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Birthday wishes to Jitendra Shrivastava and Late Pt Kumar Gandharva Posts of 8 April 2021

"कहने की आवश्यकता नहीं कि जिनकी सांसो को आराम नहीं होता वे सत्ता के साथ गलबहियाँ या कदमताल नहीं करते, वे मनुष्य और मनुष्यता के पक्ष में खड़े होते हैं, उनके कवि होने पर उनके सर्जकों को गर्व होता है, ये कवि विस्मरण और नव साम्राज्यवाद के उत्थान वाले इस कठिन समय में चेतना के पट खोलने का कार्य करते हैं"

"विचारधारा नए विमर्श और समकालीन कविता" [ 2013 ] की भूमिका में जीतेन्द्र जब यह भूमिका में लिख रहे थे तो थोड़ा अचरज हुआ था, क्योंकि जीतेन्द्र कविता लेखन से आलोचना पर आ रहे थे और उनकी कविताओं के साथ वरिष्ठ, समकालीन और युवा कवियों पर उनकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ दर्ज ही नही हो रही थी - बल्कि उन्हें मान्य भी किया जा रहा था नई आलोचना के बरक्स
इधर वे एक सशक्त कवि तो है ही जिनकी कविताएँ चाव से पढ़ी समझी जाती है, विभिन्न भाषाओं में अनुदित होकर वृहद पाठक वृन्द का स्नेह पाती है , पर कविता के घनत्व को लेकर भी एक ऐसे मापक बन गए है जो कविता की अच्छाई के साथ इस समय में समाज के बदलाव, नव निर्माण और एक व्यापक दृष्टि के साथ कविता की भूमिका को देखते है
आलोचना करते समय बेहद अनुशासित फ्रेम में अपनी बात पुख्ता ढंग से कहने वाले और अपने मनमौजीपन में प्रेम से लेकर दीगर विषयों पर महीन कविताएँ बुनने वाले यशस्वी कवि, प्रिय अनुज और सांगठनिक व्यक्तित्व के धनी, इंदिरा गांधी मुक्त विवि, दिल्ली में मानविकी विभाग में हिंदी के यशस्वी प्राध्यापक डाक्टर
Jitendra Srivastava
का आज जन्मदिन है
वे यशस्वी हो, खूब लिखें और कविताओं और आलोचना के नए पुराने प्रतिमान तोड़ते हुए खूब सृजन करें यही दुआएँ है
जन्मदिन की खूब बधाई और स्वस्तिकामनाएँ

***
भारतीय मनीषा, विलक्षण संगीतकार और महान गायक स्व पंडित कुमार गंधर्व का आज जन्मदिन है, कर्नाटक से मालवा के देवास में आ बसे और फिर यही जीवन भर संगीत और सुरों की आराधना करते रहें, उनके गाये कबीर को सुनकर ही अब जीवन की गुत्थियाँ सुलझती है, उन्ही के निर्गुण से जीवन में गुण - अवगुण को परिभाषित कर पाता हूँ और उन्ही से सीखा है - " जब होवेगी उमर पूरी, तब टूटेगी हुकुम हुजूरी, उड़ जाएगा हंस अकेला"
सौभाग्यशाली हूँ कि उन्हें देखने, सुनने और उनके साथ लम्बी - लम्बी बातचीत के साथ उनकी मित्र मंडली की गप्प सुनने का अवसर मिला है, याद है जब महाराष्ट्र समाज में पहली बार सुना था सत्तर के दशक में 1974 - 75 की बात होगी " बाबा ने पहला आलाप लगाया और मैं हाल के बाहर ", पर धीरे - धीरे फिर एक अभ्यस्त श्रोता ही नही बना पर संगीत को सुनने समझने की भी विधिवत शिक्षा बाबा से मिली, देवास के छत्रपति गणेश मंडल के सभी सालाना उत्सवो में देश विदेश के शीर्षस्थ कलाकारों को सुनना और अगले दिन सुबह उनके घर उनसे बातचीत और समझना अपने आप में बड़ी पाठशाला थी जो आज दुर्लभ है, इस सारे को ठीक करके यानी मात्राएं सुधारकर हरे पेन से राहुल जी सुधारते और नईदुनिया में छापते थे , आज सोचता हूँ दुखी होता हूँ कि "कहां गए वो दिन", आज कोई सम्पादक किसी नवोदित के साथ इतनी मेहनत भला करता है कि "पिता और पीता" लिखने समझने में, उच्चारण या intonation के साथ धैर्य रखते हुए यह अंतर सीखाएं (अपुन सरकारी स्कूल से पढ़कर निकले थे और भाषा निसंदेह माशा अल्लाह ही थी)
स्व राहुल बारपुते, बाबा डीके, गुरुजी विष्णु चिंचालकर और बाबा यानी कुमार जी की चौकड़ी से जीवन में जो सीखा वो दुनिया का कोई स्कूल, विश्व विद्यालय नही सीखा सकता
कुमार जी को नमन
आपके लिए गोरखनाथ कृत मेरा पसंदीदा भजन
https://www.youtube.com/watch?v=rW6mkXOclGA

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