Skip to main content

Posts

Showing posts from July, 2024

Man Ko Chiththi - Post of 30 July 2024

इस संसार में अपना क्या है, जन्म किसी ने दिया, हमारा शरीर मिट्टी का बना है, हवा, पानी, भोजन सब तो किसी ना किसी का दिया हुआ है, रिश्ते जन्म के पहले तय हो गए थे, यहाँ तक कि आपको नाम भी दूसरों ने ही दिया है तो फिर किस बात का गुमान है इतना, किस बात का गर्व है और अहम है कि मैं, मैं, मैं और आत्म मुग्ध हो अपने आप पर अरबों मनुष्यों और असँख्य जीव जंतुओं के इस टुच्चे से संसार में चार अनुयायी बन गए, दो लोगों ने तारीफ़ कर दी, छह लोग प्रश्न करने लगे, पाँच मित्रता का दम भरने लगें तुम्हारी, सात लोग जानने लगे तो तुम एकदम से परम ज्ञानी हो गए और ज्ञानी बनकर धूर्त हो गए - यह भी समझे नही, अपने को संसार का मालिक समझ लिया, तुम्हारे भरोसे कोई नही है, प्रकृति में अमीबा भी ज़िंदा है और विशालकाय हाथी भी, कभी सोचा कि क्या ये तुम्हारा लिखा पढ़ते है, तुम्हारे हजार कामों से इनके जीवन पर रत्ती भर भी फर्क पड़ता है, एक नदी की धार को मोड़ने में भी सक्षम है तुम्हारा पद या ताक़त या बुद्धि तो फिर कैसा अहम और किसकी तुष्टि कर रहें हो, यह मत सोचो कि संसार की घड़ियां तुम्हारे कब्जें में है और तुम सब कुछ कर सकते हो, लोगों पर नियंत्रण ...

Man Ko Chiththi, Khari Khari and Posts of 27 and 28 July 2024

  भारत ही नही दुनिया में हर जगह पढ़े लिखें युवाओं को नौकरी नही मिल रही, लगातार प्रतियोगी परीक्षाओं में असफल हो रहें है, यहाँ - वहाँ एडहॉक पढ़ाकर, कुछ बनिये की नौकरी कर, अदालतों में वकीलों की मुंशीगिरी करके, आर्किटेक्ट के यहाँ नक्शों की कॉपी बनाकर, आर टी ओ एजेंट के यहाँ कागज़ इकठ्ठा करके, डॉक्टर के यहाँ पर्चे फाड़कर जैसे तैसे कमा रहे है दस - बीस हज़ार, कुछेक के लिये यह रकम भी बहुत बड़ी है इस सबमें उम्र बढ़ रही है, शादी - ब्याह हो नही रहें, किराए के दड़बों और अँधेरे सीलन भरे मकान में अडाणी-अम्बानी बनने के सपने फलीभूत नही होते और फिर घर - परिवार की जिम्मेदारियां, माँ बाप की, बहनों और भाईयों की अपेक्षाओं का बोझ, असफल प्रेम और कुल मिलाकर उम्र के चौथे दशक तक आ गए घिसटते हुए यह सारा परिदृश्य भयावह है, दूसरा योग्यता के नाम पर डिग्रियों की माला है पर ज्ञान एक कौड़ी का नही, एक वाक्य हिंदी - अंग्रेजी में लिखने की कूबत नही, हर जगह राजनीति, चापलूसी, अतिरेक, और जुगाड़ सेटिंग से हर लड़ाई लड़ने का माद्दा घातक है ऐसे में भारत की युवा पीढ़ी जो 21 से 38 - 40 वर्ष की है - इस समय भयानक डिप्रेशन और फ्रस्ट्रेशन में ह...

