वो कहां गया रामदेव नामक कालाधन का जनक आज कुछ बोला नही - चतुर ठग , शर्मनाक है कि देश का प्रधान मंत्री झूठ झूठ बोलता रहा, 15 लाख से लेकर नोटबन्दी तक और अभी भी चुप नही बैठ रहा - रोज रोज नए नए शगूफे छोड़कर अब देश के बुद्धिजीवियों और संस्कृतिकर्मियों से बदला लेने पर उतर आया , यह सरकार हर बार ध्यान भटकाने को नए औजार ढूंढ़ते है कितना अफसोसजनक है यह सब
यह फर्क होता है पढ़े लिखें नेहरू, शास्त्री, इंदिरा, वीपी सिंह, गुलजारीलाल नंदा या राजीव गांधी में और इस वर्तमान प्रधानमंत्री में, जिसे अपनी डिग्री दिखाने के लिए दिल्ली विवि में जाकर धमकाना पड़े या सूचना के अधिकार कानून को धता बता कर जनता को मना करना पड़े उस पर क्या भरोसा , उर्जित पटेल को भी लाया पर उसकी भी रीढ़ कभी तो सीधी हुई ही होगी और उसकी भी औलादें है और भविष्य है
जिन लोगों को उस दौरान जान देना पड़ी क्या उनकी मौत के लिए इस सरकार के निर्णय लेने पर गैर इरादतन हत्याओं का मुकदमा दर्ज नही होना चाहिए , जिन लोगों को शादी ब्याह से लेकर नौकरी में जलील होना पड़ा या बेरोजगारी का दंश झेलना पड़ा क्या उनके लिए मानहानि का मुकदमा नही बनता, जबकि संविधान सबकी गरिमा की बात करता है
नितिन गडकरी के यहां या कर्नाटक और आंध्रा में करोड़ों की शादी नगदी से हुई उनके खिलाफ कोई मुकदमा नही बनता, जेटली तो बीमार हो गया और छह माह से मुझे लगता है रिजर्व बैंक में यह मामला सुलटाने में लगा था और अब लौटा तो 3 दिन में ही नोटों की गिनती हो गई और सब यही निकला तो मामला क्या है
सिर्फ और सिर्फ उप्र में चुनाव जीतने के लिए यह नाश किया गया और देश को अंधी गुफा में धकेला गया , कमाल यह है कि जो राष्ट्र भक्त थे वही चिरकुट देश भक्ति में देश को अँधेरे में ले गए और अब चेहरे पर शिकन भी नही
ये अकड़ और ये भ्रम, झूठ और खोखलापन कहाँ से लाते हो, ना शिक्षा - ना दीक्षा, ना समझ और ना दृष्टि और इतने बड़े देश को दो लोगों की जिद और तानाशाही ने बर्बाद कर दिया वो भी अम्बानी और अडानी जैसे दो टुच्चे लोगों के लिए
जस्टिस काटजू की उर्फ भारत की मूर्ख जनता को अभी भी यकीन है कि ये ही दो लोग उनके उद्धारकर्ता है तो भगवान करें यह भरम बना रहे जिस दिन सड़क पर नंगे होकर भूख से मरेंगे , अपनी औलादों को रोटी नही दे पाओगे, अपनी बीबी बेटियों की सुरक्षा नही कर पाओगे या खुदको नौकरी धंधों के अभाव में सल्फास खाना पड़ेगी - तब याद करेंगे और कहेंगें कि "एक था मोदी"
अभी भी समय है 31% लोगों की गलतियों का खामियाजा रेलवे से लेकर किसान तक भुगत रहे हैं यदि ये 5- 10 % भी बढ़े तो जीवन मे नरक यही देखना पड़ेगा - वैसे भी अभी कौनसा कम भुगत रहे है , अब तो सुप्रीम कोर्ट भी रोज खुलकर अपनी बात कह रहा है
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