केतन मेहता ने जरुर सोचा होगा कि यह नेतृत्व विहीन समय है और जब इस समय सारा देश और समूची मानवता एक गहन अन्धकार से गुजर रही है तो वे एक बुलंद नारे के साथ आते है जो सिर्फ शब्द नहीं वरन अपने आप में समूचे बदलाव की ओर इंगित भी करते है, और एक परिवर्तनकामी दिशा भी देते है. इस समय में जब आस्थाएं धुंधला गयी है, रोल मॉडल फेल हो गए है, विखंडित व्यक्तित्व अपने दोमुंहेपनसे लबरेज है और समय के चक्र में पीसता बेबस, लाचार आदमी लगातार हर मोर्चे पर जूझ कर अंततोगत्वा हारकर निढाल हो गया है - तो वे एक नारा ठीक दुष्यंत की तर्ज पर बुलंद करने की कोशिश करते है व्योम में कि कही कोई उठे और फिर ललकार करें कि "शानदार, जबरजस्त और जिंदाबाद". ये तीन शब्द नहीं पर एक खुले आसमान में पत्थर उछालने की अपने तई इमानदाराना कोशिश भी है. इस पुरे संघर्ष में एक जग से छिपी प्रेमाग्नि भी है जो सिर्फ ना पहाड़ को काटती है वरन एक समूची डूब रही सभ्यता और उस जाति को धिक्कार करने का जज्बा भी पैदा करती है जो अपने आप को बेबीलोन की सभ्यता से आगे सिन्धु घाटी के किनारों से होती हुई जेट युग में प्रवेशकर दुनिया का "जगसिरमोर" ...
The World I See Everyday & What I Think About It...