Man Ko Chiththi - Posts of 24 and 25 July 2024

अक्सर रातों को जागता हूँ, नींद की खुराक कम हो चली गई, एक दिन यानी चौबीस घण्टों में 3 घण्टे भी भरपूर सो लिया तो अपने आप पर गर्व होने लगता है, दिन में दस मिनिट की झपकी, शाम को एक टप्पा, और रात डेढ़ से साढ़े तीन बजे तक, बस बाकी समय दिमाग़ चंचल रहता है और हाथ - पाँव सक्रिय यह पहले नही था, जुलाई 2008 की बात थी जब माँ को सिर में दो ट्यूमर होना कन्फर्म हुआ था, और फिर जाँच, एमआरआई आदि के बाद ऑपरेशन करवाने का निर्णय लेना पड़ा, इंदौर के ख्यात चिकित्सक और सर्जन्स से सलाह करने के बाद तिथि निश्चित की गई थी, सम्भवतः 10 जुलाई को ऑपरेशन हुआ था - ठीक ठाक ही किया था, उन दिनों पूरे समय मैं ही साथ रहता था, उस मनहूस अस्पताल में, दिनभर रिश्तेदार मिलने - जुलने वाले आते जाते तो समय कब गुजर जाता , पर रात बहुत ही भारी पड़ती थी शाम सात बजे से ही आवाजाही बन्द कर दी जाती और यह मरीजों के आराम का समय होता, दस-पंद्रह दिनों में माँ के साथ जो जीवन जिया था वह अकल्पनीय है - इतनी बातें, इतनी कि सबका बखान करना नामुमकिन है अब, स्मृतियाँ क्षीण हो गई हैं, यादें धुंधला गई है, माँ अस्पताल में थी और छोटे भाई का हफ़्ते में दो बार डायलि...

Man Ko Chiththi - Posts of 23 and 24 July 2024

जिस काम से हम प्रेम करते है और जीवन भर मशीनीकृत ढंग से करके ख़ुश होते है - क्योंकि उससे आजीविका चलती थी, हमारी सांसारिक ज़रूरतें पूरी होती थी - वही काम एक दिन जीवन का दुश्मन बन जाता है और आपको वही सबसे गलीज़ लगने लगता है, फिर आप भागते हो उस माहौल, उस काम और उन लोगों से जो उस प्रक्रिया या काम का हिस्सा है शायद यही मनुष्य होने की मेरे लिये पहचान है, जल्दी उकता जाना, नये प्रयोग करना, अनुशासनहीनता, अचानक सब छोड़कर उठना और कही दूर निकल जाना, बगैर सोचे-समझे बोल देना, वर्जनाएँ तोड़ना, अपने निर्णय अपने हाथ में रखना, किसी विचार या व्यक्ति को अपने मन-मस्तिष्क पर हावी ना होने देना और अपनी मन की करना - यही सब हर कोई करता है या कामना करता है करने की कि हम सब रचनात्मक है, उद्यमशील है, जानवरों से सर्वथा भिन्न है, क्योकि हमारे पास भाषा, सम्प्रेषण और अभिव्यक्ति की दक्षता और कौशल है - कम, ज़्यादा होने से फ़र्क नही पड़ता बस इस सबके लिए थोड़ी सी कुशलता, थोड़ी सी तड़फ, बेचैनी, खुलापन, स्वार्थ की समझ और सब कुछ स्वीकार कर लेने की शिद्दत से तमीज़ होनी चाहिये ताकि हम बाकी सारे सन्जालों को गाँठते हुए सहज होकर निर्मल मन से ...

Man Ko Chithti Post of 21 July 2024

सारे सुख दुख से गुजरने के बाद भी ज़िंदगी के मूल स्वरूप में कभी फ़र्क नही आता और ना हमारे व्यवहार में, हम जैसे है वैसे ही रहते हैं - यदि सच में कभी कोई फ़र्क घटनाओं, समय या परिस्थितियों का पड़ता तो इस समय हम सब एक बेहद संवेदनशील और बेहद उम्मीदों भरी दुनिया में जी रहें होते हम सब चतुर सुजान है और पहुँचे हुए कलाकार है, बल्कि यूँ कहूँ कि मंजे - घुटे हुए लोग जो प्रतिक्रियावादी है और इतने माहिर है कि हर घटना, दुर्घटना या सुखद संयोग के बाद नेपथ्य में जाकर यवनिका के पीछे आसरा ले लेते है और यही कला हमें अक्षुण्ण और शाश्वत रखती है, इसी सबके बीच से तमाम तरह के प्रभावों को झटका देकर हम पुनः जीवन की मौज मस्ती में लौट आते है और अपना ही जीवन जीते है बजाय किसी और के साथ एकाकार हुए या सांगोपांग रूप से किसी और का कल्याण करने के स्वार्थीरूप से जीने की यही अमर और अजर कला हम बचपन से अपने-आप सीखते है, कोई नही सीखाता इसे और धीरे-धीरे इसमें पारंगत हो जाते है पर अफ़सोस कि मृत्यु के सामने यह अभिनय धरा का धरा रह जाता है और हम अपने सारे जीवनास्त्र, अभिनय कौशल, उम्मीदों की पोटली, नीरभ्र आकाश में उड़ने की इच्छाएँ, उद्दाम...

