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Khari Khari, Drisht Kavi , Rag Telang's Article on Me - Posts from 5 to 10 Oct 2022

गो ज़रा सी बात पे बरसों के याराने गए
लो चलो अच्छा हुआ कुछ लोग पहचाने गए
◆ ख़ातिर ग़ज़नवी
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हिंदी का सम सामयिक शोध परिदृश्य एकदम कचरा है और आजकल तो सिर्फ मैं, मेरे दोस्तों या गुट वालों का कूड़ा, मेरे प्रिय सम्पादक और मेरे प्रकाशक के लिखें कूड़े पर शोध करवा रहे है जो समझने तो क्या पढ़ने लायक भी नही है
प्राध्यापक नया पढ़ना नही चाहते - ना ही उन्हें प्रेमचंद, कुंवर नारायण , डंगवाल, नामवर, भीष्म साहनी,डबराल, रामचन्द्र शुक्ल, भारतेन्दु, विश्वनाथ त्रिपाठी, केदारनाथ, कबीर, सूरदास, निर्मल वर्मा के अलावा कुछ मालूम है या ऐसे ही दो चार ग़ैर मौजूँ हो चुके लेखकों के ये विशेषज्ञ है और दशकों से वही सब परोस रहें है जो ना सामयिक है - ना प्रासंगिक, इनको इसके अलावा कुछ आता ही नही है - इसलिये वे युवाओं को उसी गधा हम्माली में लगा देते है जो उन्होंने कर रखी है और बस ये जड़मति मठाधीश बने रहते है
हिंदी शोध मर गया है, सड़ गया है और नया कुछ है ही नही, ये लोग मठ्ठे हो गए है और इन्ही तीन - चार लेखकों को लेकर शोध के नाम कचरा और कूड़ा देशभर में भरा पड़ा है, हर माह किसी भी मर चुके विषय पर इनकी एक किताब आ जाती है - जिसे कोई झाँककर भी नही देखता, 38 - 42 की उम्र और 15 साल की नौकरी में 70 किताबें आना बौद्धिकता नही हरामखोरी की निशानी है कि आपने बच्चों को पढ़ाया या शैक्षिक समय में कविताएँ लिखते रहें और किताबें सम्पादित करते रहें और अपने निर्देशन में 30 - 35 पीएचडी कर चुके शोधार्थियों को क्या गाइड किया होगा - यह भी प्रश्न है
मेरी नजर में तो ये सब विभाग बन्द करके इन्हें विवि के बजाय ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी प्राथमिक स्कूलों में भेज देना चाहिये, नौकरी से बर्खास्त करके संविदा नियुक्ति पर - कम से कम इनमें से कुछ बच्चों की वर्तनी तो ठीक करा सकेंगे - बाकी तो उस लायक भी नही बचें है , सिवाय राजनीति और अपने छर्रों के सेट कराने या यहाँ - वहाँ सेमिनार, वर्कशॉप और कवि गोष्ठियों में हवाई यात्राओं के सुख के अलावा कुछ नही करते
और फिर रोते है कि इस सरकार ने पीएचडी की सीट कम कर दी
***
इस सबके लायक नही, बहुत साधारण इंसान हूँ, बस अपनी शर्तों, उसूलों पर अब तक जीते आया हूँ, और अब कितना अभी और भोगना है यह नही पता पर इन शब्दों से ताक़त मिली
आभार राग भाऊ

बड़े भाई राग तेलंग हिंदी के वरिष्ठ कवि है और बेहद संवेदनशील व्यक्तित्व, दूरसंचार सेवाओं में जीवन भर अधिकारी रहें और यारों के यार है, सच कहूँ तो संकट मोचन, नवम्बर में इनकी एक अदभुत किताब आ रही है - बस इंतज़ार करिये मित्रों

"जीवन में जितने होते हैं मित्र उतने खंडों में जीता है आदमी उतने पन्नों की होता है वह एक किताब ...।
देवास निवासी संदीप नाईक मेरे प्राचीन मित्र हैं, बोले तो जवानी के दिनों के,उन दिनों की उसकी छवि याद करता हूँ तो देखता हूँ वह आज भी वैसे का वैसा ही है । शहद जैसा हमेशा ताजा और मिठास में बेमिसाल। उसे खादी से आज भी उतना ही प्रेम है,उतना ही स्नेही है,उतना ही पढ़ाकू है और वही मासूम-सा तार्किक लड़ाकू भी । इतना पढ़ चुकने और उससे कई गुना जमीनी काम कर चुकने के बाद आदमी स्वत: फाइटर में तब्दील हो ही जाता है । आज इस जीनियस का जितना भी मित्र आधार है इन्हीं विविध भाव-स्वभाव के चलते है । यह दोस्त एनालिटिकल है हर चीज के दूसरी से वाबस्ता या कहूँ गुंफित होने के कारणों को जानता-बूझता है,आप उसकी तमाम अभिव्यक्तियों में यह विशेष गुण देख सकते हैं।

