कोई भी वादी हो अंततः सब स्वार्थी है और कुल मिलाकर कहना यह है कि ये क्षुद्र मानसिकता के है टुच्चे कही के
गांधीवादी हो, समाजवादी, मार्क्सवादी, अम्बेडकरवादी या लोहियावादी - सब निहायत अवसर परस्त है
इनसे जितना बच सकते है बचो - ये लोग नही, स्वार्थ और लोलुपता के चलते - फिरते सम्पदा कोष है - जहाँ मौका मिलेगा वहाँ भकोस लेंगे और जहाँ मौका मिला डस लेंगे
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मोदी और मामा है तो महाँकाल में महाघोटाला मुमकिन है
राष्ट्रीय राजमार्ग बनाये हो दूसरे दिन ही गड्ढे पड़े, हर निर्माण में जमकर भ्रष्टाचार हुआ है
कमबख्त महाधिदेव महाँकाल के नवनिर्मित परिसर को भी नही छोड़ा भ्रष्ट लोगों ने, यह आज का हाल है 2014 से, कांग्रेस को मात दे दी मतलब
देखिये क्या हालत कर रखी है उज्जैन की और अभी अभी हुआ था उदघाटन , मप्र में सबसे ज्यादा भ्रष्ट है - सिंहस्थ से लेकर दलिया, मध्यान्ह भोजन और तमाम उदाहरण है क्योंकि तमाम ठेकेदार सत्ता के सगे रिश्तेदार है
असल में इसे हर बात की जल्दी है, हम जानते है कि छोटी सी छत को भी 21 दिन लगते है जमने को यानी हर वास्तु को पकने में और जमने में समय लगता है, बड़े वृहद भवनों को कितना समय लगेगा पर इसे तो रिकॉर्ड बनाना है, नित नए परिधान पहनकर नौटँकी करनी है, विश्व नेता होना है और इसे तो हर बात का उदघाटन करना है ना सबसे पहले
बनारस की गंगा का हश्र भी देखा था, उस जलयान उर्फ क्रूज़ का भी हाल हमको मालूम है जो यात्रियों को बंग्लादेश लेकर जाने के लिए उदघाटित हुआ था
भाजपा राज में सारे ठेके सालों, मामाओं के और बच गए तो पार्षदों को मिलेंगे या भक्तों को और कुल मिलाकर भक्तों से बड़ा भ्रष्ट कोई और है
कुल मिलाकर मिस्टर बंटाधार है यह पनौती
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हर किसी घटना, दुर्घटना और किसी के वक्तव्य पर तुरंत कविता लिख देना विशुद्ध मूर्खता है - यह कविता नही , महज़ एक प्रतिक्रिया है जो गुस्से, क्षोभ में आकर आपने अपने विचारों, अलित - दलित, ठाकुरी - बामणी,सावरकरी या अम्बेडकरी मानसिकता को स्पेस और इंटर मार - मार के कविता बना दिया जो भड़ास से ज़्यादा कुछ नही, और कुछ बंधुआ आ गए अहो - अहो करते हुए
अरे , महाकवि के पड़दादा एक बार देख तो ले, कि इस पूरी भड़ास में कविता कहाँ है
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अनुज Sarang Upadhyay इन दिनों चर्चा में है अपनी नई किताब को लेकर - गद्य, पद्य और कथेतर पर समान रूप से हाथ चलाने वाले सारंग अमर उजाला नोएडा में ऑनलाइन सम्पादक है, मूल हरदा मप्र से है पर नौकरी एवं यायावरी किस्मत में लिखी है
कल लम्बे समय बाद मुलाकात हुई, हालांकि हड़बड़ी थी, तबियत नासाज़ - पर कुछ बेहतरीन कविताएँ सुनी, किताब प्राप्त की और सुकून मिला
जल्दी ही पढ़कर इस पर खुलकर लिखा समझा जाएगा - क्योंकि मुम्बई में अब मेरे भी दो स्थाई घर है और इस मायावी नगरी पर लम्बी कविताएँ और गद्य लिखें है मैंने जो यहाँ - वहाँ छपे और चर्चित हुए है, इसलिये सोनू की किताब से जुड़ाव कर पाऊँगा, उधर सोनू ने भी पूरी छूट दी है कि निर्ममता से पढ़कर समीक्षा की जाए और यह स्नेह ही है इस अनुज का
बहुत शुक्रिया
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इस देश का सँविधान आज खतरे में है