Khari Khari and Man Ko Chithti - Posts of 18 and 19 July 2024

पूजा खेड़कर, ट्रेनी IAS, तो एक उदाहरण है हमारी 80 साल की आज़ादी, घटिया और ओछी राजनीति, प्रशासन और मूर्खताओं का नतीज़ा है और पूजा हमारी सामूहिक विफलताओं का ठोस उदाहरण है, आज वो मीडिया में ट्रोल हुई तो हमारी व्यवस्था, अक्षमता, प्रशासनिक नाकामी और मक्कारी सामने आई - वरना लाखों हरामखोर तो रिटायर्ड होकर अभी भी मलाई खा रहे है यदि आज सही तरीके और पूरी ईमानदारी से जाँच की जाए तो 90% आरक्षित कोटे से भर्ती वाले, प्रमोशन वाले लोग फर्जी निकलेंगे चाहे वो दलित, आदिवासी,ओबीसी कोटे से आये हो या विकलांग कोटे से या भूतपूर्व सैनिक या किसी और कोटे से - भारत जैसे देश में जहाँ आप जीते जी अपना मृत्यु प्रमाण पत्र हासिल कर सकते है वहाँ इस तरह के प्रमाणपत्रों की क्या बिसात है और फिर जाँचने वाले भी तो वही सब है इसलिये अब ना कोई सहानुभूति है ना कोई संवेदना, क्योंकि असली वर्ग और लोग जिन्हें ज़रूरत है वे तो अरबों प्रकाशवर्ष दूर है इन जानकारियों से भी, सुविधा लेना और उपभोग करना तो बहुत दूर की बात है,जिसको शक हो चले मेरे साथ बैगा, सहरिया, मवासी, भारिया, गौंड़, कोरकू या जारूवा आदिवासी के पास और पूछे कि आरक्षण के बारे में म...

Khari Khari, Man Ko Chithti and Article for Rang Samvad - Posts of 15 to 18 July 2024

चोरी लिखी है भाग में तेरे ••••••• एक बड़े फर्जी लेखक थे, किसी प्रकाशन संस्थान में काम करते थे और बड़े चल्लू किस्म के थे, सोशल मीडिया का नया-नया ज़माना था, उनके लेख छपते तो हम बड़े कौतुक से पढ़ते और सराहते, फिर धीरे-धीरे उनके लेखों की सँख्या बढ़ने लगी, रोज लगभग देश के हर अड़े - सड़े अखबार से लेकर बड़े ख्यात अखबारों की कटिंग चैंपने लगे और हमें आश्चर्य होता कि एक आदमी इतने विविध विषयों पर कैसे लिख लेता है और रोज-रोज दिन में चार बार उनके लेख यहाँ चस्पा होते - नदी, वियतनाम, कंडोम, वैश्वीकरण, बाज़ार, पहाड़, जंगल, टैगोर, प्रकाशन टेक्नोलॉजी, करेंसी की समस्या, अर्थ नीति, हक्सले, फास्टर, मदर टेरेसा से लेकर बुल्गारिया की झीलों का प्रामाणिक विवरण - क्या नही छोड़ा इन्होंने लिखने से ; आजकल रिटायर्ड हो गए तो सुना पंसारी और भड़भूंजे की दुकान खोल ली है जो सबके कच्चे पक्के चने, मक्का,ज्वार, बाजरा, रागी, जौ, और गेहूँ भुजंकर बाज़ार में किताबों के नाम से बेचते है एक बड़े वाले और हुए जो हर माह एक उपन्यास, पचास-साठ कविताएँ, दस-बारह पुस्तक समीक्षाएँ, न्यूनतम दस कहानियाँ देश की हर अग्रणी पत्रिका में आती, दर्जनों पत्रिकाओं के...