संदीप के प्रति अनुराग मुझमें उन दिनों में पनपा जब हमारे स्ट्रगल के दिनों में मुझे किसी ने सूचित किया कि संदीप ने अपने घर की दीवार पर मेरी एक कविता पोस्टर बनाकर लगा रखी है,यह कोई पैंतीस साल पहले की बात होगी । मैंने कविता को लेकर और अपनी कविता संबंधी क्षमताओं पर इसके पहले कभी नहीं सोचा था पर संदीप की इस क्रिया ने मुझे अहसास कराया कि कविता का रेडिएशन या प्रसारण किसी जुगाड़ या माध्यम का मोहताज नहीं, बस कंटेंट में दम होना चाहिए, कविता अंतर्मन को छूने वाली होना चाहिए। यह सूत्र मुझे संदीप के जरिए ही मिला जिन दिनों मैं आर्गेनिक पोएट होने की जद्दोजहद से दो-चार हो रहा था ।

संदीप अंदरूनी तौर पर बेहद शांत हैं यह असीम निर्वैयक्तिकता संदीप की कुछेक दार्शनिक पोस्ट्स में झलक आती हैं, मगर संदीप के आसपास जो अव्यवस्था है,लुच्चापन है वह संदीप के फाइटर को चुनौती देता है और संदीप बाबा भारती की तरह निकल पड़ते हैं, दो-दो हाथ करने । संदीप नाईक ने कई युवाओं को आत्मविश्वासी व दूरंदेशी बनाया फिर वह चाहे फार्मल तरीका हो या अनफार्मल, शासकीय गैरशासकीय मंच हों या अन्य स्वैच्छिक संगठन उसने हर प्लेटफार्म पर अपने होने का दायित्व निभाया । संदीप भाई को लिखना जुनून की हद तक पसंद है,यूँ इस तरह वह सामाजिक लेखक है,उसके पाठकों का संसार बहुत व्यापक है,उसने कई बार सब तथाकथित बड़े लोगों को उनकी गैरजिम्मेदारी के लिए लताड़ा भी है,उसकी लेखनी में मंत्रों जैसी शक्ति है ऐसी कि मुर्दे में भी प्राण फूंक दे बशर्ते मुर्दे में इच्छा शक्ति बची हो । मस्तमौला संदीप भाई की उम्दा साहित्यिक सेहत का राज ही यही है कि वे अपने काम को दिल से करते हैं, एन्जॉय करते है,बिना किसी की परवाह किए।

यह है संदीप के व्यक्तित्व का एक कोण,अन्य आयामों में वह बेहद करीबी भाऊ भी है ,पारिवारिक-फिलासाफर दोस्त भी,यही अन्य आयामों में विचरण करता संदीप कुल मिलाकर कुछ ऐसी शख्सियत बन जाता है कि उसपे प्यार आ जाता है । पुस्तकालय आंदोलन के दिनों का साथी संदीप कब चलती-फिरती लाइब्रेरी हो गया पता ही न चला ! तभी तो मैंने शुरू में ही कहा कि आदमी चलती-फिरती एक किताब होता है ।

