उन सबको माफ कर दो जो कभी अपनी राह में भूले भटके आ गए खलल डालने, और फिर एक नासूर बन कर रह गए जीवन पर्यंत, सबको माफ कर दो वे अबोध है, और नहीं समझ रहे कि इस तरह से वे कुछ भी हासिल नहीं कर पायेंगे और अन्तोगत्वा सिर्फ पछताकर रह जायेंगे. दोस्ती से, छलबल से वे कुछ नहीं सिर्फ अपना ही अहम संतुष्ट कर सकते है, जो अपने आप को दे नहीं सकते वे तुम्हे क्या देंगे इसलिए माफ कर दो और अपेक्षा छोड़ दो उनसे जो अपने थे और कभी नहीं हुए(मन की गांठे)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत
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