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जय लंकेश समग्र Post of 5 Oct 2022

|| जय लंकेश समग्र ||

◆ रावण कितना भी बुरा था पर उसने कभी अपनी बेसुरी आवाज में कविताओं का लाइव नही किया
रावण कितना भी बुरा था पर उसने कभी डायरी से कविताएँ नही झिलवाई किसी को और ना ही किसी "युवा - उवा" में गया अपनी सडैली कविताओं के साथ
◆ रावण कितना भी बुरा था पर उसने कभी जलेस, प्रलेस, जसम, खसम, अलेस आदि में मेम्बरशिप लेकर रायता नही फैलाया
◆ रावण कितना भी बुरा था पर उसने कभी किसी और राज्य में दरूओं के संग या अजा, रज़ा में कविता पढ़ने की चिरौरी नही की, ना ही किसी सरकारी दरबारी बाबू या संघी साहित्य अकादमी के हाथ पांव जोड़े कि उसे बुलाकर कविता पाठ करवा दें
◆ रावण कितना भी बुरा था पर उसने कभी अपनी बहन शूर्पणखा या बेटर हॉफ मंदोदरी को लेकर कवि गोष्ठी में ले जाने की मांग नही रखी , ना ही इन्हें ढाल बनाकर कभी किसी अजुध्या या पाटलिपुत्र या दिल्ली दरबार में आयोजित युवा, बुजुर्ग या नब्बे पार में गया
◆ रावण कितना भी बुरा था पर उसने कभी अपनी प्रोफ़ाइल फेसबुक, इंस्टाग्राम पर नही बनाई और ना ही कविता के पोस्टर किसी कौव्वे या सड़कछाप पेंटर से बनवाकर यश लूटने की नापाक कोशिश की
◆ रावण कितना भी बुरा था पर उसने कभी चालीस साला औरतें, पचास साला आदमी, पचपन पार बूढ़े, सत्तर पार दिलफेंक आशिक टाईप कविताएँ नही लिखी
◆ रावण कितना भी बुरा था पर उसने कभी अपनी नग्न या अर्थनग्न तस्वीरें डालकर औरतों उर्फ कबूतरियो, सॉरी कवयित्रियों को रिझाया नही और ना ही अश्लील फोटो यहाँ - वहाँ से चैंपकर फेसबुक पर लगाये, उसकी शराफत का आलम यह था कि इंस्टा, फेसबुक, ट्वीटर, कविता के घटिया पन्ने जैसे सड़ापीड़ा, मुस्लमवी, असुरगाथा आदि के लिए जैमर लगवा रखें थे
◆ रावण कितना भी बुरा था पर उसने कभी अपनी किताब नही छपवाई और बाल, किशोर, युवा, प्रौढ़, वयस्क, बुजुर्ग आदि के ज्ञानपीठ नही बटोरे और सदियों तक फेसबुक पर ढिंढोरे नही पीटे , न ही किसी से जबरदस्ती ख़रीदवाई - ना समीक्षा लिखवाई और ना ही एक किताब में 400 - 600 कविताएँ ठूँस ठूंसकर कुची
◆ रावण कितना भी बुरा था पर उसने कभी अपने कविता के स्कूल नही बनाएं, ना गद्य कविता लिखी और ना ही कवि होने की फेलोशिप लेकर किसी पत्रिका का बंधुआ मजदूर बना, इतना सज्जन था कि हरामखोर प्रकाशकों के सात सौ रुपल्ली वाले रॉयल्टी वाले चेक का भौंडा प्रदर्शन भी नही किया और ना ही बेचने को अमेज़ॉन या फ्लिपकार्ट की लिंक डाली
◆ रावण कितना भी बुरा था पर उसने कभी कविता पाठ के लिए पुष्पक विमान के किराए की मांग नही रखी वो भी अपनी पत्नी छोड़ साठ साला चम्पा चमेली संग, बापड़ा कंधे पर बैठाकर ले गया चम्पा को पर मजाल कि कभी दर्द छलका हो थोबड़े पर उसके
◆ रावण कितना भी बुरा था पर उसने कभी अपनी सुंदरी छात्रा या कुत्ते घूमाने वाले गाय बेल्ट के कमज़ोर अँग्रेजी की पैदाइश और उसके मातहत सा दिखने वाले शोधार्थी को किसी विवि में माड़साब बनाने की अनुशंसा नही की, भले ही शोधार्थी उसके टट्टी - पेशाब जाने से लेकर पत्नी सेवा का प्रतिदिन वाला टाईम टेबल सोशल मीडिया पर डालता रहा हो
◆ रावण कितना भी बुरा था पर उसने कभी अपने जीवन काल में प्राध्यापकी नही की और ना ही विभागों में बैठकर हिंदी की मक्कारी वाली घटिया राजनीति की कि अपने छर्रों या चाटुकारों की काई और फफूंद लगी कविताओं, कहानियों को पाठ्यक्रम में लगाया जाए
◆ रावण कितना भी बुरा था पर उसने कभी अपनी फफूंद लगी कविताओं के दम पर किसी पत्रिका के सम्पादन का कार्य हाथ में नही लिया, ना ही आकाशवाणी या दूरदर्शन या रेडियोमिर्ची पर छिछोरी कविताएँ पढ़ी
◆ रावण कितना भी बुरा था पर उसने कभी ब्यूरोक्रेट को नही पटाया और उससे अपना राशन कार्ड से लेकर बीपीएल, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, आधार कार्ड या कोई और कार्ड बनवाया, ना ही किसी गांधीवादी अड्डे का सरगना बनने की गुहार की
◆ रावण कितना भी बुरा था पर उसने कभी अपनी रचनाओं का ना समग्र आने दिया, ना बायोग्राफी छपने दी - कि ससुरे मक्कार और लोभी प्रकाशक सरकारी पुस्तकालयों में कचरा खपा सकें और आलोचना और बकवास के गद्य भंडारों से चूहों को भरपूर खाद्यसामग्री प्रचुर मात्रा में मिल सकें
◆ रावण कितना भी बुरा था पर उसने कभी 600 पेज का उपन्यास, 190 पेज की कहानी नही लिखी, या सिर्फ अपनी भड़ास परोसने वाला कोई गिद्ध, तोता, उल्लू टाईप नाम वाला ब्लॉग नही पेला जीवनकाल में
◆ रावण कितना भी बुरा था पर उसने कभी अपनी नौकरी में या राजे रजवाड़े चलाते हुए फेसबुक नही चलाई ना कमोड पर बैठकर फूल पत्तियों के फोटो, खाना बनाने की विधियां लिखी ना ही यहां वहाँ से मारकर लम्बे पकाऊ आलेख लिखें
◆ रावण कितना भी बुरा था पर उसने कभी अपने विश्व विद्यालय नही खोले और हर माह एक कविता की, एक कहानी की, दो उपन्यास, बारह पत्रिकाओं में अपने नाम से समीक्षाएँ नही छपवाई ना ही अपने पुरखों के नाम पर पीठ स्थापित कर कबाड़े के भाव में पुरस्कार बाँटें
और अन्त में प्रार्थना
◆ रावण कितना भी बुरा था पर उसने कभी अपनी कोरी बुद्धिजीविता दिखाने के लिए मणिपुर, कश्मीर या लेह लद्दाख पर आई किताबें नही पढ़ी ना किसी लेखक कर दबाव में खरीदी
🙏🙏🙏

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