एकदम खतरनाक धूप में कल में चिन्मय मिश्र जी के घर, इंदौर पहुंचा था - सरोज भाभी ने कहा - "चाय पियोगे, मैंने कहा नहीं - कुछ खा लो, मैंने कहा नहीं - घर से पोहा खा कर आया हूँ"
फिर उन्होंने कहा कि - "बेल का शरबत पी लो दिन भर बाहर धूप में रहोगे तो शायद फायदा करें - पर थोड़ी सी शक्कर डाली है" मन ललचा गया और मना नहीं कर पाया, झटपट से एक ग्लास भर के ठंडा शरबत पी गया और राहत महसूस की
सच में पेट में जो ठंडक पहुंची - वह कमाल की थी और इसी शरबत ने शाम तक जिंदा रखा, पूरा दिन धूप में घूमता रहा - पर ठंडक गर्मी में तब्दील नहीं हुई, आते समय सरोज भाभी ने एक किलो का लगभग बड़ा सा बेलफल दिया ; अभी कच्चा ज़रूर है, पर दो-चार दिन में पक जाएगा तो शरबत बनाकर रखूंगा , मन तो कर रहा था पेड़ पर लगे सारे बेलफल तोड़ कर झोले में भर लूँ पर अपने गांधीवादी चिन्मय जी हिंसा कर देते, वैसे ही बहुत डरता हूँ आजकल
इससे और क्या बन सकता है , मुरब्बा मालूम है पर अपन शक़्कर के भंडार गृह है - तो नही चलेगा - बाकी ज्ञानी लोग प्रकाश डालें तो प्रयोग किया जाए
***
दोनो प्यारे कवि और लाड़ले अनुजों को खूब बधाई - इस प्यार भरी फटकार के साथ कि खूब लिखें, रचें, गुणें और बुने
स्वस्तिकामनाएँ
नदी को देखिए दूर से ...या फिर रेलवे के पुल से ही देखिए । बलखाती हुई खूबसूरत , नैनाभिराम दृश्यों से ओत प्रोत लगती है , पर भूल कर भी उसके किनारे न जाइए । पास जाते ही किनारे पर पड़े मल, पशुओं के सड़ते हुए शव , शहर का सीवर और उससे उठती दुर्गंध आपको बीमार बहुत बीमार बना सकता है । लिहाजा नदी को दूर से देखिए , चाहे वह रेलवे के पुल से ही क्यों न हो । बहुत श्रद्धा हो तो चवन्नी –अठन्नी के सिक्के उछाल कर प्रणाम कर लीजिए ।
उसी तरह कुछ "तथाकथित" लोग जिन्हें लोग बड़ा लेखक, विद्वान ,बुद्धिजीवी, विचारक समझ कर भरोसा करते हैं , सम्मान देते हैं , वह भी नदी की तरह ही होते हैं ...।
***
कोई एक भी प्रतिज्ञा दलित नेतृत्व, अम्बेडकरवादी या अम्बेडकर के संविधानिक प्रावधानों की वजह से ऊँची जगहों पर पहुँच गए - इसमें से मानते है क्या, या आज भगवा यात्राओं में जो भीड़ बहुजन समाज की दिख रही वो इनमे से किसी एक को भी जानते भी है - समझना तो दूर की बात है, जिस मूर्ति पूजा का विरोध बाबा साहब ने किया वे ही आज हर जगह मूर्ति के रूप में विराजित है - क्या ही कहा जाये
•••
अम्बेडकरवादी तो बनते हैं मगर इनमें से आप कितनी प्रतिज्ञाओं को मानते हैं?
डॉ० अम्बेडकर की 22 प्रतिज्ञाएं :
1- मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा।
2- मैं राम और कृष्ण, जो भगवान के अवतार माने जाते हैं, में कोई आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा।
3- मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा।
4- मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता हूँ।
5- मैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे. मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार-प्रसार मानता हूँ।
6- मैं श्राद्ध में भाग नहीं लूँगा और न ही पिंड-दान दूँगा।
7- मैं बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों का उल्लंघन करने वाले तरीके से कार्य नहीं करूँगा।
8- मैं ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी समारोह को स्वीकार नहीं करूँगा।
9- मैं मनुष्य की समानता में विश्वास करता हूँ।
10- मैं समानता स्थापित करने का प्रयास करूँगा।
11- मैं बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग का अनुशरण करूँगा।
12- मैं बुद्ध द्वारा निर्धारित परमितों का पालन करूँगा।
13- मैं सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया और प्यार भरी दयालुता रखूँगा तथा उनकी रक्षा करूँगा।
14- मैं चोरी नहीं करूँगा।
15- मैं झूठ नहीं बोलूँगा।
16- मैं कामुक पापों को नहीं करूँगा।
17- मैं शराब, ड्रग्स जैसे मादक पदार्थों का सेवन नहीं करूँगा।
18- मैं महान आष्टांगिक मार्ग के पालन का प्रयास करूँगा एवं सहानुभूति और प्यार भरी दयालुता का दैनिक जीवन में अभ्यास करूँगा।
19- मैं हिंदू धर्म का त्याग करता हूँ जो मानवता के लिए हानिकारक है और उन्नति और मानवता के विकास में बाधक है क्योंकि यह असमानता पर आधारित है, और स्व-धर्मं के रूप में बौद्ध धर्म को अपनाता हूँ।
20- मैं दृढ़ता के साथ यह विश्वास करता हूँ की बुद्ध का धम्म ही सच्चा धर्म है।
21- मुझे विश्वास है कि मैं फिर से जन्म ले रहा हूँ (इस धर्म परिवर्तन के द्वारा)।
22- मैं गंभीरता एवं दृढ़ता के साथ घोषित करता हूँ कि मैं इसके (धर्म परिवर्तन के) बाद अपने जीवन का बुद्ध के सिद्धांतों व शिक्षाओं एवं उनके धम्म के अनुसार मार्गदर्शन करूँगा।
डा० बी.आर. अम्बेडकर
***
Comments