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Khari Khari, Drisht Kavi and other posts from 5 to 6 April 2021

 सा विद्या या विमुक्तये

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गरीब, आदिवासी, दलित से लेकर लड़कियों को शिक्षा के दायरे में लाने के लिए हजारों सालों तक लम्बी लड़ाई लड़ने वाले गांधी, सावित्रीबाई फुले, ज्योतिबा, अंबडेकर और लाखों वो लोग - जिनका जीवन बलिदान चढ़ गया कि बच्चे अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा हासिल कर सके
आज देश के दूरदराज के इलाकों में जब लड़कियां मुस्कुराते हुए झुंड में साइकिल या पैदल जाते हुए दिखती है तो सावित्रीबाई फुले या पण्डिता रमा बाई या गार्गी की शक्ल मुझे उनमें नज़र आती है, करोड़ो महिलाओं को नौकरियों में देखता हूँ तो उस श्रम की महत्ता को प्रतिपादित कर पाता हूँ जो लड़कियों को ज्ञान के उजाले में लेकर आई और उन्हें शिक्षा अर्जित करने का हक़ दिलाया
फटे कपड़ों में नँगे भूखे स्कूल की घण्टी बजने पर दौड़ते गरीब आदिवासी बच्चे, दूर पहाड़ी पर टूटी फूटी बिल्डिंग में माड़साब के साथ दुनिया जहान की बातें सीख रहें बच्चे, झुग्गी झोपड़ी से लेकर नदी -नाले पारकर हजारों बरस की मेहनत के बाद स्कूल की चौहद्दी में पहुंचे बच्चे कितने ख़ुश दिखते है - जब वे धमाल करते है
परस्पर सीखने - सिखाने की जिस परंपरा को आज हम देखते है उसके लिए एक पूरी धरती भर की आबादी ने संघर्ष किया है 1987 से हम जैसे लोग भी इस बात के लिये प्रयत्नशील है कि सब बच्चे स्कूल के दायरे में पहुंच जाए, गुणवत्ता की बात हम धीरे - धीरे सम्हाल लेंगे
अफसोस कि जिस मेहनत और शिद्दत से कुर्बानियों दी गई उसे बिसारकर इस सरकार के दो जमूरों ने शिक्षा को विशुद्ध दोयम दर्जे का बनाकर पिछले एक साल से बर्बाद कर दिया, कोरोना अपनी जगह है पर बगैर दिशा और दृष्टि के जाहिल, कुपढ़ और अनपढ़ गंवार लोगों ने करोड़ो बच्चों, किशोरों और युवाओं को बर्बाद कर दिया स्कूल बंद करके, रोज नए नए आदेश निकालकर कमज़ोर प्रबंधन, एडहॉक अप्रोच और मूर्खता का परिचय दिया है
ब्यूरोक्रेट्स से लेकर समूचा शिक्षक वर्ग इस बात को लेकर मौन है जो मुफ्त की तनख्वाह उड़ा रहा है पांच अंकों की आय का बोनस हर माह मिल रहा है - इन्हें यह समझ नही आ रहा कि कल यही पीढ़ी जब नौकरी के लिये जाएगी तो इन्हें नकार दिया जायेगा और अक्षम, अयोग्य और अकुशल होने के आरोप विरचित कर दिए जायेंगे और सरकार के लिए नौकरी ना देने के ठोस बहाने हो जायेंगे - सरकारें तो आती जाती रहेंगी पर जो ये एक साल में मूर्खों ने देश की शिक्षा और बड़ी जनसँख्या को दस हजार साल पीछे कर दिया है उसकी भरपाई कौन और कैसे करेगा
पालक चुप, शिक्षक चुप, नीति निर्माता चुप, मीडिया चुप, न्यायपालिका चुप, ब्यूरोक्रेसी चुप -शंख शिरोमणि बोल रहा है और मुर्दे पड़े सुन रहे है
