अरे मर गया देश ज़िंदा रह गये तुम..........सन्दर्भ बिहार मिड डे मील कांड
बहुत दुखी हूँ आज, इसलिए नहीं कि बच्चे मर गये इसलिए कि इन सबने और मैंने भी उन बच्चो को मार डाला.
बहुत दुखी हूँ आज, इसलिए नहीं कि बच्चे मर गये इसलिए कि इन सबने और मैंने भी उन बच्चो को मार डाला.
देश
मे भोजन का अधिकार का एक बड़ा अभियान चल रहा है कई देशी विदेशी संस्थाओं के
रूपयों से. हमारे सुप्रीम कोर्ट मे दो जज हर्ष मंदर और एन सी सक्सेना
सालों से जमे बैठे है कि कैसे लोगों की गरीबी भूख को मिटाया जाये,
सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुधारा जाये, इन दों को सहयोग देने के लिए हर
राज्य मे सलाहकार है. मेरा सीधा सवाल है कि ये सब लोग क्या कर रहे है?
सिवाय अंतरिम आदेश निकलवाने के, आंकड़े बाजी करने और अपनी
व्यक्तिगत छबि बनाने के और हर्ष मंदर तो सिवाय कॉलम लिखने के क्या कर रहे
है ? क्यों ना इन सबके कार्य और इतने वर्षों के खर्च लेखा जोखा लिया जाकर
इनके नियुक्तियां भंग की जाये? सुप्रीम कोर्ट स्वतः संज्ञान लेते हुए इनसे
पूछे कि इनका इस तरह की व्यवस्थाओं को सुधारने मे क्या योगदान है और यदि ये
सिर्फ सर्वे, आंकड़ेबाजी, आलेख, शोध पत्र, टीवी पर लाईव बहस (जिसका
पारिश्रमिक भी मिलता है) एनजीओ और सब वही गोलमाल कर रहे है तो इन्हें ना तो
पद पर रहने का हक है ना ही कोई बहस कर ज्ञान बांटने का. मुझे याद पडता है
हर्ष मंदर और एनसी सक्सेना से लेकर मिहिर शाह, अरुणा रॉय, प्रो ज्याँ दे
रीज, अमर्त्य सेन से लेकर एक बड़ा गेंग भी इस तरह के बड़े काम मे शामिल है जो
सिर्फ और सिर्फ ज्ञान बाँट रहा है, रूपये और नाम कमा रहा है, काम क्या कर
रहा है नहीं मालूम......मै बहुत गंभीरता से यह प्रश्न उन मासूम बाईस बच्चों
की चिताओं को जलता देखकर उठा रहा हूँ, शायद लोगों को जानकारी ही नहीं है
कि सरकार ने या सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के बड़े प्रभावशाली लोगों को
नियुक्त कर रखा है और ये लोग देश भर मे और ज्यादातर विदेशों मे देश की भूख,
गरीबी, कुपोषण, मध्यान्ह भोजन, सार्वजनिक वितरण प्रणाली के बारे मे सिर्फ
कार्यशालाएं करते फिरते है और अपने शोध पत्र अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छपवाते
रहते है मोटा पारिश्रमिक वसूलते है और चांदी काट रहे है. ज़रा पूछा जाये
इनसे इन बच्चों की मौत का हिसाब क्या कोई तर्क है इनके पास हाँ हवाई जहाज
मे जाकर एक बढ़िया सी रपट फ़िर दे देंगे EPW मे ...........धिक्कार है तुम सब
पर ........दूकान चलाना बंद करो जितने दोषी वो सब है- नेता और कर्मचारी,
उनसे ज्यादा दोषी तुम सब हो हर्ष मंदर, एनसी सक्सेना और तुम्हारी पूरी
टीम......
जब
देश मे न्यायपालिका जनहित मे इतने फैसलें ले रही है तो क्यों नहीं सुप्रीम
कोर्ट मे बैठे भोजन के अधिकार को लेकर काम करने वाले हर्ष मंदर और एन सी
सक्सेना सीधे जाकर प्रधान न्यायाधीश से मिलते है और मांग करते है कि दस साल
पुरानी याचिका पर कोर्ट फैसला सुनाये और मामला खत्म करें ताकि सरकार नियम -
कायदे बनाकर अमल शुरू करें उसमे भी कम से काम पांच साल लगेंगे, पर सवाल यह
है ना कि माले मुफ्त और बाकि सुविधाएँ खत्म हो जाने का खतरा तो इन दोनों
को भी होगा और फ़िर इनके साथ दिल्ली दफ्तर मे बैठे कंसल्टेंट की फौज जो हवाई
जहाज से नीचे कदम नहीं रखती, सुकुमार जो ठहरे सब और विश्व सुंदरियां है
वहाँ , साथ ही हर प्रदेश मे बैठे सलाहकारों की भी हालत खराब हो जायेगी.
बिहार
का मिड डे मील का कांड हम सबकी सामूहिक विफलता का प्रतीक है जबसे हमने
अपनी सारी चिंताए और विश्वास सरकार रूपी तंत्र और उनसे जुड़े भ्रष्ट मक्कार
कर्मचारियों पर छोड़ दिए है अब हालात इसी तरह और बिगडेंगे. हम चाहते है एक
र्रोपया किलो गेंहू खाकर हम अपनी बीबी को गर्भकाल मे आंगनवाडी का भूसा
खिलाएं, फ़िर मनरेगा की मजदूरी से उसे नौ माह पाले, जननी वाहन मे बिठाकर
चौदह सौ रूपये लेकर बच्चा घर लाये और फ़िर उसी आंगनवाडी
का कुपोषित भोजन उस बच्चे को करवाए, फ़िर निशुल्क पाठ्यपुस्तकें लेकर और
सायकिल, गणवेश और मिड डे मील खाकर हमारी संताने कमजोर बने और फ़िर यह "लाईफ
सायकिल" यूँही चलता रहे अब सरकार को श्राद्ध और करने की व्यवस्था करना चाहए
ताकि बची-खुची स्वर्ग मे स्थान पाने की हसरतें भी पूरी हो जाये. शर्म कहाँ
है??? क्या हमारी आँखों का पानी सूख गया है या इतने बेगैरत हो गये है हम
कि इन नालायक नेताओं, ब्यूरोक्रेट्स, टुच्चे कर्मचारियों और घटिया एनजीओ की
चालें भी नहीं समझ सकते या जान बूझकर मख्खी निगल रहे है और
देश...........अरे मर गया देश ज़िंदा रह गये तुम..........
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