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Retirement of Ravi Mishra, Kuchh Rang Pyar ke, Sandip Ki Rasoi, Post of 31 July and 1 August 2022

 

|| पौष्टिक नाश्ता ||



इन दिनों कमल की ककड़ी या जड़ और ताज़ा मशरूम आ रहा है बहुत, साथ ही गाजर, खीरा भी, नींबू भी सस्ता है कम से कम गर्मियों की तुलना में
जरूरी सामग्री -
◆ कमल की ककड़ी या जड़, मशरूम, खीरा, गाजर, टमाटर, नींबू, प्याज़, हरी मिर्च - सब आवश्यकता अनुसार ले लें
◆ काली मिर्च कुटी हुई, चाट मसाला और थोड़ा सा नमक
विधि -
सबको धोकर मनचाहे आकार में काट लें, पॅन में थोड़ा सा ऑलिव ऑइल डालकर जीरा डालें और कटी हुई सामग्री को डाल कर सॉते कर लें दस मिनिट तक
फिर गैस से उतारकर स्वादानुसार नमक, काली मिर्च और चाट मसाला डालें, नींबू निचोड़कर गर्मागर्म खायें और स्वर्गिक सुख का आनंद लें, यह बेहद पौष्टिक और लाभदायी है , इसका इस्तेमाल उपवास में भी कर सकते है - गाजर और टमाटर ना डालें तो, हम मराठी लोग गाजर, टमाटर उपवास में इस्तेमाल नही करते है
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1985 - 86 में एकलव्य शैक्षिक शोध एवं नवाचार संस्था की स्थापना देवास में हुई थी, संस्था किशोर भारती से अलग होकर 1982 में पंजीकृत हुई थी, डॉक्टर रामनारायण स्याग जो मूल रूप से पंजाब में अबोहर के रहने वाले थे, ने इंदौर में डाक्टर बीके पासी के साथ पीएचडी ज्वाइन की थी, उन्होंने ही देवास में एकलव्य की टीम बनाई थी, दिल्ली, बम्बई, मालवा और पंजाब के सम्मिश्रण से बनी यह टीम नायाब थी और अनूठी
एक खास बात यह थी कि स्याग भाई ठेठ देशी किसान परिवार से है जबकि स्थापना करने वालों में ब्यूरोक्रेट्स के नकचढ़े बच्चे थे या दिल्ली विवि के फ्रेशर्स जो गांवों में रहकर बदलाव का सपना देखते थे अपनी सुख सुविधाओं के साथ, ना मात्र इन्होंने कुछ नवाचार आरम्भ किये - बल्कि प्रदेश के महाविद्यालयों के प्राध्यापक, स्कूल अध्यापक और स्थानीय लोगों को जोड़ा जो कई - कई तरह से काम आए और सबने अच्छा काम किया ; देशी - विदेशी लोग भी आये और तमाम तरह के नवाचार और काम हुए
स्याग भाई, अनु ,अरविंद, रवि, बन्धु, शोभा और मैंने उस टीम को ज्वाइन किया था, बाद में देवली के पण्डित दिनेश शर्मा जुड़े थे, हम लोगों ने इस दौरान खूब काम किये - जिले या प्रदेश में ही नही - देशभर में, इस बीच कई लोग आए और अवसरों को भुनाते हुए कही और चले गए पर जो जुड़ाव हम लोगों में अभी तक है - वह कही और देखने को नही मिलेगा
कई प्रशासनिक अधिकारी से लेकर कार्यकर्ता आए और गए, दर्जनों कलेक्टरों, आईएएस अधिकारियों, सचिवों, प्रमुख सचिवों और मुख्य सचिवों को भी हमने देखा - समझा, हजारों लोगों से हम मिले जिले में, लाखों लोगों से मिले देश भर में ; अंबेडकर से लेकर कबीर मंच, प्राचार्य मंच से लेकर छात्र मंच और तमाम तरह के प्रयोग हमने इस अवधि में किए थे, किशोर भारती से एकलव्य और एकलव्य से समावेश को बनते हुए देखा ; विचारधाराओं में लोगों को ऊपर - नीचे होते देखा, अवसर वादियों को देखा, फर्जी कॉमरेडों को देखा और कामरेडों के भेष में दक्षिणपंथीयों को देखा, दलित, ओबीसी, आदिवासी, सवर्ण और तमाम जातियों के समीकरणों को समझते हुए काम किया और अंत में यह पाया कि एकलव्य मॉडल जो जन विज्ञान का मॉडल था, जो लोगों को सशक्त करके बदलाव का मॉडल था, वह बुरी तरह से फेल हुआ , 1992 में बाबरी मस्ज़िद के समय जो दर्द हमने झेला था - फासिस्टों का, उस पर विवरण कहानी में होगा - जो लिखी जा रही है, पर इस सबके बाद भी जिले में कोई राजनैतिक परिपक्वता आज तक नही आई, इसलिये मैं तमाम अच्छे कामों के बाद भी एकलव्य के मॉडल को फेल मानता हूँ
