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Drisht Kavi 10 Dec 2019


अपने गिरेबाँ में झांको
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हिंदी में जो लोग 30 से ज़्यादा वर्षों से कविता लिख रहे है, संग्रह के नाम पर भले ही दो क़िताबें आ गई हो पर वास्तविकता यह है कि वे उम्र के छठे दशक में आकर वे अस्वीकृत ही है और यही कारण है कि वे गाहे बगाहे स्कैंडल बनाकर चर्चा में बने रहते है और यह चर्चा साहित्य की नही बल्कि बेहद सस्ती किस्म की पोस्ट्स या आलेख लिखकर या किसी पर निजी टिप्पणियाँ करके - वो भी बिलो द बेल्ट करके अपना तथाकथित साम्राज्य बनाने की कोशिश करते है
25 से 35 वर्षों तक कविताएं लिखकर भी यश, समृद्धि , पुरस्कार और कुछ हाथ ना लगें तो जाहिर है एक खीज और कुंठा होती ही है पर इस सबमें अस्सी नब्बे के ये पाथेय या काँटे अपने गिरेबाँ में झांककर भी नही देखते , कुल मिलाकर सेटिंग, यारबाशी और निजी सम्पर्कों से कविता के गलियारे में फिट होने की कोशिश करते है
बहुत सारी कुंठाएँ है - हिंदी छोड़कर राजनीति, समाज शास्त्र, भूगोल, इंजीनियरिंग, चिकित्सा, दीगर भाषा या अन्य आनुषंगिक विषयों की दहलीज पर स्वांग बनाकर आये और तुलना हिंदी वालों से करने लगे , तीसरा कोई प्रशासनिक पद नही ले पायें लिहाजा इस कविता के सेक्टर में आने के बाद प्रशासनिक अधिकारियों या उनकी पत्नियों से दोस्तियाँ गाँठकर स्पेस घेरने की कोशिश की, हिंदी का व्यवस्थित अध्ययन ना कर पाना और हिंदी की परंपरा से सर्वथा दूर ये अध्येता सरकार में होने से भी कायराना प्रवृत्ति के रहें, विचारधाराओं के भँवर जाल में भी उलझे इसलिए ना प्रलेस के रहें और ना जलेस के - सबसे हीहीही करते और खैनी खाते हुए गलबहियां करके सिर्फ और सिर्फ मौके तलाशते रहें
हर जगह होने से और हर जगह ना होने से एक डुगडुगी बनकर रह गए और कविताओं में बिम्ब, उपमा या प्रांजल भाषा का प्रयोग करते करते ये इतने लचकदार हो गये कि कामरेड लोग इन्हें स्त्रैण कवि कहने लगे सार्वजनिक रूप से - उसमें भी बुराई नही पर जिस तरह का एटीट्यूड विकसित हुआ इनमें वह अकल्पनीय था, कुछ तो टीवी लेखन में घुसकर सीरियल लिखने लगें, कुछ प्रकाशक बन गए, कुछ देशाटन करने लगें क्योकि गली मोहल्ले में तो लोगों ने पहचानना बंद कर दिया , एक और तरीका निकाला इन्होंने कि बाहर से तगड़ी सेटिंग की जाएं और नई उभरती काव्य प्रतिभा पर हाथ फेरते हुए आत्म मुग्ध होकर उन्हें पैम्पर करें - ताकि इसी बहाने से नाम और यश की गूंज चहूँ ओर बनी रहें
यह सिर्फ कविता की नही बल्कि कहानी, आलोचना और उपन्यास की भी यही स्थिति है , मीडिया में भी साहित्य के पेज देखने वालों की यही स्थिति है, नई दुनिया जैसे अखबार ने बहुत ही सुनियोजित तरीके से आकाशवाणी से लेकर निजी महाविद्यालयों में बाबूगिरी करने वालों को साहित्य के पेज पकड़ा कर बहुत भाई भतीजावाद फैलाया और कई नत्थू खैरों को साहित्यकार बना दिया मज़ेदार यह था कि ये पेज पर बैठे नाग कई प्रकार की साहित्यिक एवं ललित कलाओं में चोरी के आरोपों में दोषी पाए गए है और इन्होंने इन पेजो का बेजा इस्तेमाल किया और देश भर के लोगों को दूरदर्शन या आकाशवाणी का सरकारी रुपया बांटकर यारी दोस्ती बनाई और खुद आत्म मुग्ध होकर गदगद होते रहें , अब स्थितियां बेहतर है अखबारों में पेज पर दक्ष, पारंगत और कुशल लोग है जिन्हें इन जैसे घाघ अवसरवादियों को भेदने की क्षमता है इसलिए ये दूर है
संपादकों का हाल और बुरा है वे मालिकों के बंधुआ है और उन्हें कागज भरना है इसलिए उन पर टिप्पणी करना बेमानी है, वे जाति और जेंडर देखकर छापने के धंधे चला रहे है
सवाल कई है पर सोशल मीडिया की वजह से मेरे जैसे मूर्ख जब थोड़े फेमस हो जाते है तो इन 40 साल से कलम घिस्सुओं को इतनी तो अक्ल है ही कि टिका कैसे जाए - सबने अपने अपने इष्ट बना रखें है जिन्हें रोज टीका आरती कर जिंदा रखते है
ख़ैर , यह एक गम्भीर टिप्पणी है बशर्तें इसे कोई कविता , कविता की बहस के बरअक्स अपना गम्भीर मूल्यांकन करें एक कवि, कहानीकार या साहित्यिक व्यक्ति होने के नाते , बहरहाल .... ये सिर्फ रिश्तों की खा रहे साहित्य और रचना के नाम पर, जबकि हिंदी में एमए पास लौंडा हजार गुना ज्यादा बेहतर लिखता, समझता है क्योंकि वह हिंदी की वृहद और समृद्ध परम्परा से आता है इसलिए उसकी समझ ज्यादा है उसने किसी सेटिंगबाज से ना कुछ जँचवाया है और ना ही फोन करवाये है
शुक्र यह है कि मैंने आजतक कुछ किसी से जँचवाया नही, कई बार मित्रों ने आग्रह किया कि लाओ बैठते है पांडुलिपि बना लेते है और ठीक कर लेते है - एक कविता की किताब लाई जाये पर किसी को जँचाने की जरूरत नही और ना उपकार होना, मेरी तो मात्रा की भी गलतियाँ है और वर्तनी भी ग़लत है पर फिर भी पूरी बेशर्मी से लिखता पढ़ता हूँ और खरी खरी लिखता हूँ - कोई भले ही कुंठा विसर्जन कहें, हलकट, गलीज़ कहें या पत्थर फेंकना कहें
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मंच पर दस बारह कवि थे दो महिला कवि भी , प्रिय कवि की कवियत्री को आमंत्रण नही था - लिहाज़ा वो नखरा कर ठीक सामने बैठी थी और कवि को नयनों से ऊर्जा दे रही थी
अचानक कवि को लघु शंका के लिए जाना पड़ा, कविता पढ़ने का नम्बर भी आ गया था सो वे एक कमरे नुमा दड़बे में घुस गए, निवृत्त होकर जो गठान बांधने को नाडा खींचा एक झटके में साला टूट गया

