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Drisht Kavi 24 Dec 2019

हेलो, जी, जी, जी नमस्कार, कैसे है - माड़साब बोले
जी बढ़िया , आप सुनाईये - कवि ने कहा
असल में क्या है हमारे यहां बच्चे एक कवि गोष्ठी करना चाह रहे है, विवि के पास कुछ है नही, आप हिंदी विभागों का दलिदर तो जानते ही है, आ जाईये आप भी -अलाने, फलाने, अमके , ढीमके भी आ रहे है - माड़साब जाल फेंक रहें थे
जी , वो कुछ.... - कवि सकुचाया
नही जी , कुछ दे नही पाएंगे - किराया भी नही , बच्चे है शोधार्थी है सब , रहने की व्यवस्था कर देंगे होस्टल में , खान नदी भी घूमा देंगे, यहां बड़ी मस्जिद है - वह भी देख लेना, सबसे मिलना हो जाएगा - ठीक है ना , कार्ड में नाम छाप रहें है आपका - माड़साब ने अंतिम बात कही और फोन काट दिया
कवि हिसाब लगा रहा था, स्लीपर से भी गया तो ढाई हजार, रास्ते के और ऑटो बाकी सब मिलाकर छह हजार तो पड़ेगा कुल और साला मिलेगा क्या - कुछ नही , ऊपर से घरवाली को क्या बोलूंगा, बच्चों की फीस भरनी है अभी ...
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कवि गोष्ठी के पहले गर्म जलेबी हो जाती तो ठीक रहता - एक कवि बोला
देखिये बड़ी मुश्किल से हम चाय दे पा रहें है, चंदा हो नही पाया और मिरचू सेठ की सास गुजर गई है तो वे अभी गुजरात है, अगर आप कविगण बुरा ना मानें तो कुछ चंदा दे दें - ये माईक, टेंट और कुर्सी का भाड़ा देना पड़ेगा - आयोजक कातर स्वर में गिड़गिड़ा रहा था
कवि औचक से देख रहे थे और सोच रहें थे इस सर्दी ने कविता पढ़े या निकलें ट्रेन, बस से
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विवि का हिंदी विभाग यूजीसी से रुपया ऐंठकर ठेके पर कविता गोष्ठी करवाता था हर साल, कवि कम मास्टर किस्म के कवि आते
अबकी बार शोधार्थियों को चमकाते हुए हेड ने कहा कि "न्यूज नही आई किसी भी अख़बार में और फेसबुक पर 500 से ज़्यादा लाईक और 100 कमेंट नही आये आयोजन पर तो अगले छह माह की स्कॉलरशिप के फॉर्म पर साईन नही करूँगा - अब आगे तुम लोग समझ लेना"
शोधार्थी में से दो कैम्पस के अस्पताल में भर्ती हो गए है डॉक्टर को दुई हजार देके और मेडिकल बनवा लिया है एडवांस में
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मुश्किल से सात श्रोता थे हॉल में, इडली, वडा, सांभर और चाय- बिस्किट के बाद भी लोग साले सुनने को आते नही
संचालक ने बाहर से आये नौ कवियों को मंच पर ससम्मान बुलाया, स्थानीय तीन कवि, चार पसंद की बूढ़ी कवियत्रियों को - जो झकास वाली माहेश्वरी साड़ी पहनकर और भयंकर वाला डियो मारकर आई थी, मंच पर बिठाया
स्वागत भाषण में संचालक बोला - " यह नितांत ही अनौपचारिक कार्यक्रम है - जिसमे हम इस जिले के प्रगतिशील लोग एक परिवार के माफिक रहते है, ज्यादा भीड़ और श्रोताओ को आमंत्रित नही करते इसलिए कि हम पेटभर कविता सुनकर उस पे गम्भीर चर्चा कर सकें, आप सबसे अनुरोध है कि समय का कोई बंधन नही है - आप मनमाफिक जित्ती चाहे उत्ती कविताएं सुनाएं"
आमंत्रितों में से एक ने कोने में रखी एल्युमिनियम की देगची में पड़ी सौ से ऊपर इडली वड़े गिन रहा था और पीतल के काले तपेले में पड़े खुले सांभर पर भिनभिनाती मख्खियों को देखकर कविता ढूँढ रहा था अपने ग्यारह संग्रहों में से
सामने के सात श्रोता अपना जीवन समर्पित कर बैठ गए थे कविता के मैदान में

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