आखिर क्यों नही कुछ बोलता - हिंदूओं को यह समझ नही आ रहा इस भगवत और नारंगी राम राज्य में कि इसी देश में वेद पुराण, ऋचाएं और धर्मग्रन्थ रचें गए, शून्य का आविष्कार हुआ, इसी देश मे नाचिकेता ने अपने पिता से लेकर यमराज तक को प्रश्न पूछकर थका दिया था, शास्त्रार्थ की यहाँ भव्य परम्परा रही है, द्रोपदी से लेकर गार्गी तक ने प्रश्न पूछकर सत्ताओं की नपुंसकता को हिलाया है, यही रोज शिशु मंदिरों में जबरन गवाते हो - "जग सिरमौर बनाये भारत"
आखिर किस बात का डर है, क्यों चुप है पूरा देश, अब कहाँ से लाओगे नेहरू, गांधी, राजा राम मोहन राय, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, अंबेडकर, ज्योतिबा, सावित्री बाई फुले, आचार्य राममूर्ति, विवेकानंद, विनोद रायना या अनिल सदगोपाल - इस हजारों साल के गड्ढे में देश को धकेलने के बाद जश्न मनाइए और इंतज़ार करिये अवतार का जो आपको पुनः सदबुद्धि देगा
मरने दो बच्चों को, नरक में अशिक्षित ही भले, कल हिन्दू राष्ट्र में भेड़ - बकरी, गाय - ढोर चराने या हिन्दू राष्ट्र में जयघोष, रैलियाँ करने, चुनावों में जयकारा लगाने के ही काम तो आ ही जाएंगे साले ये निकम्मे अशिक्षित बच्चे
आप सबकी भव्य विचारधारा को नमन और आपको प्रणिपात प्रणाम
आज एक बार जाँच लेना - गेंहूँ, दाल -चावल ही खा रहे है ना या गोबर -गौमूत्र पर भी उतर आए है
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तस्वीरें होती हैं मन लेने के लिए। जबकि मन एक होता है और उसमें तस्वीरें तमाम बस जाती हैं। तभी तो कहते हैं कि दिल समन्दर सा गहरा होता है। आज बात समन्दर की नहीं, करेले की तस्वीर पर बात करने का हो आया है। 26 जुलाई 2020 की बात है जब
संदीप नाईक
जी की फेसबुक वाॅल पर मैंने करेले की तस्वीर देखी थी। करेले की क्या, करेले की कढ़ाही की वह तस्वीर थी। करेले भी कैसे...कंचे जैसे छोटे और कढ़ाही कैसी...सरासर काली मिट्टी में रंगी
वह तस्वीर जो भी देखेगा, नज़र शर्तिया वहीं ठहर जाएगी। जाने क्या बात है उस तस्वीर में या फिर करेलों की सूरत में या फिर उस मिट्टी की कढ़ाही में या फिर उस तस्वीर के साथ लिखी संदीप नाईक जी की करेला कथा में कि मेरा मन करेला कहानी में रम गया था। संदीप नाईक कहते हैं कि मिट्टी की कढ़ाही मंडला के सिझौरा से ली थी। वह ग्रामीण हाट से ली गई थी और उसे उनके मित्र ने उपहार में दी थी।
करेले की कथा अब आगे बढ़ती है...सन् 1989 में पानीगांव, देवास में क्रिस्ट सेवा केन्द्र में केरल की वयोवृद्ध स्नेही सिस्टर शीबा संदीप नाईक से मिलीं थीं। उस यादगार मुलाकात की खातिर सिस्टर शीबा ने उनके लिए स्वर्गिक एक सब्जी बनायी थी। सब्जी की खातिर करेले वैसे लिए गए जो स्वाद में तो कड़वे होते थे पर सीरत में कटु नहीं।
श्रीफल भी साथ लिया गया था। अजी वही जिसे आप नारियल कहते हैं, कच्चे नारियल की मीठी गिरी को उन्होंने कद्दूकस कर लिया था। तेल लिया ज़रूरत भर से थोड़ा ज़्यादा। राई, हल्दी, धनिया पाउडर, नमक सिस्टर शीबा ने न कम न ज़्यादा लिया था। करीपत्ता तो छौंक में सिस्टर शीबा ने डालना ही था। करेले की वह सब्जी सिस्टर शीबा के मीठे हाथों से बन गई थी।