जिंदगी में हमारे आसपास होने के लिए नुस्खे के तौर पर अगर जरूरी दवा टाइप के लोगों की सूची बनाई जाए तो उसमें मैं संदीप जैसे मित्रों को जरूर रखूंगा। आज पता नहीं क्यों भाऊ संदीप नाईक के प्यारे व्यक्तित्व पर इतना लाड़ उमड़ आया या फिर संदीप की फिलासाॅफी ही ऐसी है जो इतना कुछ लिख गया ।"
- राग तेलंग
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|| कठोर समय के मुलायम ||
🙏🙏🙏
मुलायम सिंह यादव देश की राजनीति में अंतिम कील थे - जो पिछड़ों को बेहद संतुलित ढंग से इकठ्ठा करने में कामयाब रहें थे, उनकी समाजवादी विचारधारा तो मिक्स प्रकार की थी पर उप्र जैसे पिछड़े और भीड़ भरे राज्य को वोट बैंक में तब्दील करके विकास के नए आयाम खोले और भाजपा के साथ फासिस्टवादी ताकतों के लिए ज़मीन बनाई - वह अनूठा संयोजन कम ही देखने को मिलेगा, अंतिम समय मे अपने परिवार में कलह और अपना ही सूरज डूबते देखना बहुत दुखद है, यादवों के लिए उनका अति सॉफ्ट कॉर्नर, राम मन्दिर एवं सैफ़ई के आयोजन और अखिलेश के निर्णयों पर चुप्पी जैसे अन्य बड़े मुद्दे है - जिनके लिए वे विवादों में रहें और हमेशा याद किये जायेंगे
बहरहाल, मुलायम सिंह यादव को श्रद्धांजलि और सादर नमन
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कोरोना और बड़ी विपदा से निकले अभी एक वर्ष भी ठीक से नही बीता है और हम कितनी जल्दी हम 3 लगातार वर्षों में हुए मौत के तांडव को भूलकर उत्सवों में लीन हो गए - यदि यह विकास, परिवर्तन, ग्लोबल दबाव और बाजार के हाथों कठपुतली बनने का हश्र है तो धिक्कार है हम सब पर
गणेशोत्सव, दुर्गात्सव और अब बाज़ार में बढ़ती भीड़, खरीददारों का बेपनाह उत्साह और हर जगह शामिल होना आख़िर किस बात का द्योतक है, महंगाई और गरीबी का रोना हर वक्त रोने वाला मध्यम वर्ग , निम्न वर्ग आख़िर कर क्या रहा है, 80 करोड़ लोगों को तीन साल से फ्री का राशन मिल ही रहा है और इस तरह से 140 करोड़ लोगों का बेशर्मी से हर तरह के इवेंट में बदल जाना - एक चिंता तो है ही बशर्ते आप इसे महसूस कर सकें
दूसरी तरफ हर प्रकार के आयोजन, ऐय्याशी और इससे फलता - फूलता धँधा जो दिन दूनी - रात चौगुनी तरक्की कर रहा है - वह बेहद चिंतनीय भी है और हम सब भी एक बड़े शक के दायरे में है और डर लगता है कि कही फिर एक बड़ा ट्रेप तो नही यह भी कही - धर्म, साहित्य, संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य यहाँ तक कि मौत और शोक भी अब एक उत्सव है
मौत के बाद हमें तमाशों में शामिल होने में बरसों लगते थे पहले, पर अब सब क्षणिक हो गया है, आज हिंदी की विदुषी युवा कवयित्री और मित्र Anuradha Singh ने एक विचारोत्तेजक मुद्दा उठाया तो लगा कि आगे का रास्ता किधर है
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पिछले दिनों एक प्रशिक्षण में अपना कुछ रोल
सीखना - सिखाना एक अनवरत और सतत प्रक्रिया है और मज़ेदार भी
एक प्रशिक्षक को अत्यंत कुशल और दक्ष होना आवश्यक है तभी प्रशिक्षणार्थी अपना पूरा ध्यान सुनने और सीखने में लगायेंगे साथ ही प्रशिक्षणार्थियों को भी खुले मन और बगैर पूर्वाग्रहों से सीखने को तैयार रहना होगा तभी यह परस्पर सीखना सिखाना होगा

