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Khari Khari, Drisht Kavi and Kuchh Rang Pyar Ke - Posts from 22 to 29 August 2022

कल भारतीय क्रिकेट टीम ने बढ़िया खेल खेला और जीत दर्ज की, हार्दिक
बधाई
रात बारह बजे जिस तरह से पटाखे फोड़े गए और हल्ला हुआ वह सिर्फ निंदनीय ही नही बल्कि बीमार मानसिक दशा का द्योतक है, एक खेल ही है ना क्रिकेट भी और प्रतिद्वंदी पाकिस्तानी हो तो क्या आप पूरा देश सिर पर उठा लेंगे और ऐसा तमाशा करेंगे
खेल की भावना कहाँ गई, और पटाखे फोड़कर आप लोग अपना धन बर्बाद कर रहे और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर प्रदूषण को भी बढ़ा रहें है और एक बात यह बताइए कि पाकिस्तानी खिलाड़ियों पर इस बर्बादी से क्या फर्क पड़ा पर आपके घर, पड़ोसी और मरीजों की स्थिति खराब हो गई इसकी कल्पना की किसी ने
मतलब प्रचंड राष्ट्रवाद की आड़ में आप ना खेल समझ पा रहे, ना खेल भावना, ना अपने हित साध पा रहें - खुशी मनाई जाए पर किस क़ीमत पर - यह सोचा कभी और छुपाने वाले बेशर्मी से मुद्दे छुपा रहें है और देश का ध्यान हर एक माह में कही और भटका रहें है - कमाल है हम भारत के 140 करोड़ लोगों का मुद्दा या नरेटिव एक या दो कारपोरेट के गुलाम तय कर रहें है
काश ऐसा सामूहिक प्रदर्शन महंगाई, बेरोजगारी, निजीकरण, रोज होते दंगों - गिरफ्तारियों और अपने अधिकारों को लेकर कर लेते, उन 22 -25 खिलाड़ियों को तो करोड़ो मिल गए, विज्ञापन कम्पनियों ने कमा लिया पर हम आपको क्या मिला
चीन ने जो बस्तियाँ एवं आबादी बसा ली है अरुणाचल से लेकर लगभग नार्थ ईस्ट में और अपनी सर ज़मीन पर जो अतिक्रमण किया है उसका भी जश्न ये लोग रोज मनायें - यह दुआ है, फोड़ो पटाखे उसका खर्च मैं देता हूँ
बेहद शर्मनाक और धिक्कार है हम सब पर
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गिरेंगे ज़ुल्म के महल, बनेंगे फिर नवीन घर
9/11 अमेरिका के हो, इंदौर का टॉवर हो पंकज संघवी का, कोचीन - केरल का टॉवर हो, जेट अमेरिका का हो या नोएडा का यह ट्वीन टॉवर
सबको एक दिन गिरना ही पड़ता है और यही जनता गिराती है, देर है पर अंधेर नही, जनता की ताक़त को कम मत आंकिए जनाब
बस गिनते जाईये , अभी बहुत ट्वीन टॉवर गिरना शेष है - समझ रहें है ना
जिसे अपने खुदा होने का गुमान है उन्हें समझ लेना चाहिये कि आख़िर में क्या बदा है गर्व, ऊँचाई और दर्प में खड़े टॉवर का
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"मेरी कविताओं और वाल पर कोई कमेंट नही करता, मैं रोज कम से कम हज़ार लोगों की वाल पर जिसमें से 800 किशोरियां, जवान, बूढ़ी या खब्ती महिलाएं होती है पर लाईक एवं कमेंट करता हूँ" - बहुत दुखी था लाईवा, बड़े दिनों में फोन किया उसने
"तुम हर पोस्ट के पहले या कविता के पहले अपने नंग - धड़ंग फोटो चैंप दिया करो और जब भी कोई किताब पढ़ो उसका फोटो अपने अर्ध नग्न शरीर के साथ चैंप दिया करो, या झूले पर बैठकर या गूगल से किसी का भी फोटो अपने साथ जोडजाड़कर पेलो दिन में चार बार - फिर देखना कैसे बरसात होगी देवीजियों, भाभियों और सुकन्याओं की, ये जवान, बड़े - बूढ़े भाई लोग भी जरूर आएंगे और देवियों के कमेंट के साथ तुम्हारी पोस्ट को भी लाइक करना ही पड़ेगा" - मैंने आज सहानुभूति पूर्वक उसे निशुल्क सलाह दे ही दी
"जय गुरुदेव, मैं चला इक्कावन कविताएँ लिखने , बस कपड़े उतार लूँ " - जोश में आ गया लाईवा
"अबै सुन तो पूरे कपड़े नही", पर वो कहाँ सुन रहा - फोन काट दिया नामुराद ने
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|| लगभग 15 वर्षों बाद ||

घर से उज्जैन इतना पास है कि रोज़ आया जा सकता है पर महाँकाल के मन्दिर में भीड़ इतनी होती है कि लाइन में लगने से घबराहट होती है, पहले की तरह मन्दिर खुला - खुला नही है, अंदर घुटन है और लोगों का सैलाब इतना होता है कि क्या ही कहें ऊपर से यहां के सुरक्षा कर्मी बड़े बदतमीज भी है
आज और कल - मैं और विपिन यहाँ है - किसी काम से तो दर्शन करने का अवसर नही चूका हमने और लम्बी लाईन में लगकर आख़िर दर्शन किये - बाबा के दर्शन का लाभ तभी मिलता है जब उनकी मर्जी हो और इच्छा हो - वे कही से भी बुला लेते है
बहरहाल, सबके लिए सुख, समृद्धि , सौहार्द्र और देश के लिए शांति की प्रार्थना की
होटल से हमे ई रिक्शा में शाहरूख ले गया था, युवा था और पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी उसकी है, बातचीत में उसने बताया कि महाँकाल बाबा की कृपा से ही उसकी रोज़ी चलती है, सावन में उसने पाँच हज़ार रोज कमायें और अभी दो हज़ार रोज़ कमा रहा है, रात को घर परिवार से निवृत्त होकर महाँकाल बाबा की सेवा करता है, निर्धनों को फ्री में ले जाता है - कोई लाग लपेट नही बातचीत में एकदम साफ, मैंने दो बार पूछा कि नाम क्या है तो बोला " शाहरूख ही नाम है, आप क्या समझ रहें है - उज्जैन में बाबा महाँकाल का आशीर्वाद नही तो कुछ रहमो करम नही होगा , इसी रहमो करम से माँ - बाप और बीबी - बच्चों को पालता हूँ, यह नई गाड़ी दो लाख दस हजार में ली है - इंशा अल्लाह जल्दी ही लोन चूक जायेगा "
कोई सुन रहा है, कोई पण्डित, कोई मुल्ला और कोई इंसान जो प्यार और दुआओं के यकीन करता है
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न्यायालयों के अवकाश भी श्रम कानूनों के समान होने चाहिये, लम्बे लम्बे शीत और ग्रीष्म अवकाशों की कोई ज़रूरत नही है, न्यायालयीन कर्मचारी और जज साहेबान भी इसी समाज से आते है , साल में अधिकतम दस से ज़्यादा नही
त्वरित न्याय पाने की प्रक्रिया में यह सबसे महत्वपूर्ण निर्णय होना चाहिये
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