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CAA /CAB से आगे की सोचें 22 Dec 2019 and Drisht Kavi

CAA /CAB से आगे की सोचें
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देश के हालात और चौतरफा विरोध से अपनी बिगड़ती छबि और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बर्बाद हो चुकी इमेज से नरेंद्र मोदी निराश और हताश है और अमित शाह के ख़ौफ़ में है , उन्हें डर यह है कि वे 2024 तक पद पर बने रहेंगे भी या नही, आज रामलीला पर उनके चेहरे पर घोर नैराश्य और पराजित भाव दिख रहा था और लिख कर रख लीजिए नरेंद्र मोदी का कार्यकाल हद से हद छह माह और रहेगा क्योंकि उनका इस्तेमाल पूर्ण हो चुका है और अब उनकी ना पार्टी को जरूरत है ना देश को ना विश्व को -एक व्यक्ति के रूप में वे शत प्रतिशत फेल्योर व्यक्ति है - यह सिद्ध हो चुका है जिस तरह के स्पष्टीकरण उन्होंने दिए इसकी जरूरत ही नही थी क्योंकि ये सब उस दिन लोकसभा में कोई भी नही बोला जब बहस हो रही थी - आखिर आज की रैली की जरूरत ही नही थी - एक असफल और झूठा आदमी ही स्पष्टीकरण देता है ठोस आदमी नही
इन दिनों शाह ने मीडिया में अपना चेहरा बनाकर मोदी को हटा दिया है, लोकसभा से लेकर चौराहे पर की बहसों में शाह ही डोमिनेंट है
शाह निर्णय लेने में दृढ़ और जिद्दी है साथ ही भयानक फास्ट भी
मोदी से ज्यादा चुनाव जितवाने की कला का पारंगत खिलाड़ी और जुगाड़ू
मोदी की उम्र हो गई है जबकि शाह ने अभी साठ की देहली पर भी पाँव नही रखा है
मोदी संघ की नीतियां लागू करने में फेल जबकि शाह एकदम सफल हुआ है
कमजोर पड़ते मोदी भाजपा शासित राज्यों को भी सम्हाल नही पा रहें जबकि शाह साम दाम दण्ड भेद से कुशल प्रबंधक है
नार्थ ईस्ट में मोदी घुस नही पाए कुछ ना कर पाए जबकि शाह ने असम में चुनाव ही नही जीता बल्कि आग लगाई और अन्य नार्थ ईस्ट के राज्यों में सरकार बनवाई
योगी को मोदी बस में नही कर पा रहें शाह एक झटके में योगी को हटाकर यूपी का फेस लिफ्ट करवा देगा
बिहार, दिल्ली, प बंगाल , झारखंड, राजस्थान, मप्र, छग में मोदी कुछ नही कर पा रहें
लगातार जनता की नजरों में झूठे साबित हो रहें है फेंकू की छबि स्थापित हो चुके है
कुल मिलाकर बात यह है कि अमित शाह नरेंद्र मोदी को 2024 के पहले ही किसी भी तरह से रिप्लेस कर खुद प्रधान मंत्री बनेगा
मोदी से ना समाज सम्हला, ना अर्थ, ना राजनीति, ना प्रशासन और ना विदेश और ना माल्या या अम्बानी अडानी - मोदी का तोड़ योगी नही अमित शाह है
पूरा मंत्रिमंडल ही नही भाजपा भी मोदी के विरोध में है सुषमा जी और जेटली भी मर ही गए और बाकी लोग छिटक कर अलग हो गए है मोदी से जिनकी ना कोई कार्य शैली है ना मिलकर काम करने की नीति, एक गडकरी थोड़ा दम भरते हैै क्योकि नागपुर से आते है बाकी किसी और मंत्री का चेहरा मोदी के होते किसी ने देखा तो बताएं
मोदी बकवास का पर्याय और शाह ठोस काम का प्रतीक है
22 दिसम्बर 2019
11 मार्गशीर्ष कृ. / पौष शके 1914

