फिर भी पूछ लो थोड़ी नैतिकता बाकी हो या गेहूं की रोटी खाते हो.............कि लेख छाप पाएंगे या नही !!!
[एक सहायक सम्पादक को अभी पूछा जब लेख के बारे में कोई सूचना नही मिल रही, तो उस भले आदमी ने कहा कि सम्पादक के टेबल पर है लेख और वो अभी कुछ कहने की स्थिति में नही है - तो मैंने कहा उपरोक्त ]
यही हालत भास्कर प्रायोजित और अब इंदौर से प्रकाशित 'अहा जिंदगी' की है सम्पादिका महोदया नवम्बर 2017 से कविताओं पर बैठी है और अशिष्ट इतनी कि चार बार मेल लिखने पर भी जवाब देना नही है
दो कौड़ी के चोरी चकारी से कॉपी पेस्ट करने वाले लोग जवाब नही देते और "अग्रवालों ओसवालों या जायसवालों से लेकर चौथी फेल लोगों की चाटुकारिता में लगे रहकर अपनी नौकरी बचाते रहते है तो अखबार - पत्रिका का मरण जल्दी हो जाता है या वो बस स्टैंड पर बिकने वाली पत्रिका बनकर रह जाती है" यह बात इसी पत्रिका के पहले सम्पादक और मित्र यशवंत व्यास ने बहुत साल पहले मुझे जयपुर में इसी पत्रिका के दफ्तर में कही थी - तब अंदाज नही था कि इतने नीचे गिर जाएगा स्तर और गेहूं की जगह गोबर भूसा खाने वाले सम्पादक बन जाएंगे
पापड़ बड़ी अचार और पति को रिझाये जैसे आलेखों से मधुरीमा निकालने वाले साहित्य के सम्पादक बन जाये तो यही होगा ना
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दैनिक भास्कर कितने और लोगों की फर्जी रिपोर्ट बनवायेगा
पतित हो गया है , एकदम फर्जी , घोर चाटुकार और सत्ता का दलाल कि राष्ट्रीय प्रतीक पर शिवराज, कमलनाथ और सिंधिया का फोटो चेंप दिया इससे ज्यादा अक्ल की कमी का सबुत होगा कोई, इस पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा नहीं बनता क्या
और इस सबकी जरूरत क्या है, किस डाक्टर ने लिखकर दिया कि चापलूसी इतनी करो कि मोदी / शिवराज को लेकर हर दो माह में नकली और Fabricated सर्वे छापते रहो
दिमागी दिवालिया हो गया है भास्कर
अफसोस कि वहां अभी भी कुछ समझदार है पर वे भी भेड़ बन गए
एक अखबार का क्या काम होना चाहिए जब कोई अखबार यह भूल जाये तो उसका बहिष्कार ही मत करो - वहां के लोगों को सड़कों पर बुलाकर उनकी औकात दिखाओ और मालिकों का हुक्का पानी बन्द कर दो
बुद्धिजीविता के नाम पर चोरी चकारी से रचना कर्म में संलग्न, चरित्रहीन, आत्महत्या तक करने को आतुर,पाँच करोड़ तक देने को तैयार, पीत पत्रकारिता के शिखर जब अखबारों में बैठते है तो किसी भी अखबार को दो कौड़ी का होने में और इस हद तक गिरने में कोई समय नही लगता
यह समय बहुत सम्हलकर न्यूज आईटम, प्रायोजित खबरों और बिके हुए मीडिया के दलालों का है जो रुपये , नाम और यश के लिए सब कर रहे है
हकाले गए पत्रकार घटिया किताबें लिखकर आत्ममुग्ध हो रहे है, पुरस्कार बटोर रहें है , किताबों की गिनती कर रहें है कि आज कितनी बिकी, कुछ अपनी पुरानी सड़ी गली, भूत प्रेत की सदियों पुरानी फेब्रिकेटेड और उलजुलूल तरीकों से बनाई गई कहानियां छापने को बेताब है - जिनका कोई सन्दर्भ नही है और बाकी पत्रकारिता का मुलम्मा चढ़ाकर अपने को बेचने पूरी नंगई और बेशर्मी से बाजार में खड़े होकर भयानक आत्म मुग्ध हो गए है जिसका अब कोई इलाज नही है
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मप्र में कल केबिनेट की बैठक सम्पन्न हुई
यह देखिये एक निर्णय की बानगी
स्कूलों का बैंड बाजा बारात निकालने की तैयारी
