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Khari Khari, Drisht Kavi and other posts from 3 to 5 April 2021

 पचपन की सूक्ति - 1

√ जीवन में परिस्थितियों से समझौता कर पाएं तो 99 % समस्याओं का सामना ही नही करना पड़ेगा
√ हर बात पर लड़कर, बगावत करके और भुनभुनाकर जीवन में ना रुपया मिल सकता है, ना सुख और ना शांति
√ सबसे ज़्यादा तकलीफ़ अपने बेहद करीबी लोग, गुरुजन, मित्र और आपके अनुयायी देते है इसलिए इनके मोह से जितना बच सकते है बचना चाहिये - ये लोग आपका मधु भी भकोस लेते है इसलिए इन भावुक शोषकों से बचो - खासकरके गुरु या अनुयायियों से
√ यश, कीर्ति, प्रतिष्ठा, इज्जत जैसी बकवास कुछ नही होती ये सब सापेक्ष है और केस टू केस निर्भर करता है
√ अपने आपको भी बहुत ज़्यादा दोष देने की, गलियाने की और अपराधी साबित करने की बिल्कुल ज़रूरत नही है - आपका व्यवहार जो भी रहा किसी से भी - वह परिस्थितिजन्य था
√ पश्चाताप, स्वसंस्तुति { Regrets & Confessions } सिर्फ़ शाब्दिक जाल है और इनसे ऐसे ही बचकर निकलो जैसे जंगल में शेर या सूअर की आहट पाकर तितलियाँ भी पत्तियों में गायब हो जाती है
√ एक ही जिंदगी है हम सबके पास इसलिये कल जब हम नही होंगे तो दुनिया चलती ही रहेगी पर कोई हमारे बारे में बात नही करेगा - इसलिये इन दिल दिमाग़ में निन्दा पुराण को सर्वोच्च धर्म मानने वालों को अवसर दो - गलत सही काम करो और बदनाम हो जाओ या इनकी बैंड बजाते रहो
√ अपने लिए जियो, माँ बाप ने जन्म जरूर दिया पर जीवन आपका है इसे कभी अपनी मर्जी के मुताबिक जी भी लो, कल मर जाओगे तो तुम्हारे बारे में कोई कुछ नही कहेगा
√ नाम बने रहने और वंश की चिंता मत करो, अपने आसपास बहुत किस्म के नीच, कुकर्मी, और सत्यानाशी मिल जाएंगे जो बीबी से बच्चों और माँ बाप पर भी अत्याचार करके भी अमर हो जाते है क्षणिक रूप से - कितने लोगों को अपनी दो पीढ़ी पहले के वंश वृक्ष की जानकारी है
√ दोस्ती में उन लोगों पर हमेंशा निगाह रखों जो बना बनाया खेल रुपये, हुस्न, पद, सुविधाओं या अवसरों से दोस्तों के बीच दरार डालने का काम इतनी होशियारी से करते है कि मिट्टी से जड़े पानी कब खींच लेती है मालूम नही पड़ता - जैसे ही इन्हें पहचान लो इनका बहिष्कार करो और गलीज़ होने के लिए भी मत छोड़ो
√ दोस्तों से बड़ा कमीना कोई नही होता वे मदद इसलिये करते है कि जीवन भर आपके ऊपर नजर रख सकें, रोज़ नए लोगों से मिलो और दोस्तों को छोड़ते जाओ - क्योकि एक न एक दिन वे आपके ख़िलाफ़ हो जाएंगे और शायद आपका खून भी कर दें - दैहिक, चारित्रिक या अकादमिक
√ अपेक्षा मत रखो, नोबल पुरस्कार की उम्मीद मत करो, चरित्र प्रमाण पत्र ना लिखवाएं किसी से, उन्मुक्त होकर जियें और सिर्फ़ अपनी फ़िक्र करें - क्योंकि आप ठीक रहेंगे तभी तो कुछ और किसी के लिये कर पायेंगे
■ बाकी कल
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अष्टवक्र [मराठी]
तुम मिलो तो सही [ हिंदी ]
Bodyguard [ English ]
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शौक के शोक की शोकसभा
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हर पोस्ट - कविता, कहानी, टिप्पणी, आलोचना या और कुछ भी यहाँ चैंपना हो तो अपनी जवानी की ब्यूटी एप से निहारी और दाग़, मुँहासे और मस्से हटाकर , बालों को रंगकर, अपने काले - पीले चेहरे को गोरा बनाकर सजाकर परोसना क्या अनिवार्य है, किसने कहा कि पोस्ट के साथ शील /अश्लील फोटो चैंपना जरूरी है, लाइक्स और कमेंट्स बटोरने की भूख क्या से क्या करवा रही है, यहाँ तक कि आलेख और वेब पोर्टल पर भी भाई और भैंजी लोग वो ही चिपका कर भेज देते है जो कभी असलियत में थे नही ना इस जन्म में सम्भव है - आखिर क्या कारण है इस कुंठा का और अपराध बोध का
