मीरा को वेदना से मिली मुक्ति
बात थोड़ी पुरानी है लगभग डेढ़ साल पुरानी है, काम के सिलसिले में मैं पन्ना के रानीपुर गांव में 12 सितंबर 2021 को गया था तो एक घर में एक छोटी सी बेटी को देखा जो लगभग तीन माह की थी नाम था मीरा, मीरा के माथे और आंख पर बड़े - बड़े फोड़े थे, तुरंत समझ नही आया कि क्या किया जाए, लौटकर फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी तो कई मित्रों ने और डॉक्टर साथियों ने हौंसला दिया कि ऑपरेशन सम्भव है, अपने मित्रों से बात की पर हर जगह के अस्पताल से निराशा हाथ लग रही थी और खर्च बहुत आ रहा था
जबलपुर के वरिष्ठ अभिभाषक एवं सांसद विवेक तन्खा जी ने भी मदद का आश्वासन दिया - परन्तु बात आई गई हो गई, बच्ची बड़ी होती रही और कुछ नही हुआ, पिछले दिनों इसके माँ - बाप इसे लेकर पलायन पर इंदौर आये तो मीरा की तबियत खराब हुई डॉक्टरों ने कहा कि ऑपरेशन तुरंत करना होगा पर इसका आयुष्मान कार्ड ना होने से ऑपरेशन नही हो पा रहा था, गरीब आदिवासी मजदूर परिवार पुनः पन्ना नही जा सकता था, सो हमने विकल्प खोजे और आयुष्मान के जिला अधिकारी श्री मुन्नालाल जी यादव से बात की तो उन्होंने बताया कि बिटिया तीन वर्ष से कम है तो इसका आधार और आयुष्मान कार्ड तो नही बनेगा पर माँ या पिता का कार्ड हो तो इलाज हो सकता है
इस पर एम वाय इंदौर के डॉक्टर तैयार हो गए पर अचानक डॉक्टर्स की हड़ताल शुरू हो गई, बड़ी मुश्किल थी, कई प्रयासों के बाद आख़िर कल इसका ऑपरेशन सम्पन्न हुआ और अब यह मीरा ठीक है और उम्मीद है जल्दी ही पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाएगी
मीरा का जन्म 22/7/2021 में पन्ना जिले के रानीपुर गाँव में घर पर ही हुआ था, मीरा की माँ का नाम किशोरी बाई और पिता का नाम बाबू लाल है, मीरा की दो बहनें हैं, मीरा सबसे छोटी है, मीरा अभी 1 साल 9 महीनों की हुई है और 22 जुलाई को 2 साल की हो जायेगी, जन्म से ही मीरा के माथे में ये अजीब सी चीज थी, कुछ महीनों पहले बाबूलाल (मीरा के पिता) परिवार सहित पलायन पर इंदौर चले गए थे और वहाँ पर परिवार के सभी सदस्य भवन निर्माण (चुनाई) का काम कर रहे हैं, 15 दिन पहले मीरा के चेहरे पर अचानक सूजन आ गई और वह दर्द से तड़पने लगी, मीरा के पिता का फोन पन्ना ने समीना बहन के पास गया, वे घबरा रहे थे, समीना बहन ने उनको तसल्ली देते हुए उन्हें जल्द ही हॉस्पिटल जाने के लिए बोला ; मीरा को महाराजा यशवंतराव (M.Y) हॉस्पिटल, इंदौर में भर्ती कराया गया लेकिन मीरा का आधार और आयुष्मान कार्ड न होने की वजह से डॉक्टर ऑप्रेशन करने से मना कर रहे थे और वे लोग शाम की गाड़ी से वापस पन्ना कागज बनवाने आ रहे थे, समीना ने उन्हें वही पर रोका और कई जगह उनकी मदद के लिए बात की
इसी दौरान समीना जी की बात विकास सँवाद के साथियों से होने के बाद उनकी मदद हुई और साथ ही जिनके यहाँ बाबूलाल काम कर रहे थे, वहां के ठेकेदार जयंत मंगेलवाल जी से भी बात हुई - सब लोगों ने काफी मदद की, खून का इंतजाम कराया और भर्ती कराया, डॉक्टर ने बताया ऑप्रेशन में गंभीर स्थिति हो सकती है, कुछ भी हो सकता है, लेकिन कल ऑप्रेशन पूर्णतया सफ़ल रहा और बच्ची मीरा अभी बिल्कुल ठीक है
पन्ना में काम कर रही विकास संवाद की टीम ने इसमें जो भी काम किया वह बेहद प्रशंसनीय है और वे लगातार कुपोषण, सिलिकोसिस, आजीविका और पलायन के मुद्दों पर काम कर रहें है उसकी तारीफ़ जितनी की जाए कम है, पन्ना, रीवा, सतना, उमरिया और शिवपुरी में अभी तक हजारों बच्चों को कुपोषण और गम्भीर बीमारियों से बाहर निकाला जा चुका है और आज क्षेत्र के 130 गांवों में शिशु मृत्यु दर लगभग शून्य है और ये कुपोषण मुक्त गांव बने है
हम आभारी है एम वाय जैसे सरकारी अस्पताल के डॉक्टर्स के - जिन्होंने मेहनत कर मीरा का दुरूह ऑपरेशन किया, सरकारी अस्पतालों पर भरोसा कीजिये, यह बेहद जरूरी है, ये डॉक्टर्स योग्य और अनुभवी है, संवेदनशील है - बस भीड़ है तो संयम रखना होगा मित्रों
[ यहाँ मीरा के 12 सितंबर 2021 के फोटो और अभी के फोटो है जो ऑपरेशन के पूर्व और बाद में लिए गए है ]
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"The Paradigm Shift in a Town"
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एक कस्बे में जब आप 35 वर्षों बाद जब आप जाते है तो बचपन की स्मृतियाँ ताज़ा हो उठती है
देवास से भौंरासा जाना उस जमाने में बड़ी पीड़ा हुआ करता था, 17 किलोमीटर जाने में अमूमन दो - तीन घण्टे लगते थे, भोपाल रोड पर स्थित फाटे पर उतरना और फिर पैदल जाना , देर शाम घर का सामान - सब्जी लेते हुए लौटना - यह दुर्योग ही था कि माँ निमाड़ से मालवा आई और पिताजी का ट्रांसफर पूर्वी निमाड़ के छैगांव माखन में हो गया बाद में मनावर, इस तरह हम मालवा के देवास में स्थाई हो गए और पिताजी जब 1986 में वहाँ से टोंकखुर्द आये तो बीमार रहने लगे और 1989 में ही 27 मई को हम सबको छोड़कर विदा हो गए - माँ ने हम भाइयों को सम्हाला और हिम्मत से मरने तक संघर्ष करती रही और 26 जुलाई 2008 को हार गई - एक लम्बा इतिहास है इस सबका
मातृ दिवस पर उस कस्बे में आना, उस स्कूल, मन्दिर को याद करना, उन मेलों को याद करना जहाँ से पिपाणी और खिलौने लिए और बदलाव का साक्षी बनना कितना सुखद है, उस स्कूल को देखना जो एक कमरे से शुरू हुआ था और आज बड़ी बिल्डिंग है और माँ ने यहाँ 1970 से 1995 तक अपनी सेवाएँ दी और इसे हाईस्कूल तक बनाया, आज यह हायर सेकेंडरी स्कूल है
माँ आज ख़ुश हो रही होगी - यह निश्चित है
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