क्यों ना राष्ट्रपति इस्तीफ़ा देने की स्व पहल करें, इतने पढ़े - लिखें और सर्वोच्च सम्मान प्राप्त व्यक्तित्व में क्या ज़मीर खत्म हो गया है
एक धूर्त और कुपढ़ आस्ट्रेलिया से आता भी नही, आठ दिन से 140 करोड़ लोगों के काम अधूरे छोड़कर देहरादून निकल जाता है रेल को झंडी दिखाने, क्या हर रेल या बैलगाड़ी को झंडी दिखाना ही इसका काम रह गया है या चुनावी सभा करना, 2014 से आज तक सिर्फ़ 18 घण्टे काम करने का भोंपू बजता रहा है तभी ना महँगाई, बेरोजगारी बढ़ी है और यह दर्शाता है कि आत्ममुग्ध यह व्यक्ति कितना भूखा है प्रशंसा का - कोई सच ही कहता था - "मणिशंकर अय्यर ज़िंदाबाद"
पहले रामनाथ कोविद और अब महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू की जिस तरह से उपेक्षा कर रही है मोदी सरकार वह सिर्फ संविधानिक अपमान नही बल्कि एक कुपढ़, अनपढ़ और तानाशाह का मानसिक दिवालियापन भी दर्शाता है
देश के प्रथम नागरिक की उपेक्षा करके हर जगह अपना चेहरा दिखाने की जिद आख़िर किस तरह का पागलपन है, मतलब 2014 से हर जगह एक ही थोबड़ा चैंपने से देश की हालत क्या हो गई है, मतलब राशन की थैली से लेकर अब नए संसद भवन पर भी, विदेश में भी वही और गली मोहल्ले में भी वही - इतनी क्या कुंठा है, क्या आत्म मुग्धता है और किस मानसिक रोग का द्योतक है यह शख्स , ट्रेन का उदघाटन हो या संडास का - हर जगह इसे ही जाना है - कितना घृणित है यह काम
पिछले 9 वर्षों में सरकार में कौन मंत्री रहें या किसने क्या किया यह सब दफन कर दिया गया, कितना शर्मनाक है यह सब - और सबसे मज़ेदार या दुखद यह है कि ये जो रबर स्टाम्प आये दोनो इन्होंने कुछ नही बोला ना कुछ ऐसा किया जो कम से कम राष्ट्रपति पद की न्यूनतम गरिमा ही रख लें और रामनाथ कोविद तो चुपचाप आज्ञाकारी कठपुतली बनकर निकल लिये पर द्रोपदी जी तो विदुषी है, कहने वालों ने महिला, आदिवासी, मुखर, प्रखर और ना जाने क्या - क्या कहा था पर "मालिक या तानाशाह" ने सब नियम कायदे और लोकतांत्रिक परम्पराओं को धता बताकर फिर साबित किया कि वो खुद ही सबकुछ है और देश एक कुपढ़ अनपढ़ के हाथों में है
यह बहुत घातक है देश और सँविधान के लिये , पर भक्तों और मूर्ख जनता को क्या - बजाओ ताली, चिल्लाओ मोड़ी मोड़ी मोड़ी क्योकि अभी देश के फर्जी देशभक्तों की तालियां सुनकर आया है ना आस्ट्रेलिया से, इन हरामखोर एनआरआई को इतना ही देश प्रिय है तो यहां आकर क्यों नही सेवा करते, जिस तरह से लोगों को देश के पैसों से लाकर ब्रिस्बेन में इकठ्ठा किया वह किसी सड़क छाप नेता की रैली में गांव से ट्रेक्टर भर भीड़ जुटाने जैसा था
बहरहाल, देश गर्त में डाल दिया कुपढ़ ने
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"यूपीएससी में लड़कियों ने बाज़ी मारी"
"लड़कियाँ आगे इस बार भी"
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इतने ऊँचे पदों पर जाकर भी वही महिला - पुरुष करना है तो सब छोड़ दो और लगे रहो अपनी उलजुलूल हरकतों में, ये पदों के लिये चयनित हुए है ना कि महिला - पुरुष के आँकड़ों के जाल में फँसने को
बस अब ब्राह्मण, ठाकुर, बनिये और दलित - वंचित आदिवासी के अंकों में भेद, और लड़के - लड़की के इंटरव्यू के नम्बर, डीयू की प्रोफेसर की लड़की और झारखण्ड का आदिवासी पर कम -ज़्यादा अंकों की बहस, चयन समिति में सवर्ण - दलित अनुपात और पक्षपात वाला विश्लेषण और देख लूँ तो झोला उठाकर चल दूँगा