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मैं के रियाँ था 13 अक्टूबर को करवा चौथ है
जेंडरियों, फेमिस्टों, किरान्तिकारियो कब लिखना शुरू करोगे - बहुत कम समय बचा है, गूगल करो, कॉपी पेस्ट करो, चैंपो, पेलो यहाँ - वहाँ से
हे अखंड सौभाग्यवतियों कब अपनी साड़ी, बिछुए, गहने, मेंहन्दी और शॉपिंग के फोटू डालना शुरू करोगी - डालो तो अड़ोसन - पड़ोसन तय करें कि क्या और कौनसा रंग अबकी बार लिया जाए
जागो हिन्दू राष्ट्र की सशक्त नारियों और महापुरुषों - उपवास, संस्कृति, महिमा मंडन, निंदा और समालोचना से लेकर बाकी सब शुरू करने का उपयुक्त समय आ गया है
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इसी के साथ बिहारी अस्मिता के रखवालों 30 अक्टूबर को छठ पूजा भी है - तो छठ मैया के गीत, परम्परा और फोटू सहित लम्बे - चौड़े आलेख भी तैयार रखो, एक असली काला - पीला - नील वर्ण का घोड़ा और महाज्ञानी चार्वाक तो फेसबुक से आप लोगों ने हकाल ही दिया - जो झूमते गानों की यूट्यूब लिंक डालता था
एक अनूठे पत्तलकार को मैंने निकाल रखा है - जो सिर्फ़ बिहार में छठ मैया से एक मुस्लिम दम्पत्ति को पूजा करने पर संतान होने की ग्यारण्टेड लाइव रिपोर्ट लगाता था, वैज्ञानिकता का बखान जरा ढंग से करना क्या है कि क्लाइमेट चेंज के खतरे इस साल और बढ़ गए है, और टिकिट करवा लिए हो ना बिहारियों या ट्रेन के अत्याचार वाले वीडियो फिर दिखाओगे इस बार भी
सो गुरू, गेट सेट गो 1, 2, 3 ....
[ अपनी रिस्क पर पढ़े - भावनाएं आहत हो सकती है किसी की, त्योहारों के लिए सम्मान है दिल से - ज्ञानियों के लिए बिल्कुल नही ]
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फिर शेर ने मेमनों से कहा कि आज मेरा व्रत है और जंगल की व्यवस्था लोकतांत्रिक ढंग से समतामूलक समाज पर चलेगी
मेमने हैरान थे, उधर चीता, तेंदुआ, गिद्ध, बाघ, लोमड़ी, चीटिंयां और दीमक सवा किलो मगज के फ्रेश वाले लड्डू लेकर व्रत का प्रसाद चढ़ाने को बेताब थे
•••••
अगला सर संघ चालक कोई दलित आदिवासी या महिला बनेगी - यह पक्का है अब, संघ की उदारता सराहनीय है
चलते - चलते बता दूँ कि अब महाराष्ट्रवादी कांग्रेस का अध्यक्ष भी 2022 में दलित ही बनने जा रहा है - इसलिये संघ अब निशाने पर है, 85 % बहुजन जाग ही गए है, दिलीप मंडल अब सैक्स विशेषांक पर नही - दलित भड़काऊ कार्यक्रम में लगा है
बाकी बहनजी, मुलायम, अखिलेश, नीतीश, लालू, तेजस्वी, भाजपा के मोदी जी और आदि तो ओबीसी है ही, ममता की जात अमित शाह या कैलाश विजयवर्गीय को मालूम ही है, और कौन है मैदान में फिर शेर ने मेमनों से कहा कि आज मेरा व्रत है और जंगल की व्यवस्था लोकतांत्रिक ढंग से समतामूलक समाज पर चलेगी
मेमने हैरान थे, उधर चीता, तेंदुआ, गिद्ध, बाघ, लोमड़ी, चीटिंयां और दीमक सवा किलो मगज के फ्रेश वाले लड्डू लेकर व्रत का प्रसाद चढ़ाने को बेताब थे
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अगला सर संघ चालक कोई दलित आदिवासी या महिला बनेगी - यह पक्का है अब, संघ की उदारता सराहनीय है
चलते - चलते बता दूँ कि अब महाराष्ट्रवादी कांग्रेस का अध्यक्ष भी 2022 में दलित ही बनने जा रहा है - इसलिये संघ अब निशाने पर है, 85 % बहुजन जाग ही गए है, दिलीप मंडल अब सैक्स विशेषांक पर नही - दलित भड़काऊ कार्यक्रम में लगा है
बाकी बहनजी, मुलायम, अखिलेश, नीतीश, लालू, तेजस्वी, भाजपा के मोदी जी और आदि तो ओबीसी है ही, ममता की जात अमित शाह या कैलाश विजयवर्गीय को मालूम ही है, और कौन है मैदान में
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|| सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नही ||
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एक बीमार महिला जो अपने पुत्र को सहयोग देने सड़क पर आई है और पैदल चल रही है वह निश्चित ही सराहनीय है , राजनीति के परे जाकर इस बात को रेखांकित करने की ज़रूरत है
