भारतीय जनता से निवेदन है कि लोकतंत्र में मतदाता के पद से इस्तीफ़ा दे दें
परम आदरणीय सरकार से विनम्र निवेदन है कि तत्काल प्रभाव से इसे स्वीकार कर नई जनता को चुन लें
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"लहू लुहान नजारों का ज़िक्र आया तो
शरीफ उठे और एक तरफ़ बैठ गए "
● दुष्यंत
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मित्रों , ध्यान रखिए हिंदी या क्षेत्रीय भाषाओं के लेखक, कवि , कहानीकार , उपन्यासकार, आलोचक या सम्पादकगण इस समय क्या कर रहे हैं , सुकून यह है कि अँग्रेजी में अरुंधति इस समय पूरा झंडा उठाकर अकेली चल रही है पूरे दम से
और हम -
◆ व्हाट्सएप पर ठिठोली कर रहे हैं
◆ रेख़्ता में कार्यक्रम अटेंड कर फोटो चेंप कर आत्ममुग्ध हो रहे हैं
◆ देशभर के लिटरेचर फेस्टिवल में जाकर अपनी कहानी - कविताएं पेल रहे हैं और रुपया कमा रहे हैं
◆ फेसबुक पर बैठकर दूसरों को कुंठित होने के प्रमाणपत्र बांट रहें है
◆ अपनी नौकरी बचाकर निजी समूहों में मर्द बन रहे है महिलाओं के साथ हंसी मजाक करके
◆ आने वाले पुस्तक मेले के मद्दे नज़र अपनी किताबों के भौंडे विज्ञापन कर रहें है
◆ क्या साहित्य है और क्या परिभाषा - साहित्य समाज का दर्पण है - उफ़्फ़, किसी को शर्म भी है
आक थू है इन लोगों पर, तमाम प्रलेस, जलेस या जसम के लोगों पर, पूरा दलित आंदोलन, मार्क्सवादी से लेकर सपाई, बसपाई या क्रांतिकारी दड़बों - बिलों में घुसकर दाना चुग रहें है, इश्क की चोंच लड़ा रहें है
आत्म मुग्धता चरम पर है, सरकार से पहले इन लोगों को सड़कों पर लाकर दौड़ाया जाएं - बहुत सॉफिस्टिकेटेड है इनकी जमीन
#रेख़्ता के आयोजकों को शर्म आना चाहिये जब देश जल रहा है तब वे शाइरी और जलसों में व्यस्त है , माल खपा रहें गई और कमाई में लगें है - यही है सरोकार और समझ - धिक्कार है
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अब तो इस तालाब का पानी बदल दो
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दुनिया में इस समय सबसे ज़्यादा युवा भारत में है , 55 % युवा आबादी हमारी जनसँख्या में है और सौभाग्य से ये लगभग सब पढ़े भी है भले ही पाँचवी या पीएचडी पर जागृत है और इस समय सम्पूर्ण चैतन्य अवस्था में है
जाहिर है हम इतना तो आध्यात्म समझते है कि जागृत होने पर क्या होता है, इसलिये सरकार को इस बात की भी सुगबुगाहट है कि जागृत होने का प्रभाव क्या होता है
CAB के आंदोलन में युवा ज़्यादा है इसलिए सरकार दुनिया को दिखाना चाहती है कि 55 % बिगड़ैल युवाओं को कैसे लाठी , गोली, ईश्वर, अल्लाह जैसे हथियारों से कैसे ठीक किया जा सकता हैं
ये युवा विवेकानंद के आदर्श वाक्य "उठो , जागृत हो और तब तक लगे रहो जब तक अपना लक्ष्य ना प्राप्त कर लो" को अपनाते हुए पटेल जैसे निर्भीक बनकर अब उठ गये है
शुक्र है कि इस महादेश के वैज्ञानिक चेतना वाले देश के युवा इस धूर्त सरकार के ( सिर्फ दो व्यक्तियों की) दूसरे कार्यकाल को छह माह में ही समझ कर हकीक़तों से वाक़िफ़ हो गए है और वो भी हिन्दू मुस्लिम की दूरियाँ मिटाकर
इंतज़ार है कि कोई सड़कों पर दौड़ें और भीड़ पीछे हो - मेरी दुआएँ , स्नेह और समर्थन है इन युवाओं को और गर्व भी है इनके जोश - जज़्बे पर, शिक्षा का मतलब यही है - तमसो मा ज्योतिर्गमय, असतो मा सदगमय
1990 में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के दस्तावेज में लक्ष्मीधर मिश्र , जो तत्कालीन निदेशक थे - मिशन के , ने लिखा था कि - "साक्षरता का अर्थ है लोग शिक्षित हो संगठित हो, अपने बदहाली के कारणों को समझ कर उन्हें बदलने की संगठित कोशिश करें " उस समय मूर्खों की जमात नही थी - बड़े विज़न वाले और मिशन वाले लोग थे हमारे साथ जिनके नाम मैंने यहां नीचे वाले पैरा में लिखें है
उस समय मैं तन्मयता से जुड़ा था, परिणाम ना आने पर बहुत निराश होता था - प्रो कृष्ण कुमार, स्व प्रो यशपाल, स्व आचार्य राममूर्ति, स्व डाक्टर विनोद रैना, डाक्टर एमपी परमेश्वरन और डाक्टर अनिल सदगोपाल दिलासा देते थे कि इसके लंबे परिणाम देखने को मिलेंगे , बहुत साल बीत गए थे पर इधर देश भर में जो जुम्बिश देख रहा हूँ तो बहुत राहत है और अब एक आशा इन आँखों में नज़र आती है , मैं मुतमईन हूँ कि 'वो सुबह हमीं से आयेगी , उस सुबह को हम ही लायेंगे '
बस , दुष्यंत को याद करते हुए अपनी बात खत्म कर रहा हूँ
" एक चिंगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है "
सुनो, आज मुहल्ले में चाचा के यहां दत्त जयंती के भंडारे में बच्चों को, माँ को और पड़ोसियों को लेकर चले जाना - बस यह ध्यान रखना कि जो परोस रहा है उसके हाथ में जो आईटम है वही देखना - सब्जी, रायते, पूड़ी, पुलाव और बूंदी की बाल्टी, बस - परोसने वाले का चेहरा मत देखना, वरना बहता नाक देखकर प्रसाद से भी घिन हो जाएगी , भोत सर्दी है आजकल, मैं यहां नवलखे पे खा रियाँ हूँ तो साले नुक्ती परोसने वाले छोरे का चेहरा देख लिया, और रायते वाले का भी - साईंबाबा की कसम आठ से ज़्यादा पूड़ी खा ई नी पाया और उठ के बाहर आ ग्या
रिटायर्ड हो रहे युवा प्राध्यापक कवि ने अपनी माष्टरनी पत्नी को आदेशात्मक स्वर में फोन पर अब्बी अब्बी कहा
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