भोत सारे UPSC Aspirants थे सूची में
कोई निकला क्या - बना IAS, IPS, या बकैती उस्ताद लोग्स दिल्ली - बनारस - प्रयागराज छोड़कर घर चले गये और अब बाप - महतारी के छाती पर मूंग दलेंगे और गाँव देहात में ज्ञान की जड़िया देंगे लौंडों को
ससुरे इतिहास से लेकर साहित्य तक ग़दर मचाकर रखते है, आज ज्जे ज्ञानी नज़र नही आ रहें और जिनके नाम सूची में देख रहा वो सोशल मीडिया पर दिखे नही और कभी रील नही भेजी कोई
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"मौका मिलने पर हर अदना सा मानुस भी मोदीत्व को प्राप्त हो जाता है और फिर तेवर देखना बनता है उस नए - नए गबरिले - झबरीले के"
याद आ रहा था वो शेर कि -"तुम्हारी हरकत बता रही है कि तुम्हारी दौलत नई - नई है"
[आज की घटना के बाद ब्रह्माज्ञान का निष्कर्ष ]
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"आज हमारे कार्यक्रम के अध्यक्ष अपना चश्मा घर भूल गए है, इसलिये दूसरे के चश्मे से कविताएँ पढ़ रहे है, और हम आप श्रोताओं से मुआफ़ी चाहते है"
संचालक ने कहा
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[ यह अक्षरशः सत्य घटना है जब आज जलेस इंदौर के शानदार आयोजन में रतलाम से आये वरिष्ठ कवि श्री निर्मल शर्मा जी चश्मा घर भूल आ जाने की वजह से अपनी कविताएँ नही पढ़ पा रहें थे तो मंच पर दादा निलोसे जी का चश्मा लिया, संचालक प्रदीप मिश्र ने चुटकी लेते हुए कहा तो इस पोस्ट का जन्म हुआ ]
और हाँ, यह #दृष्ट_कवि वाली पोस्ट नही है
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अन्यथा ना लें और संयम से पढ़े
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यह वही बिहार है जिसने आडवाणी को 1992 में रथ यात्रा रोककर गिरफ्तार किया था, अब कहाँ गए वो लोग लालू जैसे, फिर कहो बिहारी तो लोग गुस्सा हो जाते है
भूखे रहेंगे, मजूरी कर लेंगे, रिक्शा चला लेंगे पर चुप नही बैठेंगे, ट्रेन हो या बस या वाट्सएप्प हर जगह ज्ञान पेलेंगे कचरा इतना फैलाएंगे कि आपको आत्महत्या करना पड़ सकती है और यदि ससुरा कोई मास्टर, पटवारी, बाबू या ब्यूरोक्रेट बन गया हो किसी तरह जुगाड़ कर या किसी विवि में जेआरएफ कर शोधार्थी - तो ससुर सबसे ज़्यादा ज्ञान वही पेलेगा, ब्यूरोक्रेट हो तो वैश्विक समझ का दावा ठोकेगा पर मूर्खता में सबसे आगे होंगे ये धर्म भीरू और अंधविश्वासी लोग
महू में माल रोड़ पर एक गणेश मंदिर था, हर बुधवार को सबसे ज्यादा बिहारी जवान, अधिकारी और उनकी पत्नियाँ नारियल और चावल लेकर जाती थी कि पोस्टिंग किसी पीस स्टेशन और बिहार में ही मिलें, और कमांडिंग अधिकारी बिहारी हो और मैं खूब हंसता था इनकी इन मूर्खताओं पर - पंडित जो एक बैंक अधिकारी और बनिया था, कहता - " नाईक साहब, बिहारियों की कृपा से सांघी स्ट्रीट पर मेरा तीन मंजिल मकान बन गया है" दुर्भावना नही पर स्व शीला दीक्षित गलत नही बोली या ठाकरे भी गलत नही थे कुछ हद तक
निहायत फर्जी और मक्कार ढोंगी और पाखंडी जैसे जाहिल इंसान को सर माथे क्यों बैठा रहें है ये बिहारी
आजादी के 77 वर्ष बाद भी बिहार वही है चाहे जेपी आ जाये या विनोबा या कोई और
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