"बहुत दिन कुछ मज़ा नही आ रहा "
"कवि गोष्ठी रख लो, यार दोस्त भी आ जाएंगे मिलना जुलना हो जाएगा और ठिलवई भी झकास वाली..."
"सई है भिया और उसको जरूर बुलाना , गज्जब की लोच है आवाज़, शरीर और कविता में..."
"एक कट चाय और कुत्ता भी ना खाएं वो मैरी के दो बिस्किट जितना सस्ता मनोरंजन और कही होगा क्या।।"
पर्दा गिरता है और ठहाका बजता है
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"तो फिर क्या करें बुलाना तो पड़ेगा और वो छोड़ेगा भी नही, निरीक्षण तो करेगा ही साला"
"एक काम करो - बड़े बाबू ने बोला, दोपहर में ही एक कविता गोष्ठी रख लो - लंच के तुरंत बाद, अधिकारी है ससुरा कविता तो लिखता ही होगा, पूरे मुख्यालय के बाबू, पटवारी, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, स्वास्थ्य कर्मियों और चपरासियों को बुला लो - भीड़ देखकर खुश होगा"
"सही है बड़े बाबू , आपको अनुभवी यूंही नही कहते लोग" , गिरधावर समोसे वाले को सेट करने चल दिया था और एसडीएम मुस्कुरा रहा था"
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"देखिए ये फेसबुक नही कि आप छह सात कविताएं पेल दें और फिर हर दो कविता के बीच ज्ञान भी दें " - संचालक भुनभुनाया
"बस दो और कविताएं जो मल्लिका ए हुस्न के लिए खास लिखी है " - दूर देश का कवि था जो किसी सरकारी कॉलेज में अँग्रेजी का मास्टर था और लोक लुभावन हिंदी कविता रचता था
"अबे उठ ना, साले वो बुढ़िया तीन नाती - पोतों की दादी है और उसकी पांच जीवित संतानें है सबका ब्याह हो गया है, रिटायर्ड हो गई है " - संचालक माईक पर ही बोला
"अरे पर उसकी काली जुल्फें और कजरारे नैन "- कवि बोला
"अबे साले सात रूपये का गोदरेज रंगीला लगाती है और लक्स का नखरा पोतती सुबह उठकर , माईक बंद करो रे और बजरंग भिया को बुलाओ, साला उठेगा नही माईक के सामने से तब तक, ये मास्टर कवि भी ना...." - संचालक भुनभुनाया हुआ था
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