संदीप नाईक उस दिन करेले की सब्जी की बात कर रहे थे या फिर सिस्टर शीबा की या फिर मिट्टी की कढ़ाही की ,यह तो उनका मन जाने पर मैंने उस दिन उनकी वाॅल पर सिस्टर शीबा को देख लिया था। उनका चेहरा पहचान लिया था। वह चेहरा मदर टेरेसा से मिलता था। सिस्टर शीबा के हाथ से करेले की दिव्य सब्जी खाने का स्वाद भले ही संदीप नाईक को मिला हो पर जाने अनजाने वह मीठा स्वाद हम सबके हाथ बाँट गए थे। वह स्वाद जिसमें सिस्टर शीबा का हाथ था। वह हाथ जो दुनिया का हाथ थामता जाता है। हाथोंहाथ दुनिया को जोड़ता जाता है।
अब तो जब भी करेला हाथ चढ़ता है, सिस्टर शीबा की याद फलटन में चली आती है। उनकी याद में मैं भी वह सब्जी बना लेती हूँ जो उन्होंने संदीप नाईक को बना कर खिलाई थी। करेले की वह सब्जी Sister Sheeba's Recipe हो गई है। मेरे जीवन का हिस्सा हो गई है। आज वह सब्जी जो सिस्टर शीबा की मीठी याद है, कवि संदीप नाईक जी के जन्मदिन पर मेरी पेशकश है क्योंकि आज नहीं तो फिर कब...आज रस्म- ए -दुनिया भी है मौका भी है दस्तूर भी है तो फिर जन्मदिन मुबारक हो कवि को और सलाम सिस्टर शीबा तक भी पहुँचे।
Ruchi Bhala on my Birthday 5 April 2021
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अष्टवक्र [मराठी]
तुम मिलो तो सही [ हिंदी ]
Bodyguard [ English ]
Tenate [English]
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शौक के शोक की शोकसभा
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हर पोस्ट - कविता, कहानी, टिप्पणी, आलोचना या और कुछ भी यहाँ चैंपना हो तो अपनी जवानी की ब्यूटी एप से निहारी और दाग़, मुँहासे और मस्से हटाकर , बालों को रंगकर, अपने काले - पीले चेहरे को गोरा बनाकर सजाकर परोसना क्या अनिवार्य है, किसने कहा कि पोस्ट के साथ शील /अश्लील फोटो चैंपना जरूरी है, लाइक्स और कमेंट्स बटोरने की भूख क्या से क्या करवा रही है, यहाँ तक कि आलेख और वेब पोर्टल पर भी भाई और भैंजी लोग वो ही चिपका कर भेज देते है जो कभी असलियत में थे नही ना इस जन्म में सम्भव है - आखिर क्या कारण है इस कुंठा का और अपराध बोध का
हकीकत में देखने - मिलने पर समझ आता है कि हक़ीक़त क्या है, यह रेसिस्ट होने की नही, बल्कि अपनी कुंठित मानसिकता की बात है ; मतलब हालात इतने खराब है कि अपनी त्वचा के पिगमेंट, अपनी नस्ल और अपने गर्म वातावरण को नकार कर गोरा, चिकना और 22 से 26 वर्ष की आयु को भौंडे ढंग से प्रदर्शित करने का जुनून है - हुआ क्या है, रिटायर्ड हो गए है 4 - 6 नाती पोते है, 2 से 4 लोगों के सास ससुर है पर उनसे भी छोटे दिखने की बीमारी है, "युवा कवि, कहानीकार या साहित्यिकार कहलाने का शौक है" , सिगरेट बीड़ी और गुटखा खाकर दाँत शहीद हो गए, थूकते इतना गंदा है कि नाले से निकला कोई ट्यूबवेल हो - एक दिन इसी शौक का शोक लगेगा और हमे शोकसभा करना पड़ेगी
इधर 7 - 10 लोगों से मिला तो पहचानना मुश्किल हो गया और आखिर में बस आधार कार्ड ही मांगना बाकी रह गया था, वरना तो उनमें और फेसबुकिया तस्वीरों में इतना ही फ़र्क था - जितना ओरेंगुटान और इंसान में, साली दो पंक्तियों की पोस्ट नही और कार्ड शीट बराबर फोटो चस्पा है - ना देखना और ना पढ़ना , कभी मन किया तो नाम से लेकर असली फोटो जाहिर करूँगा कि - "बचाव ही सुरक्षा है"
हद है और यह भी देखा कि यह प्रवृत्ति अब महिलाओं में नही - युवाओं, बूढ़े पुरुषों यानी सब लोगों में है, अकादमिक जगत में नवाचार या शोध कर रहें लोगों में भी कोरोना से ज्यादा फैली हुई है यह एड्स की बीमारी, भगवान ना करें कोई इन्हें वास्तविक स्थिति में कभी देखकर हार्ट अटैक से मर जाये या खून कर दें इनका इस दोगलेपन पर
मोदी गलत थोड़े ही है हर जगह आधार कार्ड इसलिये तो जरूरी है और वोटर कार्ड असली औकात दिखाता है चेहरे की
जनहित में सरोकारों को देखते हुए जारी
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दो विरोधाभासी खबरें है आज


एक ओर #स्वदेश ने मप्र में स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ने की उजली तस्वीर पेश की है जो सहज ही पढ़कर समझा जा सकता है कि यह पेड न्यूज है एकदम बकवास और फर्जी, अगर यह सच होता तो आज हाहाकार नही मचता प्रदेश में
हकीकत में हम सब देख समझ रहें है कि हो क्या रहा है, पत्रकार और अनुज
Pushpendra Vaidya
ने अभी तीन पहले ही अव्यवस्थाओं के चलते अपनी माँ को खोया है, उन्होंने आज प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को लताड़ते हुए एवं पोल खोलते हुए शिवराज सिंह चौहान जी को खुली चिट्ठी लिखी है, जिसे पढ़ा जाना चाहिये ; दूसरी ओर इंदौर में जिलाधीश की अनुमति से नियमित टीकाकरण को आगामी आदेश तक स्थगित कर दिया गया है
इंदौर में स्वास्थ्य विभाग ने कोरोना के चलते नियमित टीकाकरण को आगामी आदेश तक के लिए स्थगित कर दिया है
नियमित टीकाकरण को कैसे रोका जा सकता है लाखों बच्चे प्रभावित नही होंगे , क्या कोई इस पर प्रकाश डालेगा, हमारे यहाँ शिशु और मातृमृत्यु दर वैसे ही अधिक है, तमाम प्रयासों के बाद भी 100% तो क्या 70% तक पूर्ण टीकाकरण नही हो पाता है, गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व तीन जाँच और टिटेनस जैसे जरूरी टीके नही लग पाते है ऐसे में यह आदेश क्या गुल खिलायेगा
इसके बाद छूट गए बच्चों के टीकाकरण का क्या बैकअप प्लान रहेगा, साथ ही जन्म के बाद वाले टीके तो समय पर लगना आवश्यक ही है
शहरों में ठीक है - सक्षम लोग निजी अस्पताल या अन्य जगहों पर लगवा लेंगे पर ग्रामीण इलाकों में गर्भवती माताओं और नवजात बच्चों का क्या होगा - इसका कोई जवाब शासन, इंदौर कलेक्टर या मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के पास है, #यूनिसेफ #UNICEF के तथाकथित विद्वानों और अधिकारियों का क्या स्टैंड है इस पर जो तमाम घोल पिलाने से लेकर टीके लगाने को प्राथमिकता से ध्यान देते है

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