, स्वप्न तो सांझा है - एक उन्नत समाज और बेहतर कल के जो मनुष्यता की बात करते है
दास्तानगो हिमांशु वाजपेयी ने अभी एक पोस्ट लिखी है जिसमे पद्मश्री प्रह्लाद जी टिपानिया के उदाहरण के माध्यम से फेसबुक पर ना होकर भी लोक में प्रचलित और लोकप्रिय होने की बात की साथ ही इस द्वंद को भी खूबसूरती से उभारा कि कलाकारों - साहित्यकारों के यहां यानि फेसबुक पर रहकर अपना प्रमोशन और मार्केटिंग करने की मजबूरी क्यों है - यह बात भी बताई
पोस्ट काफी गंभीर थी, मैंने भी सोचा और अंत मे पाया कि ये तथाकथित कलाकार, साहित्यकार या स्थापित होती सेलिब्रिटी कैसे आपको अपने प्रचार, प्रमोशन और मार्केटिंग के टूल बना लेते है और भावनाओं का दोहन कर खुद यश, कीर्ति और धन के संजाल में मालामाल हो जाते है
देखिये कही हम आप इनके हाथों इस्तेमाल होकर इनके लिए टूल तो नही बन रहे - क्योकि यह प्रशंसनीय है कि प्रह्लाद जी यहां नही है पर उनके परिवार जन और संगी साथी फेसबुक पर बहुत सक्रिय है जो लगातार अपडेट्स करते रहते है और बाजारू भाषा में कहूँ तो प्रमोशन लाइव या schedules की जानकारियां बांटकर इतना करते है या आयोजक भी बहुधा कि उनकी जरूरत महसूस नही होती और वे अब जिस साधना के पथ पर है उन्हें शायद होना भी नही चाहिए यहाँ इस माध्यम पर
अच्छा यह लगा कि बहुत सहजता से हिमांशु ने यह कहा कि यहाँ रहकर प्रमोशन या मार्केटिंग जरूरी है
यहाँ रहने और ना रहने के अपने तर्क और पक्ष -विपक्ष हो सकते है पर इस साफगोई को सलाम भी और सतर्क भी रहना होगा कि हम जाने अनजाने बाजार की या इन लोकप्रियता के भूखे लोगों की कठपुतली तो नही बन रहे और हमारी भावुकता की रिश्तेदारियों , दोस्ती और यारबाशी कही किसी के उद्देशय या निहितार्थ तो पूरे नही कर रहें या उपयोग में तो नही आ रहें
बहुत दुख के साथ लिख रहा हूं कि जिन मित्रों की पोस्ट्स कार्यक्रम, तस्वीरें और कार्यक्रम की जानकारियां बांटी वो कभी मेरी वाल पर नही आये और मिलने पर भी उस गर्मजोशी से नही मिलें जो दोस्ती में या एक दीर्घावधि में विकसित होती है, साथ तस्वीर खिंचवाने में भी उनके चेहरे मोहरे देखकर समझ आता कि वे उस क्षण भी प्रोफेशनलिज्म छोड़ नही पाए, बहरहाल
लिहाज़ा अब बहुत कुछ स्पष्ट है और एक झटके में समझ आया कि हममें से 99 % लोग जो उनकी सूची में है वे सिर्फ उपयोग किये जाने वाले टूल्स है
एक बार देखा कि आखिर क्या लालच है इनसे जुड़े रहने का - कौन ये एक चवन्नी भी देंगे या कभी मिलें तो हंस कर गले लगाएंगे - इनकी धन लोलुपता के वहशीपन का शिकार हम क्यों बनें - निकाल बाहर करिये जीवन से भी और फेसबुक से भी
लिस्ट आज साफ होगी और किसी के लिए कम से कम टूल नही बनना है जीवन में, अभी 112 लोगों को रास्ता दिखाया अपनी सूची से जो यह खेल खेल रहें थे एक दशक से

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