कालांतर में लोग सिर्फ नौकरी कर रहे थे और जिसे ₹1 भी कहीं वेतन में ज्यादा मिला - वह नौकरी छोड़ कर चला गया या उन्होंने घर के लोगों को साथ मिलाकर या दोस्तों को जोड़कर अपनी दुकान खोल ली - जिसे एनजीओ या सीएसओ कहा और आज ये विशुद्ध रूप से व्यवसाय करके पैसा कमा रहे हैं - काम का कोई अर्थ नहीं है और समझ तो मान लो कभी थी ही नही
1985 से 95 के बीच में जिले में केवल एक संस्था थी, बाद में "समाज प्रगति सहयोग" आई देवास और बागली में - जिन्हें स्थापित होने में हमने मदद की थी और आज देखते ही देखते आज जिले में इतनी संस्थाएं बन गई हैं कि जिसने खादी का कुर्ता पहना है - उसे पत्थर मारेंगे तो वह एनजीओ वाला निकलेगा ; देवास में अब ऐसी संस्थाएं हैं जो थोड़ा काम करके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने माल को बेच रही हैं और देश के हर राज्य में उनके दफ्तर खुले हुए हैं, ये लोग हमेशा एयरपोर्ट, अमेरिका, कनाडा, लंदन में ही मिलते हैं - देवास में शायद ही कभी रहते होंगे, बहरहाल स्वैच्छिक संस्थाओं ने जो अपना स्पेस खोया है - उसको समझना हो तो एकलव्य की स्थापना के साथ आज बंद होने जा रहे हैं पूरे अभियान को विस्तृत रूप से और गहराई से समझना होगा, एकलव्य के दफ्तर तो मप्र के कई शहरों से कभी के बन्द हो गए थे
दिनेश शर्मा की मृत्यु हो गई, बंधु और मैंने एकलव्य संस्था 1998 - 2000 में छोड़ दी थी, धीरे - धीरे सब या तो रिटायर्ड हो गए या नौकरी छोड़कर अलग हो गए
आज आख़िरी व्यक्ति Ravi Kant Mishra मतलब रवि भाई भी रिटायर्ड हो रहे है, हम सब देवास में ही है एक परिवार की तरह मिलते जुलते है, एक दूसरे के काम आते है, खूब बहस और लड़ते भिड़ते भी है पर जो प्रेम और सामीप्य है वह बराबर बना हुआ है
रवि भाई को दूसरी पारी के लिये शुभकामनाएं
इस तरह से एकलव्य के बदलाव का एक सफल मॉडल बुरी तरह से बिखर कर खत्म हो गया , एक कहानी जो पिछले दस से ज्यादा वर्षों से लिखने की कोशिश कर रहा था, अब पूरी करूँगा
" रामनारायण बाजा बजाता "
सिर्फ, इतना ही कि "रामनारायण का बाजा" आज औपचारिक तौर पर बन्द हो गया - क्योंकि पूरी बैंड पार्टी बिखर गई है
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एक लेखक के बजाय उसके फटे जूतों को हमेंशा याद करने वाले हिंदी समाज की क्यूटनेस पर प्यार करने के अलावा कुछ और कर सकते है क्या आप, ये सब हरामखोर जात है जो भरे पेट उपहास उड़ाने और अपनी शान दिखाने में जन्म गवां रहें है
और मज़ेदार यह कि ढाई लाख वेतन पाने वाले हिंदी के माड़साब लोग्स, राज्य या केंद्र सरकार की नौकरी करने वाले या सेटिंगबाज लेखक जब यह कहते है तो इनको शर्म भी नही आती, प्रेमचंद ने कभी शायद ही जिक्र किया हो अपनी गरीबी का पर ये इतना कमाकर भी भूखे ही रहेंगे
कोई मतलब नही प्रेमचंद जयंती पर इनके कचरे को ओढ़ने या पढ़ने का

#प्रेमचंदजयंती

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