यानी लगभग 15000 सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया जाएगा - जिम्मेदार हम है जिन्होंने कोस कोस कर सरकारी स्कूल को बदनाम किया और शिक्षा के नाम पर दुकानें खुल गई इस तरह गरीब और हाशिये के लोगों को प्राइवेट स्कूलों के जाल में फंसने को मजबूर कर दिया और याद रखिये धीरे से जो पद सृजित थे वे भी खत्म हो जाएंगे
शिक्षकों को यह समझ नही आ रहा कि यदि वे मेहनत कर सरकारी स्कूलों की प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित नही करेंगें, बच्चे नही आएँगे तो उनकी आजीविका भी खतरे में है और बाकी सरकार तो चाहती ही है कि उस पर लेश मात्र भी जवाबदेही ना रहें
यही हाल हमने सरकारी अस्पताल और इससे जुड़ी सेवाओं का किया है फलस्वरूप अब निजी अस्पताल हावी है और स्वास्थ्य बीमा योजना के लागू होने के बाद असली रँग ढँग दिखेंगे जब सरकारी डाक्टर और व्यवस्थाएँ खुद वेंटीलेटर पर होंगी और बहुत जल्दी बन्द हो जाएंगी
Bring Back Pride to the Govt School
चित्र आज की नईदुनिया के समाचार का
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लो मैं भी तुम्हारा नाम रख देता हूँ और आजीवन यही कहूँगा
भ्रमित चाह
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* 60 - 70 साल पुरानी कहानी
* 100 साल पुरानी विदेशी भाषा का चोरी किया अनुवाद
* अपनी या अपनों में से किसी की लिखी कहानी कविता या लेख उठा लो
और थोड़ा सजा धजा के उसे वाट्स एप पर पेल दो और 100 - 120 लोगों के मत्थे उंडेल दो सुबह सुबह
फिर दिन भर ज्ञान की बातें सुनो और सारे ज्ञानी धे ज्ञान पे ज्ञान पेलेंगे और कोई इधर उधर हुआ या विषय से अलग हुआ तो तीन चार प्रशासक किस्म के मुस्टंडे डांटेंगे और कहेंगे कि कहानी, कविता या इस चम्पू के लेख पर ही बात करो और ऐसी बहस, ऐसे तर्क कुतर्क कि पूछो ही मत - भोपाल की भाषा मे बोलूं तो "कोई खान पतला नी मूत रिया"
शाम से रात होते - होते विशुद्ध ठिलवई करो महिला हो या पुरुष अश्लीलता की हद तक और फिर चुप्पी - सुबह उठकर फिर नया माल मसाला और चोरी चकारी का माल
सब बेहद अनुशासन से, बारी बारी से तीन चार लोग ठेठ तानाशाही का दायित्व निभाते हुए कचरा लाएंगे , और तो और लोकतंत्र के नाम पर एक दिन छुट्टे लोगों को अपनी भड़ास पेलने के लिए छूट वो भी कहने को - ये मुस्टंडे उँगलबाज वहां भी सक्रिय रहेंगे
"तू मेरा चाँद मैं तेरी चांदनी" टाईप वाली चापलूसी और हर कोई जिसे कोई काम नही और बड़ी बेशर्मी से घर की बर्तनवाली से लेकर बच्चों के होमवर्क और मेहमानों के आने - जाने के जिक्र होते हुए भी 100 साल पुरानी गैर प्रासंगिक कहानी - कविता पर जो लोग चुतियापा बरसों से कर रहे हो - उसे भी वाट्स एप विवि का ज्ञान ही कहते है
वाट्स एप विवि पर सिर्फ राजनीति या मीडिया की मूर्खताएं ही उज़ागर नही होती - बड़े बड़े बल्लम और उलुकराज, गधत्व में शोध की डिग्री लिए कुपढ़ बैठे है और आप कुछ बोलोगे तो एकाध डेढ़ अक्कल फेसबुक पर आकर आपको रायता दे जाएगा कि क्यों बोलते हो - कम ही तो लोग है जो सार्थक कर रहें है और यह कहकर कान कटा कर बड़ी बुद्धि की जात में शामिल हो जाएगा जो रुपयों के लिए किसी भी जगह बैठकर विष्ठापान कर सकते है
इन चूतियों पर भी प्रतिबंध लगाओ जो ग्रुप बनाकर रोज अरबों टन गोबर करके उसे ही पगुराते रहते है वर्षों तक
और सबसे मज़ेदार ये हिंदी साहित्य के झंडा बरदार है जो साहित्य को बेचकर सत्यानाश कर रहे है, यदि अपराध बोध देखना हो तो इनके एडमिनस को देखिए जो जीवन मे कुछ नही कर पाएं पर समूहों के एडमिन बनकर हिटलर को मात दे रहे है
है आप किसी साहित्यिक समूह में या जुड़वा दूं
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