एक दिन मुन्ना को बड़ी भारी नौकरी लग गयी मुन्ना के ख्वाब जैसे पूरे हो गए बस छककर दारू पीने लगा और सबको उसकी भाषा में चुतिया कहता था और वो बा देश की प्रतिष्ठित दुकान् का कर्मचारी था, मुन्ना को साली यही चीज अखरती थी कि यह सब पहले क्यों नहीं हुआ, क्यों किस्मत उसके साथ छल करती रही, मुन्ना आजकल अंगरेजी में भी लिखने लगा है सब कुछ बस थोड़ा बहुत गडबड रहता है पर साला माल तो मिल रहा है (एनजीओ पुराण ८८)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत
Comments