समाज और जीवन की विसंगतियों का आईना डॉक्टर अरोड़ा
संदीप नाईक
सोनी लिव पर प्रसारित हो रही इम्तियाज़ अली की नई सीरीज “डॉक्टर अरोड़ा”
एक सीरिज नहीं घर- घर की कहानी है जो भारत में ही नही बल्कि विश्व के कोने कोने
में हर जगह घटित होती है. मानव जीवन सिर्फ खाने पीने के लिए नहीं बल्कि अपनी संतति
बढाने के लिए भी है जो सेक्स द्वारा ही संभव है. सेक्स को लेकर भारत ही नही पूरी
दुनिया में अजीब अजीब मान्यताएं,
विश्वास, परम्पराएं और तरीके है. हमारे यहाँ जब रजनीश ने सम्भोग
से समाधि लिखी थी तो बहुत हंगामा मचा था पर आज भी किशोर होता शख्स सबसे पहले यही
किताब पढ़ता है जो उसके दिमाग के जाले ही नहीं खोलती बल्कि एक सहज उपजी जिज्ञासा को
कुछ हद तक शांति प्रदान कराती है कुछ प्रश्नों के जवाब देती है.
यह कहानी मुरैना, सवाई
माधोपुर और झांसी के बीच घूमती है जहाँ एक गुप्त रोग विशेषग्य का क्लिनिक है और
आये दिन इस तरह के विज्ञापन हम अखबार और जगह जगह देखते है. अस्थाई रूप से किसी
होटल या धर्मशाला में चलने वाले ऐसे क्लिनिक्स की देश में बहार है और चोपड़ा अरोड़ा
से लेकर शाहनी और तमाम तरह के डाक्टर मरदाना कमजोरी से लेकर भगंदर , बवासीर और गुप्त रोगों का इलाज करते है, बस स्टेंड से लेकर रेलवे स्टेशन
के पेशाब घर या सुलभ काम्प्लेक्स या और तमाम जगहें ऐसे विज्ञापनों से अटी पड़ी रहती
है.
पिछले कई वर्षों से सामाजिक क्षेत्र में
हूं तो समुदाय के अलग-अलग वर्ग के साथ में कई तरह का काम करना पड़ते है. देश के
सुदूर इलाकों से लेकर महानगरों में काम कर रहा हूं और पिछले दशक से देख रहा हूं कि
पति पत्नी के बीच में तलाक के मामले ज्यादा बढ़ रहे हैं. ऊपरी तौर पर हम देखें तो
हमें लगता है कि यह मामले महिला को ससुराल में पीड़ित करने को लेकर है, परंतु जब
व्यक्तिगत रूप से युवा साथियों के साथ बातचीत करता हूं, अपने विद्यार्थियों से
बातचीत करता हूं या रिश्तेदारों में बड़े हो रहे बच्चों के साथ में बात करता हूं
तो समझ में आता है कि तलाक का मुख्य कारण शारीरिक सुख में कमी है या सीधे शब्दों
में कहें तो सेक्स में असंतुष्टि है और यह असंतुष्टि इतनी ज्यादा है कि मामला शादी
के 1 या 2 महीने के बाद ही तलाक तक
पहुंच रहा है. ऐसे में जो लोग तलाक तक नहीं पहुंचते और सामाजिक बंधन, परिवार की
इज्जत या अपनी मान - प्रतिष्ठा को ध्यान रखते हैं - इस तरह के गुप्त रोग विशेषज्ञ
के पास अक्सर जाते हैं और यह गुप्त रोग विशेषज्ञ उन्हें ना मात्र सलाह - मशवरा
देता है बल्कि अच्छा खासा रुपया भी एठता है, कई बार मामले ब्लैकमेल तक पहुंच जाते
हैं और युवाओं को आत्महत्या तक करना पड़ती है.
काम के दबाव, मेट्रो सीटी में लोकल
ट्रांसपोर्ट में अत्यधिक समय लगना, काम के घंटों में बढ़ोतरी और ऐसे में थक - हार
कर निढाल शरीर के साथ रात 10 - 11 बजे घर पर लौटना और अपने साथी को शारीरिक सुख दे पाना शायद संभव नहीं हो पा
रहा है. इस वजह से झगड़े बढ़ते जा रहे हैं, सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री में देर रात तक
काम करना और कई बार रात - रात भर काम करना भी एक बड़ा मुद्दा है - जिसकी वजह से
युवा लोग अपने साथी को उतना समय नहीं दे पाते जितना अपेक्षित होता है और यह शुरुआत
में तो थोड़ा सा एडजेस्टमेंट से चल जाता है, परंतु जब यह जीवन का स्थाई भाव बन
जाता है तो एक तरह की नपुंसकता मानसिक रूप से हावी होने लगती है और शारीरिक सुख की
कमी की वजह से दोनों यानी पति-पत्नी का स्वभाव चिड़चिड़ा होने लगता हैं और यह
चिड़चिड़ापन तलाक तक या फिर किसी गुप्त रोग विशेषज्ञ तक ले जाता है, मानसिक रोग भी
होने लगे है ज्यादा इसी वजह से.
