"क्यों बै भोपाल में जो अगस्त में जलसा हो रहा है वहां तुम्हें नहीं बुलाया कुकुर पाठ करने, सुना है वहां पर 500 के करीब - करीब कवि और कहानीकार आ रहे हैं ; 1 दिन में 5 - 6 सत्र हैं और हर सत्र में 30 - 40 कवि रहेंगे, भगवान मंच बचाएं , टेंट वाले की उम्र बख़्श दें " मैंने लाईवा को फोन किया अभी दाल बाटी खाकर "अरे मुझे मालूम ही नहीं है, आयोजक कौन है, वह बताओ आप - ताकि मैं जुगाड़ करूं" लाईवा का खून बढ़ गया होगा पक्के से "अबे आयोजक तो बहुत सारे हैं, पर मैंने अभी डेढ़ घंटे में सूक्ष्मदर्शी की सहायता से लगभग सभी नाम पढ़ें और कसम से कह रहा हूं कि किसी आंख के डॉक्टर को दिखाना पड़ेगा, ससुरे ऐसे ना नाम सुने, ना कभी पढ़ें - बस हिंदी के 2 - 4 वही माड़साब टाइप लोग है जो सेटिंगबाज है, मठाधीश हैं जो बार-बार हर जगह दिख जाते हैं" मैंने जवाब दिया लाईवा को - "और तो और चहकती और चरचराती चिड़ियाएँ भी नही है हिंदी वाली, ना गीता - सीता, अनिता - सुनीता, अंजू- मंजू का गैंग है" "तो भोपाल के बहुत लोग होंगे" वो चहका "नहीं यार, यही तो रोना है - भोपाल के स्थापित जड़ बु...
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