अब कवि मुसीबत में कि क्या करें कमर जो हॉल बन गई थी उस पर टिकाने को क्या करें नाडा दगा दे गया अपनी प्रिय कवियत्री को पेशाबघर में बुला भी नही पा रहे और बाहर माईक पर नाम पुकारा जा रहा है
युवा धड़कन, सांगठनिक क्षमता के धनी, ओजस्वी कवि, चार किताब के लेखक, प्रलेस के राज्य प्रतिनिधि , नई धारा के कवि और दर्जनों पुरस्कारों के विजेता मंच पर आमांत्रित है
कवि क्या करे - नाडा टूट गया और पाजामा जमीन पर है पट्टे की चड्ढी भी झूल रही है, मलमल का कुर्ता भी शर्मा गया अब तो
उफ़्फ़ - हिंदी कविता का दुर्भाग्य, प्रेम में आबद्ध कवि और श्रृंगार रस की कविताएं
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काहे पेज लाइक करने का दुराग्रह करते है मियाँ
क्या है आपके पेज पर जो प्रोफ़ाइल में नही है और अगर है भी तो क्या है ऐसा कि नही देखा या पढ़ा तो आग लग जायेगी, संसार खत्म हो जाएगा
मेहरबानी करके मुझे ये पेज वेज और यूट्यूब सब्सक्राइब करने के निवेदन नही भेजे
जहाँ तक याद है अपुन ने कभी नही कहा नही कि पेज लाइक करें या लिखें पढ़ें , नशे - पत्ते में भेज दिया हो तो माफ़ी, नागरिकता बर्खास्त करा देना मेरी हुजूर पर अब नही करूँगा बुढ़ापे की कसम - सुन लो जवानों
और न पढ़े मेरे लिखें को किसी डाक्टर ने नही कहा आपसे पर ये जुल्म मत करो, मैं अपनी राजी खुशी के लिए, कुंठा मिटाने के लिए ग़लीज़ और हलकट भाषा में नीच नराधम पापियों को लक्षित कर रोज दिनभर लिखता हूँ और मेरा काम ही है कि ओटले पर बैठकर हर आने जाने वाले को, सरकारी टाइम में फेसबुक पर हरामखोरी कर रहें इंसान, कहानीकार, कवि , आलोचक और रचनाकार को पत्थर फेंक कर मारूं ताकि वे आहत हो और मेरे मजे लें और अंत में दया का पात्र बनाकर छोड़ दें
मोबाइल नम्बर दिया नही कि वाट्सएप ग्रुप में एड करेंगे - अपने घर पहुंचने के पहले ससुरे एड कर लेते है बगैर पूछे , फेसबुक में एड किया कि पेज, इवेंट, मृत्यु कब होगी, अगले जन्म में सूअर बनेंगे या कुत्ते और ना जाने क्या - क्या, और अब उपर से यूट्यूब - ब्लॉ ब्लॉ ....
फिर लाइव देखने के और वाच पार्टी के प्रणय निवेदन हाय रे मर जावाँ इस मासूमियत पर और कुछ नही किया तो इनबॉक्स में हाजिर कि भिया देख लो यार
अंत नही कोई इनका 
जय हो आपकी
[ यह पोस्ट कुछ घाघ गिद्धों को भी संबोधित है इसलिए सन्दर्भ पूछना होतो निसंकोच पूछे तमाम आत्म मुग्ध किशोरों, तरुणों, युवाओं और मिस इंडियाओं की घोषणा करूँगा यहां
"लगेगी आग तो तेरा भी घर आएगा "... राहत साहब से मुआफ़ी सहित ]

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