फासिस्टवादी गुंडों, मवालियों, देश के सरकारी उपक्रम संसाधन बेचने वालों, नफरती चिंटूओं और आईटी सेल के माध्यम से सांप्रदायिकता भड़काने वाले मुस्टंडों और अघाये शरीर के मोटे, बेकाबू हो चुके थुलथुलों के लिये यह निश्चित ही चिंता की घड़ी है
जो शख्स सुरक्षा घेरे में रहने का आदि हो, 8 वर्ष हो गए - कभी पत्रकार वार्ता नही कर पाया, दो तिहाई हिस्सा विदेश घूमने में बर्बाद कर दिया जिसने, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छबि गिरा दी हो, अनपढ़ ने डॉलर को लगभग 85 रुपये पर ला दिया हो, रटे रटाये भाषण वो भी सिर्फ चुनाव जीतने वाले, अश्लील भाषा का प्रयोग करके भद्दे इशारे और बॉडी लैंग्वेज के साथ जनता में ज़ेड सुरक्षा के साथ जाता रहा हो, जिसका नुमाइंदा सिर्फ़ विधायक, सांसद, पंच, सरपंच या पार्षद खरीदने में व्यस्त रहा हो, जिन्होंने अपने ही मंत्रियों और वफादारों की मौत की घोषणा करने में देरी की हो या अपने ही विश्वस्त लोगों को निपटा दिया हो - वे क्या समझेंगे इस यात्रा का महत्व और जनता के बीच इतने खुले रूप से जाने को
जिनका बैकबोन मुखिया आजकल मुस्लिम एकीकरण में लगा हो और यह समझ रहा हो कि मुस्लिमों के बिना देश का विकास सम्भव नही - वे सिर्फ़ माब लिंचिंग, ध्रुवीकरण और नरसंहार करके अपनी सत्ता बनाये रखना चाहते है - वे खुले माहौल में हो रही इस यात्रा को कभी नही समझ पाएंगे
इस देश में सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस ही सफल हो सकती है - लिखकर रख लीजिये और मोदी शाह जैसे वीभत्स मानसिकता वाले लोग ज्यादा से ज्यादा 5 साल और राज कर सकते है , लोगों का भरम टूट रहा है - आम आदमी, नौकरीपेशा, उद्योगपति, किसान, फ़ौजी या व्यवसायी से लेकर साधु - संत इन दो जोकरों का खेल समझ गए है, यहाँ तक कि भाजपा, संघ से लेकर इनके आनुषंगिक संगठन भी इन दो निर्लज्ज गुजराती व्यापारियों के इरादों और कर्मों से वाकिफ़ हो गए है
और कांग्रेसी गद्दारों को भी समझ लेना चाहिये कि जिस तरह से वे वेश्याओं से भी नीचे गिरकर बिक रहे हैं मंडी में, वह लम्बे समय चलने वाला नही है, जनता अब 1947 की या 1984 वाली नही है , ना ही 1992 के आवेग और क्रूरता में डूबी हुई - अब नया समय है, अभ्युदय का युग है यह इन्हें समझ ही लेना चाहिये, दलितों और आदिवासियों को भी जान लेने का समय है कि जिस तरह हिंदुत्व के प्रचंड ज्वर में जलकर आप जॉम्बी बना दिए गए हो - वह आपको कही का नही छोड़ेगा, सन 2024 में सबसे पहला काम ये आरक्षण ही खत्म नही करेंगे, बल्कि वो सब खत्म करेंगे जो आपको इस देश का सँविधान दे रहा है
चुनाव में जीतना - हारना और सत्ता पा लेना तो नीचतम कर्म है जो प्रशांत किशोर जैसा कोई भी बाजारू आदमी रुपया लेकर आपको करके दे देगा, पर जनता के दिलों - दिमाग़ में बस जाने का काम होउडी - होउडी करने या मोदी - मोदी चिल्लाने से नही होगा, दो कदम जो लोग चल नही सकते, प्रेस के सामने नही आ सकते - उन डरपोक और देश बेचूँ लोगों से क्या सीखना और इनके क्या संस्कार है, आंतरिक कलह और द्वंद है - यह जरा हिन्दू धर्म के सर्वाधिक पूज्यनीय मोरारी बापू से सीख लें - जो गुजरात के ही है और रामकथा के सबसे प्रामाणिक व्यक्ति है, वे गुजराती में कह रहे है -
“मैं कोई शेर सुनाऊँ या गजल गाऊँ और उर्दू शब्द आएँ तो मुझ पर टूट पड़ते हैं, एक हिन्दुत्व के बड़े पुरुष हैं, मस्जिद में गए, इमाम से बातें कीं, मदरसे में भी गए - कुछ टीका उन पर भी करो? मुरारी बापू बोलते हैं तो लाठी भाँजते हो, अब कोई नहीं बोलता, कहां गए वे सब? कहाँ गए …"
राज खुल रहें है, नशा उतर रहा है, हिंदुत्व का ज्वार अब ठंडा पड़ रहा है, बस आपको जागना है एक बार


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