डॉक्टर अरोड़ा एक ऐसे ही व्यक्ति हैं
जिनकी शादी तो हुई थी परंतु वह पत्नी को सुख नहीं दे पाए उस वजह से उनकी पत्नी
उन्हें छोड़ कर चली गई. बाद में उन्होंने पढ़ाई करके अपने मित्रों को सलाह देना
शुरू किया और धीरे-धीरे वे इस काम में पारंगत होते गए. छोटे से क्लीनिक से शुरू
करके उन्होंने अपना काम तीन शहरों में फैलाया और वह हफ्ते में दो – दो दिन तीनों
शहरों के किसी एक छोटे से होटल के अंधेरे
कमरे में बैठकर मरीजों को सलाह देने लगे. अरोड़ा के पास सब तरह के मरीज आते हैं
किशोरावस्था से लेकर बुजुर्ग व्यक्ति तक. हर एपिसोड में एक यूनिक तरह की कहानी
बताई गई है और इसके साथ - साथ कई कहानियां एक साथ चलती है. एक शहर में पुलिस
अधीक्षक है जो युवा है – तोमर नाम का यह अधिकारी बहुत कठोर पुलिस अधिकारी है, युवा
है परंतु अपनी पत्नी के साथ संबंध ठीक से नहीं बना पाता और शीघ्रपतन का शिकार है.
उसकि पत्नी को कहीं से मालूम पड़ता है कि डॉक्टर अरोड़ा जो है इस तरह के विशेषज्ञ
हैं. इसलिए वह अरोड़ा से संपर्क कराती है किसी साड़ी की दूकान में पहले मिलाती है, फिर उन्हें
घर बुलाकर अपने पति का इलाज करवाना शुरू करती है.
इस एपिसोड को देखकर मुझे देवास के डॉक्टर
प्रकाश कान्त की कहानी याद आई जो उन्होंने सालम मूसली की दवा बेचने वालों पर लिखी
थी और देवास जिले के हाटपिपलिया नाम के कस्बे पर आधारित थी. हाटपिपलिया देवास से 45 किलोमीटर दूर एक कस्बा है जहां एक थाना है और वहां का
थानेदार ना मर्दानगी का शिकार है, वह सालम मूसली बेचने वाले से दवाई लेता है और
उसे धमका आता है यदि उसकी दवा से ठीक नहीं हुआ तो वह उसकी दुकान उजाड़ देगा.
लगातार दो तीन माह तक दवा लेने के बाद भी जब वह ठीक से परफॉर्म नहीं कर पाता तो एक
दिन अपने थाने के सिपाही को भेजता है कि जाओ उस सालम मूसली को उठा लाओ. सालम मुसली वाला बहुत घबराता
है जब उसकी दुकान पर पुलिस वाले आते हैं उसे गिरफ्तार करने, पर फिर वह सोचता है कि
थाने पर जाने में क्या हर्ज है - करेगा क्या थानेदार, वैसे ही
नपुंसक है साला. इसी तरह से तोमर नामक एसपी भी डॉक्टर को धमका आता है परंतु डॉक्टर
को मालूम है कि वह उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता परंतु आखरी में दो तीन फर्जी
शिकायतों के आधार पर डॉक्टर को गिरफ्तार कर लिया जाता है अंत में डॉक्टर की पूर्व
पत्नी आकर उसे तसल्ली देती है कि वह गवाही देगी कि पिछली रात वह उसके साथ था
इस सारे खेल में मीडिया, समाजसेवी
संस्थाएं, धार्मिक बाबा, आश्रम, मठ और समाज की सब विद्रूप कहानियां समानांतर रूप से चलती है जहां पर कोई
ना कोई नामर्दानगी का शिकार है और डॉक्टर को गुप्त रूप से हर स्थान पर बुलाया जाता
है और इलाज करवाया जाता है. दरअसल में सेक्स और सेक्स से जुड़ी भ्रांतियों को लेकर
बहुत गंभीरता से काम करने की जरूरत है. किशोरावस्था से सेक्स एजुकेशन की जरूरत है ताकि जवान
होते बच्चों को सेक्स और सेक्स की फिजियोलॉजी के बारे में सही तरीके से समझा सके
और वे दिमाग में कोई भ्रम न पालें और अपना जीवन सही तरीके से बीतायें. सेक्स के
बारे में खुले रुप से बातचीत भी समाज में होना चाहिए क्योंकि इसे अश्लीलता मानकर
जिस तरह से भावनाओं को दबाया जाता है, जिस तरह से प्रश्नों को दबाया जाता है वह
अंततः सबको एक गलत दिशा में ले जाता है और सच में बुरी संगत में पड़कर लड़के और
लड़कियां अपना जीवन बर्बाद कर लेते हैं.
किशोरावस्था और युवावस्था जिंदगी के दो
महत्वपूर्ण पड़ाव हैं और इस अवस्था में यदि सही जानकारी नहीं हो तो जीवन का ना वे
आनंद ले पाएंगे और ना जीवन का कोई अर्थ रहेगा - सारा जीवन लड़ाई झगड़ा और इस तरह
के डॉक्टरों के बीच में बीत जाएगा और माया मिलेगी ना राम वाली कहावत चरितार्थ होगी.
डॉक्टर अरोड़ा एक बहुत ही प्रभावी सीरीज है जिसे परिवार के सदस्यों को सबके साथ
बैठकर देखना चाहिए ताकि बच्चों, किशोरों और युवाओं के जो भी प्रश्न हो वह सही
अर्थों में समझे जा सके और उनका समुचित जवाब दिया जा सके. हाल ही में एलजीबीटीक्यू
समुदाय के लोगों के साथ और किन्नरों के एक समूह के साथ जिन्हें थर्ड जेंडर
भी कहते हैं भोपाल में लंबे संवाद का मौका एक प्रशिक्षण में मिला - तब समझ में आया
कि जिस तरह से इनके साथ समाज भेदभाव करता है, जिस तरह से इनका शोषण किया जा रहा है,
जिस तरह से इनकी हर स्तर पर उपेक्षा की जा
रही है वह किसी भी सभ्य समाज के लिए सही नहीं है. परंतु छत्तीसगढ़ में मितवा
सामाजिक संस्था ने बहुत अच्छा काम किया है पूरे छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार
के साथ मिलकर थर्ड जेंडर कमीशन बनाया है, 100 से ज्यादा थर्ड जेंडर के व्यक्तियों को पुलिस में नौकरी
दिलवाई है, रायपुर में एक शेल्टर होम बनाया है और पुलिस को संवेदनशील बनाने के लिए
व्यापक स्तर पर प्रशिक्षण किए हैं. मितवा
संस्था की अध्यक्ष विद्या बताती है कि “समाज का नजरिया जब तक नहीं बदलेगा तब तक
लोगों की भावनाओं को नहीं समझा जा सकेगा और हमेशा एक बड़े समाज में छोटे से तबके
का शोषण होता रहेगा, उपेक्षा होती रहेगी और इस तरह के डॉक्टर लोगों की कमजोरियों
का फायदा उठाकर उन्हें आर्थिक, मानसिक और सामाजिक रुप से शोषित करते रहेंगे, आज जरूरी
है कि सभी तरह के लोगों का सम्मान किया जाए उन्हें मान्यता दी जाए और सेक्स जैसे
विषय पर खुले रूप से बातचीत की जाए तभी हम एक स्वस्थ और विकसित समाज की कल्पना कर
सकेंगे” रायपुर में नुक्कड़ टीकेफे के संचालक प्रियांक पटेल के तीन आउट
लेट्स है दो रायपुर में और एक भिलाई में, रायपुर के पंडरी
माल में जो केफे है उसका संचालन थर्ड जेंडर के युवा करते है और इस कार्य के लिए
प्रियांक को हाल में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
यह सीरीज सिर्फ इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है
कि इसमें मनोरंजन है, हंसी है, ठहाके हैं, मानवीय कमजोरियों का बखान है, सेक्स जैसे
मुद्दे पर खुलकर बातचीत की गई है - बल्कि इसलिए महत्वपूर्ण है यह एक बड़ी समस्या
की ओर और मानवीय सभ्यता के विकास और मनुष्य के जन्म को लेकर होने वाली विसंगतियों
की ओर इशारा करती है. इम्तियाज अली ने बहुत खूबसूरती से इस कहानी को रचा और बुना है.
कलाकारों का अभिनय उत्कृष्ट है और सीरीज की
कहानी जिस तेजी से दर्शकों को बांधती है वह बहुत ही प्रशंसनीय है. यह सीरीज जरूर
देखी जानी चाहिए और पूरे परिवार के साथ बैठकर देखी जानी चाहिए बगैर किसी शर्म और
झिझक के - ताकि एक खुले और स्वस्थ माहौल में हम सब के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण
हिस्सा जो सेक्स को लेकर है, उस पर गंभीरता से बातचीत हो सके, उस पर गंभीरता से
सही दिशा में शैक्षिक बातचीत हो सके - अगर यह कहूं तो अतिशयोक्ति नहीं होगा
Prajaatantra 21 Aug 22
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