दहाड़ हिंदी के एक मनोरोगी प्रोफेसर की कहानी है जो युवा लड़कियों को अपने जाल में फाँसकर उनसे रुपया ऐंठता है, बरगलाता है, बलात्कार करता है और अंत में उनका खून कर देता है इस तरह 29 लड़कियों के खून के बाद पुलिस उसे गोवा से पकड़ लेती है, हिंदी प्रोफेसरों में यह बहुत आम रोग है जिसके किस्से रोज़ पढ़ने को मिलते है, तमाम विवि के हिंदी विभागों में ऐसे रंगीले, चुटीले और जायकेदार किस्से भरे पड़े है, लगभग हर शोधार्थी की थीसिस के वंदन द्वार इन्ही उपलब्धियों से सुसज्जित है
जो लोग इसे सामंतवाद, जाति, वर्ग, दलित या जेंडर के चश्मे से देख रहें है - उनकी अक्ल, मेधा और बुद्धि को प्रणिपात प्रणाम
विशुद्ध गुलशन नन्दा या कर्नल रंजित का लिखा बस स्टैंड स्टाइल का क्राइम थ्रिलर है, बाकी सब जो कह रहे हैं वह बुद्धिजीवियों को आकर्षित करने के लिए तड़का भर है ताकि जबरन की बहस हो - जबकि ऐसा ज़मीनी स्तर पर अब कही नज़र नही आता
ओटीपी पर "गर्मी" के बाद "दहाड़" एक और फिसड्डी सीरीज़ है कुल मिलाकर, और कमाल यह कि सोनाक्षी सिन्हा क्या इतनी बेरोजगार हो गई कि इस तरह के दो कौड़ी के सीरियल्स में काम करने लगी
गज्जब
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