इन दिनों बाहर हूँ घर से और एक बड़े शहर मे रह रहा हूँ बस आश्वस्ति यह है कि ३३ रूपये रोज के हिसाब से मेरे पास ९९०/- नगद पड़े है और बल्कि ज्यादा ही होंगे गिने नहीं है. यदि और कुछ कम- ज्यादा पड़े तो सरकार से या बैंक से लोन लेकर चला लूंगा, और रहा सवाल मजदूरी का तो वो मनरेगा मे मिल ही जायेगी और ठीक समय पर मजदूरी का भुगतान भी हो जाएगा, एक रूपये किलो गेंहूँ और दो रूपये किलो चावल ......यार सोच रहा हूँ कि इस तरह से बचत करके मै खासा अमीर हो जाउंगा, आपमे से किसी का स्विस बैंक मे अकाउंट है क्या और मेरा अकाउंट इंट्रोड्यूस करवा देंगे? क्या है कि साला, खानदान मे किसी का स्विस बैंक मे अकाउंट नहीं है. मै जिंदगी भर तो कुछ कर नहीं पाया, अब कम से कम वहाँ एक बचत खाता खुलवाकर कम से कम अपने ऊपर लगे मुफ्तखोर टाईप वाले सारे पाप तो धो ही सकता हूँ और अपने पर लगे तमाम नाकारा तरह के लांछन दूर कर सकता हूँ. और गुरु इसी तरह से रूपया बचता रहा तो अल्ला कसम एक दिन बिल गेट्स मिरांडा फाउन्डेशन जैसी बड़ी दूकान खोल लूंगा और फ़िर सरकारों को नचाऊँगा कि मै ग्रांट दे सकता हूँ, क्या साला ये ठेका अजीम प्रेमजी या रतन टाटा ने ही ले रखा है फ़िर देखना सारे एनजीओ वाले मेरे आगे नाचेंगे, ही ही ही, ...........भाई लोग बहुत काम करना है और रूपया बचाना है अपने खाने पीने का इतना सस्ता जुगाड हो जाएगा बकौल मोंटेक दादा और प्राजी मौन मोहन सिंह के राज मे सोचा नहीं था, भगवान की कसम इत्ता फील गुड हो रहा है कि खुशी बता ही नहीं पा रहा हूँ और बस साली दिल की बात यहाँ फेस बुक पर टपक ही गई, डर लग रहा है कि यह सब पढकर सीबीआई या इनकम टैक्स वाले मेरे छप्पर पर छापा ना मार दें. भगवान, अल्लाह, जीसस, वाहे गुरु और बाकि सबके मिलाकर कुल पचपन छप्पन करोड देवी-देवताओं की कसम ऐसा सुख कभी नहीं मिला कि इतने सस्ते मे दो टाईम की रोटी और इत्ती बचत.....मन कर रहा है कि छत्तीस दूना कित्ते होते उत्ते का एक टायलेट भी बनवा ही लूं इस झटके मे. आज फ़िर जीने की तमन्ना है और मरने का तो कोई इरादा ही नहीं है...........
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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