Skip to main content

Posts between 16 to 22 August 2018


जिस अंदाज में विश्व हिंदी सम्मेलन में अपने हिंदी, अहिन्दी और मीडिया वाले गए हेंगे उससे तो लगता हेगा कि सिरिफ किराए को ही जोड़ लो सबके तो अपने महान भारत देस के किसी झुमरी तलैया में ये सम्मेलन हो जाता भिया
दूसरा हरेक जना केवल वहां के समुंदर, सड़क, टेंट, पाइनापाल के मुरब्बे, फ़ानूस और राखी के शुभ अवसर पर टेम्परेचर, सॉरी यार - टेम्परेरी में बनाई गई उदर की गोरी चिट्टी बहनों के रँग बिरँगे फोटू हींच हींच कर पोष्ट करके मॉरीशस ना जा पाए - बड़े बड़े बल्लम और हम जैसे कुंठितों की आत्मा जला रिया हेगा
कोई नी बता रिया कि हिंदी के बहाने कमरों में , बड़े बड़े टेंट में क्या हुआ, वो क्या केते है पैनल डिस्कशन में क्या हुआ और निकला कि - नी निकला हिंदी का भोत बढ़िया भविस्य हेगा और अब भारत के माड़साब हूणं ही पूरी दुनिया को एकदम से बदल देंगे
बोलो रे , बोलो - भोत सोच रिया हूँ मैं तो हिंदी का

यदि सच को भी सच की तरह से लिख रहे हो मसलन -
किसी की जो वास्तविक उम्र है और उम्र के लिए भाषा मे जो मानकीकृत शब्द है - उम्र या शब्द लिखो तो भी दिक्कत है
जो हो रहा है और सार्वजनिक रूप से सबको मालूम है उसे भी यदि सिर्फ उसी भाषा मे लिख रहे हो तो दिक्कत है
यदि आप आंकड़ों को आंकड़ों की जुबान में लिख रहे हो तो भी दिक्कत है
यदि व्यक्ति या समूह विशेष के लिए सामान्यीकृत करते हुए लिख रहे हो तो भी दिक्कत है
व्यक्ति या समूह विशेष को टारगेट कर लिख रहे हो तो दिक्कत है
यदि आप वास्तविकता जानकर अभिव्यक्ति के अधिकार के तहत लिखते हो तो भी जताया जाता है कि लिखना है तो लिखो पर यह नंगा सच लिखना दिक्कत करेगा
यदि आप दूसरों, अपनों, सार्वजनिक जीवन, या महत्वपूर्ण पदों के लोगों के बारे में ना लिखें या लिखें तो भी दिक्कत है
आप हर शब्द लिखने से पहले उस व्यक्ति, घटना या वस्तु विशेष से जुड़े एक, दस, सौ, हजार, लाख या करोड़ लोगों से अपने लिखें को सहमत करवाकर लिखें तो भी दिक्कत है
आपके क्या पूर्वाग्रह है - कविता, कहानी, आलोचना या साक्ष्य आधारित घटनाओं की रपट या बोले गए श्रीवचनों की रपट पर यह लिखो तो भी दिक्कत है
और इस सबके बाद लिखो - लिखो, सबको छूट है और हम कोई सवाल नही कर रहें हम तो सिर्फ कह रहे है कि बगैर जाने बुझे जोश में अपशब्दों का प्रयोग कर किसी पर लांछन लगाते हुए , किसी की नेकनीयती और मंशा पर सवाल ना उठाते हुए लिखो, हम पढेंगें ना - खूब लिखो
असलियत हमें मालूम है पर हम बताएंगे नही , छाती पर बांधकर धमकाते हुए ले जाएंगे अपने साथ , सच नही बताएंगें पर तुम।लिखो, खूब लिखो
Objectively or subjectively लिखो हम तो दोनों पर टोकेंगे पर तुम लिखो - जो भी लिखना है लिखो, हम कुछ नही लिखेंगें, हम सिर्फ टीका करेंगे तुम्हे कोई दिक्कत है तो भी लिखो

किसी भी विवि में परोफेसर बनने के भोत फायदे है भिया 
आप सत्ता के छात्र विंग की पार्टी के अधियकस बन सकते हेंगे एकदम से मस्त जवान छात्रों वाली गुंडई कर सकते हेंगे

अपनी सरकारी कार के सरकारी जुवा डिरावर को सिलेक्ट करके पी एच डी भी करवा सकते हेंगे बिचारा सात जन्मों तक दुआ देगा कि साब ने डिरावर से डाकसाब बना दिया
ये भारत है और सब होता है, राज काज है सब बर्दाश्त करना सीखो

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही