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"मिठास"



"मिठास"
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झगड़ा   तो रामखिलावन से भी किया 
जब समय पर कपडे इस्त्री करके नहीं दिए
सारे समय इस तरह झगड़ा कि 
अपने अन्दर का जानवर बाहर कब 
निकला और क्रूर हो गया मै 
पता नहीं चला, 
सिर्फ इस बात पर 
कि समय पर चार कपडे इस्त्री करके 
नहीं दिए मानो मुझे कही अंतरिक्ष में 
जाना था उस समय.

याद   आया सड़क पर भरी दोपहरी में 
जब मै विशुद्ध फुर्सत में था तो यूँही 
लड़ पडा था बस स्टेंड पर फगनलाल मोची से भी 
कि मेरे बरसाती जूतों को ठीक से चिपकाया नहीं
जब उधड गए थे तीन जगहों से 
एक नए शहर में बस स्टेंड पर मोची से झगड़ना
कितना वीभत्स था सिर्फ बारह आने के लिए,  
मुझे लगा था सही हूँ मै उस वक्त 

फिर   यह झगड़ा मेरे साथ एकाकार हो गया 
जब कभी कही से गुजरता तो लगता कि हर नजर 
घबराहट से देख रही है कि मै शुरू ना हो जाऊ 
गली मोहल्ले और घर परिवार में भी यही 
नजरें मुझे कोसती रहती और खौफ खाती 
एक शख्स एक शब्द के साथ जुड़ गया 
और इस तरह से झगड़ालू का विशेषण चिपका 
जिन्दगी की लम्बी व्यथा कथा शुरू हुई मित्रों 

ये   समय मिलजुल कर लड़ने का था 
झींगुर से लेकर दुनिया के वैश्विक बाजार से 
लड़ने की ताकत में आँखों के पानी के साथ 
जिगर का खून भी देना पड़ता है
लड़ रहे थे लोग बाँध से लेकर सब्जी के पेटेंट तक
चावल के बीज से लेकर संबंधों के दरक जाने को लेकर 
पर दोषी मुझे ही ठहराया गया हर जगह 

समय   गुजरता गया रामखिलावन और फगनलाल से झगड़े 
अब दफ्तर और साँसों की रफ़्तार तक आ पहुंचे है 
शहर दर शहर मै और मेरे झगड़े बढ़ रहे है
दुनिया के हर कोने में झगड़ों की 
आवाजें बुलंद होती जा रही है 
न्याय से लेकर हकों की लड़ाई में लोग 
झगड़ो से समझौतों पर आ गए है 

एक   दिन तय किया कि सब छोड़ दूंगा और 
हिस्सा बन जाउंगा इसी दुनिया का जो 
मिल बांटकर खाने खिलाने में यकीन करती है
आज मै किसी भी बात के लिए नहीं बोलता 
किसी भी गलत बात के लिए सवाल नहीं उठाता 
सबसे मेरे अच्छे रिश्ते है और मै देखता हूँ कि 
दुनिया एक नए स्वरुप में बदलती जा रही है. 

(किसी अपने के लिए जो झगड़े से बचाने में मुझे हमेशा लगा रहता है)


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अच्छी कविता...बधाई
अच्छी कविता...बधाई

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