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और अंत में प्रार्थना
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यह पत्र भाई विजय मनोहर तिवारी जी (सूचना आयुक्त, मप्र शासन) ने भाई दीपक तिवारी जी (कुलपति,माखनलाल पत्रकारिता विवि, भोपाल) को किसी प्रकरण में लिखा है, यह असहमति का उत्कृष्ट उदाहरण है - क्या प्रेम पूर्वक भी असहमत हुआ जा सकता है - ये उसकी मिसाल है
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"... लेकिन जब दिलों में जहर भरता जा रहा हो तो कलम में प्रेम कहां से घुलेगा! सौम्य चेहरों ने भी स्वार्थवश जहर उगला. यह जानते हुए भी कि ये शहर अपना है, लोग अपने है, फिजा अपनी है. अपनों से प्रेम से भी असहमत हो सकते हैं
फिर भी उनसे कोई बैर भाव नहीं - क्योंकि वो जहरीले भी तो अपने है, थोड़ा जहर अपने हिस्से में भी."
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सवाल यह है कि हमारी समझ तो काफी है , मैं सूर्यास्त के पहले सबको मुआफ़ कर देता हूँ पर हम मूल मनुष्यता की जिनसे अपेक्षा करते है - वे है क्या उस मनुष्यता की परिधि में भी - यदि किंचित भी है तो फिर कुछ उम्मीद है अन्यथा तो सब माया है और "माया महाठगिनी हम जानी" कबीर सैंकड़ों साल पहले कह ही गए है और हम रोज देखते है , माया ने संसार को ध्वस्त किया है यह भलीभांति सब जानते है - यह माया पद की हो, अहम, दर्प, यश, कीर्ति, गुमान या चल अचल संपत्ति की हो या आधुनिक परिवेश में छल - बल और जुगाड़ से उपजी वीभत्स आत्म मुग्धता और प्रचार की हो - ख़ैर , "जो दिल खोजा आपना मुझसे बुरा ना कोई" - यह भी तो कबीर कह ही गए है - यह कहकर संतोष कर लेने में और विरक्त रहने में ही भलाई है
[ तटस्थ ]
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पत्र के हिस्से के सौजन्य के लिए श्री Rakesh Kumar Malviya जी का आभार, उनकी अनुमति के बिना अपने किसी संदर्भ और आत्म मंथन कहूँ या आत्म परीक्षण के लिए इसे ले लिया
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विवि का हिंदी विभाग यूजीसी से रुपया ऐंठकर ठेके पर कविता गोष्ठी करवाता था हर साल, कवि कम मास्टर किस्म के कवि आते
अबकी बार शोधार्थियों को चमकाते हुए हेड ने कहा कि "न्यूज नही आई किसी भी अख़बार में और फेसबुक पर 500 से ज़्यादा लाईक और 100 कमेंट नही आये आयोजन पर तो अगले छह माह की स्कॉलरशिप के फॉर्म पर साईन नही करूँगा - अब आगे तुम लोग समझ लेना"
शोधार्थी में से दो कैम्पस के अस्पताल में भर्ती हो गए है डॉक्टर को दुई हजार देके और मेडिकल बनवा लिया है एडवांस में
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मुश्किल से सात श्रोता थे हॉल में, इडली, वडा, सांभर और चाय- बिस्किट के बाद भी लोग साले सुनने को आते नही
संचालक ने बाहर से आये नौ कवियों को मंच पर ससम्मान बुलाया, स्थानीय तीन कवि, चार पसंद की बूढ़ी कवियत्रियों को - जो झकास वाली माहेश्वरी साड़ी पहनकर और भयंकर वाला डियो मारकर आई थी, मंच पर बिठाया
स्वागत भाषण में संचालक बोला - " यह नितांत ही अनौपचारिक कार्यक्रम है - जिसमे हम इस जिले के प्रगतिशील लोग एक परिवार के माफिक रहते है, ज्यादा भीड़ और श्रोताओ को आमंत्रित नही करते इसलिए कि हम पेटभर कविता सुनकर उस पे गम्भीर चर्चा कर सकें, आप सबसे अनुरोध है कि समय का कोई बंधन नही है - आप मनमाफिक जित्ती चाहे उत्ती कविताएं सुनाएं"
आमंत्रितों में से एक ने कोने में रखी एल्युमिनियम की देगची में पड़ी सौ से ऊपर इडली वड़े गिन रहा था और पीतल के काले तपेले में पड़े खुले सांभर पर भिनभिनाती मख्खियों को देखकर कविता ढूँढ रहा था अपने ग्यारह संग्रहों में से
सामने के सात श्रोता अपना जीवन समर्पित कर बैठ गए थे कविता के मैदान में
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कविताओं पर आपका काम इधर पढ़ा भी और सुना भी बहुत , किसकी पक्षधरता है आपकी कविताओं में और किससे संलग्न है प्रलेस, जलेस, जसम या ...
कहाँ पढ़ा, स्क्रीन शॉट भेज दीजिये फेसबुक पर लगा दूँगा, और जो कविताएं इकठ्ठी छाप दें कम से कम 15- 17 और एक माह में पारिश्रमिक भेज दें - बाकी तो सब ही ही ही ही ही ...
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कवि ने कहा कि "सर्दी बहुत है और गजक खाने का मन है, चलो ना कही चलते है ...."
होठ के नीचे लटक आये लसलसे से अमृत रूपी नाक को पोछती हुई कवियत्री बोली - "तुम तो रहने ही दो, गजक खाओगे और गुड़ की, राब की या गन्ने की बात करोगे और सीरीज़ में कविताएं पेल दोगे, ये रखो दस का नोट और जाकर कही खा लो और अब फालतू बात करना मत" , नाक समेटकर सर्दी से परेशान कवियत्री मोबाइल देखने लगी


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