|| श्रीराम चन्द्र कृपालु भजमन ||
सहृदय, सहज, लोकमत को मानने वाले, जनता को सर्वोपरि रखने वाले, प्रेमी, अनुरागी और समय अनुसार चलने वाले निश्छल प्रभु श्रीराम की आज जयन्ति है
वे एक रोल मॉडल है और सभी राम के चरित्र को लिखने वालों ने उन्हें मानवीय बताया है - ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम की आज जयन्ति है, जिसे हम राम नवमी से जानते है
वे जन - जन में बसे है , सौम्यता और भक्ति के साथ, वे जोड़ते है - वे केवट, शबरी, जामुवन्त, अहिल्या, गौतम, रावण, विभीषण, धोबी या कैकेयी जैसी माता को भी, वे आज्ञापालक है वे निर्मल हृदय वाले हनुमान के भी आराध्य है और प्रजा के अंतिम छोर पर खड़े आदमी के भी है, उनका भय भी प्रेम से परिपूर्ण है, वे सज़ा भी देते है तो उद्धार करने को, वे अहिल्या के भी मुक्तिदाता है और सीता के भी, वे लक्ष्मण को भी उतना ही प्यार देते है - जितना भरत या रावण के दूत को, वे मानवता से कष्ट मिटाने को अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देते है और अपना घर - परिवार भी, वे निर्मोही है धन संपत्ति से दूर, ऐषणा से परे और सम्यक जीवन दृष्टि रखने वाले शूरवीर है
राम का इस देश की संस्कृति में उतना ही महत्व है - जितना जल , जमीन , हवा अग्नि और आसमान का और इस पवित्रता को कोई भी अपने क्षुद्र स्वार्थ के लिए मिटाने का प्रयास करें, राम का क्रोधित मुखमंडल गाँठ कर लोगों को बांटने का प्रयास करें - वह सम्भव नही है ; अस्तु वे सबके है, वे आलीशान और भव्य मंदिर में नही - हर जर्रे जर्रे में बसे है, वे सबके दिल में है तभी हम राम - राम और जै रामजी की कहकर एक दूसरे से मिलते है
हमारी संस्कृति, तहज़ीब और परम्परा के वे आदर्श है और अनंत काल तक रहेंगे, हमें राम की उपासना करने के लिए किसी सत्ता लोलुप और अधर्मी से ना प्रमाणपत्र लेना है और ना सीखने की जरुरत है , बस राम नाम ही डाकू को वाल्मीकि बना देता है - मन में श्रद्धा हो , यही पर्याप्त है तभी विभिन्न भाषाओं में लिखा उनका जीवन चरित्र इतना वृहद और पहाड़नुमा है कि कोई दुष्ट आजतक उसके बराबर ना लिख पाया ना व्याख्या कर पाया
देवताओं को इस्तेमाल करने वाले घाघ और पापी आते जाते रहते है पर जो हमारी साझी विरासत और गंगा जमनी तहज़ीब है उसे कोई नही मिटा सकते है - धैर्य रखिए यह भी गुज़र जाएगा - आततायी हमेंशा के लिए नही रहते, राम ने सबकी सुनी और कभी किसी को कुछ बोलने या करने से रोका नही तभी वे आदर्श राजा है महलों में रहने वाले सच्चे त्यागी और निष्कलंक व्यक्तित्व के धनी
श्रीराम नवमी की सबको शुभकामनाएं - स्नेह और रिश्तों की मिठास बनी रहें
जय श्रीराम
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और क्या हाल है - फाफड़ा, थेपला, उनदिया, ढोकला सब खा लिया, अगले मन की बात की तैयारी कर ली" - मैंने पूछा
उधर से बोला - 'हां, हां सब खा लिया - सब तैयारी कर ली, तीन टेलीप्रिंटर एक साथ लगा कर रखे हैं - सॉरी टेलीप्रॉन्पटर,- बस अभी फुर्सत हुआ तो टीवी देख रहा था - एक बात तो है, कल अगर अपने भारत में भी ऐसा कुछ होता है तो मैं भी इमरान भाई की तरह कुर्सी नहीं छोडूंगा - चाहे कोई भी आ जाए भोगी या कोई शाह फकीर, नहीं छोडूंगा - मतलब नहीं छोडूंगा, बस बात हो गई - अच्छा तुम बाद में कॉल करना - अभी वह सुप्रीम कोर्ट खुलवा रहा है, मैंने तो पिछले कार्यकाल में ही खुलवा लिया था रॉफेल के टाइम पर, हे हे हे हे - तभी तो वह भारत को अपना सपोर्टर कहता है, चलो कल फोन लगाना, अभी देखने दो कि वह क्या-क्या और कर रहा है
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" बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे "
◆ डाॅ राम दरश मिश्र
बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे,
खुले मेरे ख़्वाबों के पर धीरे-धीरे।
किसी को गिराया न ख़ुद को उछाला,
कटा ज़िंदगी का सफ़्रर धीरे-धीरे।
जहाँ आप पहुँचे छ्लांगे लगाकर,
वहाँ मैं भी आया मगर धीरे-धीरे।
पहाड़ों की कोई चुनौती नहीं थी,
उठाता गया यूँ ही सर धीरे-धीरे।
न हँस कर न रोकर किसी में उडे़ला,
पिया खुद ही अपना ज़हर धीरे-धीरे।
गिरा मैं कहीं तो अकेले में रोया,
गया दर्द से घाव भर धीरे-धीरे।
ज़मीं खेत की साथ लेकर चला था,
उगा उसमें कोई शहर धीरे-धीरे।
मिला क्या न मुझको ए दुनिया तुम्हारी,
मोहब्बत मिली, मगर धीरे-धीरे
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शंख घोष की इस कविता के साथ आपको जन्मदिन मुबारक मेरे दादा। एक उम्मीद मिलने की हमेशा बनी रहेगी। यह जानते हुए भी कि बहुत दूर नहीं बैठा हूँ आपसे।
तुम्हारे जन्मदिन पर और क्या दूंगा सिवाय इस वचन के
कि कभी फिर हमारी मुलाक़ात होगी।
मुलाक़ात होगी तुलती के चौरे पर
मुलाक़ात होगी बाँस के पुल पर
सुपारीवन के किनारे मुलाक़ात होगी।
हम घूमेंगे शहर में डामर की टूटी सड़कों पर
गुनगुनी दोपहर या अविश्वासों की रात में
लेकिन हमें घेरे रहेगी अदृश्य
उसी तुलसी अथवा पुल अथवा सुपारी की
बेहद सुन्दर तन्वंगी हवा।
हाथ उठाकर कहेंगे हम
यही तो, इसी तरह
सिर्फ़ दो-एक दुःख बचे रह गए आज भी।
जाते समय निगाहों की चाहत में भिगो लेंगे आँखें
हृदय को दुलराएगा उंगलियों का एक पंख
मानो हमारे सम्मुख कहीं कोई अपघात नहीं
और मृत्यु नहीं दिगन्त तक।
तुम्हारे जन्मदिन पर और क्या दूंगा सिवाय इस वचन के
कि कल से हरेक दिन मेरा जन्मदिन होगा!
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