Skip to main content

बड़े स्टेशन पर प्राथमिक सुविधा बनाम 108 की सुविधा



भोपाल रेलवे स्टेशन पर बैठा हूँ सुबह बेंगलोर जाना है। यह एसी का वेटिंग रूम है। जहां बैठे है वहां पास में एक बुजुर्ग सज्जन जिनके साथ दो और लोग है, को अचानक सीने में दर्द उठता है और पसीना आता है। मै समझ रहा हूँ कि यह हार्ट अटैक है और उनके साथ वालो को कहता हूँ कि 108 को फोन करो अपनी यात्रा स्थगित करो। थोड़ी देर में हम लोग उन बुजुर्ग सज्जन को सीधा लेटाकर आराम करने देते है तब तक एक शख्स प्लास्टिक का विचित्र सा स्ट्रेचर लेकर आता है और कहता है कि अंकल चलो । जब मै कहता हूँ कि उठाकर ले जाओ तो कहता है कोई है नहीं स्ट्रेचर उठाने वाला, आप उठवा दो, तो मै और उन सज्जन के पारिवारिक सदस्य उन्हें स्ट्रेचर पर लेटाकर बाहर ले जाते है।

जब मैंने पूछा कि डाक्टर कहाँ है , तो ड्राईवर कहता है अभी आयेंगे तब तक हम बाहर पहुंचते है वहाँ एक दुबला पतला सा लड़का खडा है। ड्राईवर को जब मैंने डांटकर पूछा तो बोला की ये ही डाक्टर है। जब मैंने उस लड़के से नाम पूछा तो हडबडा गया और बोला आपको क्या करना कि डाक्टर कौन है , मै देखभाल कर लूंगा । बहुत बार पूछने पर उसने अपना नाम राहुल बताया और बोला कि मै ही डाक्टर हूँ , जब मैंने पूछा कि क्या डोज इन्हें अभी दोगे, तो बोला पता नहीं!!! फिर मैंने ड्राईवर से पूछा कि स्ट्रेचर उठाने के लिगे कोई क्यों नही है और डाक्टर का झूठ क्यों बोला तो कहने लगा कि मेरी शिकायत मत करो मै तो समय पर आ गया हूँ । बहुत बार पूछने पर अपना नाम नहीं बता रहा था फिर जब मैंने जोर दिया और भीड़ का दबाव आया तो कहा कि रूप सिंह भदौरिया है। और तुरंत गाडी में घूस गया।

ये हालत है 108 की और स्वास्थ्य सेवाओं की। गाडी हमीदिया से आई थी और साथ ड्राईवर और शायद उसका गुटखा चबाने वाला कोई दोस्त रहा होगा। हम खूब चिल्ला लें , सर पटक ले, पर मप्र में स्वास्थ्य विभाग के निकम्मे लोगों को कोई नहीं सुधार सकता। 108 और जननी सुरक्षा वाहनों का तो भगवान् ही मालिक है। इस बात की जांच होनी चाहिए कि अभी इस गंभीर स्थिति को देखते हुए कोई डाक्टर 108 में क्यों नहीं आया था जबकि यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि गंभीर हार्ट अटैक का मामला है।

ये अगर राजधानी भोपाल और मुख्य स्थान रेलवे स्टेशन की बात है तो बाकी जगहों का क्या होता होगा। सोच सकते है ना आप ???

इतने बड़े स्टेशन पर कोई प्राथमिक सुविधा नहीं थी ना ही डाक्टर की व्यवस्था।

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही