मित्लारों ने लाईवा को परिभाषित करते हुए संक्षिप्त निबंध की मांग की है , सो आदेश शिरोधार्य है
----
लाईवा
---------
◆ कौन है लाईवा - लाईवा कवियों की एक प्रजाति है जो घर बैठकर नीचे लुंगी या बॉक्सर और ऊपर कोट टाई पहनकर स्टूल पर बैठकर, बगैर ब्रश किये कविता का लाईव प्रसारण करती है
◆ उपलब्धता - ये सुबह 5 से रात 12 और 24 x 7 कविता सुनाने को उपलब्ध रहती है, सुलभ काम्प्लेक्स का भी टाईम होता है बन्द होने का पर ये सदैव माँ सुरसती की सेवा में उपलब्ध रहते है
◆ उदभव - इनका उदभव कोरोना काल में आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है की तर्ज पर हुआ
◆ तख्खलूस - "ये मेरी आवाज आ रही है ना " - बोलने के अभ्यस्त होते है
◆ दर्शक - श्रोता या दर्शक ना भी हो तो ये घण्टों डटे रहते है अपना नेट खर्च करके
◆ वर्ग - ये हिंदी, अँग्रेजी या उर्दू के पीआरटी से लेकर विभागाध्यक्ष या डीन, कुलपतित तक हो सकते है, ब्युरोक्रेट्स, व्यापारी और मध्यम वर्गीय कर्मचारी भी इसमें शामिल है आरक्षण की सुविधा के साथ
◆ मानदेय - ये मानदेय नही लेते बल्कि ग्राहक , ओह सॉरी दर्शक जुटाने का खर्च स्वयं देते है
◆ लाभ हानि - कोई लाभ नही और हानि तो क्या घण्टा देंगे , मोदी काल की उपज है ये तो आप समझ सकते है बिल्ली के गू है लीपने के ना छाबने के है
◆ उपसँहार - कविता का नुकसान करके सारे हिंदी के वरिष्ठों की पोलखोल का महाअभियान सम्पन्न किया इतना कि कविता आम आदमी से दूर होकर मंगल गृह / ग्रह चली गई सदा के लिए
नोट - हे हिंदी के उद्धारक प्रोफ़ेसर जॉम्बी, मेरी रचनाएँ कही स्वीकृत हो तो छपने देना टाँग मत अड़ाना वरना सबको सब बताना पड़ेगा
इति
***
"बस्तर की उस खदान से जिसे अडानी ने खोदकर छग की वसुंधरा को लगभग नग्न कर दिया था, उस प्रखंड के बहुमूल्य बारीक कणों से लबरेज़ उस उपकरण को जिसे असंख्य मानुषों की भीड़ से आच्छादित एक मुस्लिम त्योहार के मेले की किसी कोने में पड़ी आसमान के नीचे वाली दुकान से चंद सिक्के देकर हामिद ने खरीदा था, लोह अयस्क से बना वह उपकरण पंच तत्वों में से एक को महसूस नही करवाता था - जिसे आग कहते थे लोग सभ्यता में, हामिद ने दादी को कसकर पकड़ा, एक टाईट हग देते हुए इस जादुई उपकरण को हाथ में पकड़ाया तो वह अश्रु जल से भर उठी, पुनासा डेम उसके आंसूओं से भर गया - बड़वानी के गाँव डूब गए ......मेधा पाटकर दूर मुम्बई में किसी कैफ़े से आशीर्वाद की वर्षा कर रही रही "
यह सब पढ़कर मैंने तुरन्त लाईवा को फोन लगाया और गुस्से में कहा -
" क्यों बै लाईवा, साले ये तो प्रेमचंद की कहानी है - ईदगाह - ये पांडे, शर्मा, द्विवेदी, त्रिवेदी, चतुर्वेदी टाईप क्या कॉपी पेस्ट करके अपने नाम से छपवा लिया "
"जी, जी - एकदम सही पकड़े है आप, ये नई वाली हिंदी है प्रभु जी, अब प्रेमचंद को हिंदी कहाँ आती थी ससुरे ने बीएचयू से हिंदी में नही ना पीएचडी की, साला सीधा सीधा लिखता है - हामिद ने दादी को चिमटा दिया तो वह रोने लगी, अब बताइये भाव नही ना आयेंगे, बड़े ज्वलंत और वैश्विक सन्दर्भ ना हो तो क्या कहानी और क्या कविता, टीएस इलियट का वेस्ट लैंड और एसटी कॉलरिज का कुबला खान नही ना पढ़े है आप ", - लाईवा लगा था स्पष्टीकरण देने में , साला चोट्टा कही का
मैंने किताब को रद्दी में दे दिया और अब सो रहा हूँ
***
बहुत दिनों से बाहर था, तीन साल बाद लगभग - होटल का अगड़म बगड़म खाकर लगा कि गड़बड़ हो रहा है शुगर, बीपी, थायरॉइड सबका मामला बिगड़ रहा है तो आज डीटॉक्सीफिकेश के लिए शेक बनाया
एलोवीरा, लौकी, खीरा, टमाटर, कंद और अदरख डालकर शेक बनाया एकदम ताज़ा , बस स्वाद के लिए थोड़ी सी काली मिर्च और काला नमक
इन दिनों एलोवीरा घर पर गमले में खूब लगा है तो उपयोग शुरू किया आज से
हो गया है तैयार, रोज पीना है अब इसे कम से कम 15 दिन - लंच की छुट्टी
***
|| धारयति ते धर्म : ||
•••
सड़क पर जुलूस निकालना, फर्जी साधुओं, मुल्लों और धर्म गुरुओं को पूजना धर्म नही है,आशाराम से लेकर राम रहीम और अब ताज़ा उदाहरण रीवा के सर्किट हाउस में एक युवा साधु द्वारा बलात्कार की घटना भयानक है, इसकी निंदा होनी चाहिये
जो गृहस्थ है, जिसके बीबी बच्चे है, आलीशान बंगले है, ऐय्याशों जैसा रहता हो, जिसके बच्चे अमेरिका पढ़ते है, सरकारी नौकरियां करते है, जो हर माह बैंक बैलेंस पर नजर रखता हो, शिष्यों से नगदी वसूलें और अपना घर भरें वो किधर से गुरु है ससुरा
घोर अवैज्ञानिक,अंधविश्वासी, अपढ़ और निरक्षर गंवार किस्म के ये लोग आपके पढ़े लिखे बच्चों और युवाओं को अंधी खाई में धकेल रहें है और इनको बढ़ावा देने वाले दलाल बेहद शातिर है जो यूज़ कर रहें है
इसी के साथ यह भी कहना चाहता हूँ कि आये दिन घर मुहल्लों और आसपास के मंदिरों में आने वाले घटिया साधु और फर्जी लालची भेड़ियों को भी घर में ना घुसने दें
जीवन भर बैंक से लेकर तमाम तरह की सरकारी नौकरियां की , गबन किये, मक्कारी की और जब जलील होकर इन्हें हकाला गया या इन्होंने नौकरियां छोड़ी तो ये सफेदपोश बन गए और वर्ग विशेष को साधकर नया धँधा अपना लिया
इसमें पढ़े लिखें बेरोजगार भी शामिल है जो वाक पटू होने के साथ साथ चतुर है अपने घर परिवार और समाज में देखिये कि किस तरह से ये कमा रहे है, राजनेताओं से सांठ गाँठ करके ये छल रहें है, इनको प्रमोट करने वाले हमारे आसपास और घर परिवार के लोग है जो अपने निजी स्वार्थ और महत्वकांक्षाओं के तहत इन्हें यूज करते है
तमाम जातिवादी समाजों और छोटे समाजों का नियंता एक न एक साधु, मुल्ला, पादरी या कोई धर्म गुरु है और इनके दलाल है हमारे अपने आसपास के लोग - थोड़ा समझिए कि ये क्या गोरख धँधा फैला रहें है - क्यों धर्म आज हिंसक हो गया , क्यों आज लोग डरने लगे और सवाल नही उठ रहे है
आये दिन होने वाली मज़लिसें, अनुष्ठान, धर्म के नाम पर भीड़ और जुलूस आदि से बचिये , उन लोगों की पहचान करिये जो आपको बरगला कर आपको, आपके बच्चों को, युवाओं को अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए झोंक रहा है, कोई नौकरी की बात नही करता सिर्फ इन्हें भीड़ चाहिये ताकि ये तथाकथित स्वार्थी चोर उचक्के अपनी सम्पत्ति को बढ़ाने के लिये धन और बाकी सब का जुगाड़ कर सकें
अपने परिवार के किशोरों युवाओं और महिलाओं को इनका टूल बनने से बचाइए वरना एक दिन आपके घर में यह सब होगा
त्योहार घर परिवार के साथ खुशी से मनाने के लिए होता है नाकि सुबह से सड़कों पर नौटँकी करने और इन घटिया चोर बाबाओं के पीछे चलने के लिए
बचना होगा इस सबसे और यह समस्या हर धर्म में है क्योकि दुष्ट हर जगह है और ठेकेदार भी हर जगह
Comments