हकीकत में देखने - मिलने पर समझ आता है कि हक़ीक़त क्या है, यह रेसिस्ट होने की नही, बल्कि अपनी कुंठित मानसिकता की बात है ; मतलब हालात इतने खराब है कि अपनी त्वचा के पिगमेंट, अपनी नस्ल और अपने गर्म वातावरण को नकार कर गोरा, चिकना और 22 से 26 वर्ष की आयु को भौंडे ढंग से प्रदर्शित करने का जुनून है - हुआ क्या है, रिटायर्ड हो गए है 4 - 6 नाती पोते है, 2 से 4 लोगों के सास ससुर है पर उनसे भी छोटे दिखने की बीमारी है, "युवा कवि, कहानीकार या साहित्यिकार कहलाने का शौक है" , सिगरेट बीड़ी और गुटखा खाकर दाँत शहीद हो गए, थूकते इतना गंदा है कि नाले से निकला कोई ट्यूबवेल हो - एक दिन इसी शौक का शोक लगेगा और हमे शोकसभा करना पड़ेगी
इधर 7 - 10 लोगों से मिला तो पहचानना मुश्किल हो गया और आखिर में बस आधार कार्ड ही मांगना बाकी रह गया था, वरना तो उनमें और फेसबुकिया तस्वीरों में इतना ही फ़र्क था - जितना ओरेंगुटान और इंसान में, साली दो पंक्तियों की पोस्ट नही और कार्ड शीट बराबर फोटो चस्पा है - ना देखना और ना पढ़ना , कभी मन किया तो नाम से लेकर असली फोटो जाहिर करूँगा कि - "बचाव ही सुरक्षा है"
हद है और यह भी देखा कि यह प्रवृत्ति अब महिलाओं में नही - युवाओं, बूढ़े पुरुषों यानी सब लोगों में है, अकादमिक जगत में नवाचार या शोध कर रहें लोगों में भी कोरोना से ज्यादा फैली हुई है यह एड्स की बीमारी, भगवान ना करें कोई इन्हें वास्तविक स्थिति में कभी देखकर हार्ट अटैक से मर जाये या खून कर दें इनका इस दोगलेपन पर
मोदी गलत थोड़े ही है हर जगह आधार कार्ड इसलिये तो जरूरी है और वोटर कार्ड असली औकात दिखाता है चेहरे की
जनहित में सरोकारों को देखते हुए जारी
🤣😀🤣
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वो जब आता है [ ज्ञान ] तो बहुत देर हो चुकी होती है
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बहुत साल पहले पचमढ़ी में गुप्त महादेव से दर्शन करके जब लौट रहा था तो एक मैदान में किसी को लेटे हुए देखा था, थोड़ा अजीब लगा - पानी की बोतल रखी थी, 8 - 10 किताबे थी, एक चाय की केतली और शायद कुछ लिखने का सामान था, शायद 1994 - 95 की बात होगी, मैं राज्यपाल भवन में ठहरा हुआ था गर्मियों के दिन थे, मप्र की राजधानी गर्मियों में पचमढ़ी हो जाया करती थी आंशिक रूप से ; एक शासकीय विभाग के लिए कुछ प्रशिक्षण मॉड्यूल लिख रहा था तो राज्यपाल भवन जैसी सुविधा मिल गई थी रहने को
पास जाकर देखा तो हरी दूब पर एक बुजुर्ग आदमी लेटा हुआ कुछ सोच रहा था, कोल्हापुरी चप्पलों का एक जोड़ा सहेज कर एक तरफ रखा था, खूब गोरा चिट्टा, चेहरे पर दो बड़ी बड़ी आँखे जो औसत आँखों से बड़ी थी, साफ़ दाढ़ी, गालों पर झुर्रियां, हल्के नीले रंग का कुर्ता, तंग मोरिदार सफ़ेद पायजामा, दोनों हाथ सिर के नीचे दबे हुए थे और आँखे आसमान की ओर तक रही थी, बहुत देर में पहचाना कि वे निर्मल वर्मा थे, पचमढ़ी अनगिनत बार गया हूं - परंतु जिस पचमढ़ी की इस यात्रा में निर्मल वर्मा को देखा था वह याद आज तक दिल के कोने में बसी हुई है, थोड़ी देर उनसे इधर उधर की बात की, उनके पश्चिम पर लिखें निबंध और यूरोप की यात्राओं की बातचीत हुई यह ध्यान आ रहा है, वे मप्र टूरिज्म के किसी रिजॉर्ट में थे और सुबह शाम खूब घूमते थे - पचमढ़ी जैसी मुफ़ीद जगह सैर करने वालों के लिए जन्नत है, एक बार पांडव गुफाओं के पास एक झील में हमने साथ बोटिंग की थी, ज्यादा बोलते नही थे फिर उस समय मेरे जैसे असाहित्यिक आदमी से सहज होकर बोले थे, मैं दस दिन के लिये वहां था और वे लंबे समय के लिए, बाद में एक बार शिमला में और एक बार दिल्ली में सुना था, उनके वक्तव्य के बाद मिला और पचमढ़ी की याद दिलाई तो पहचान गए और बोले "क्या अभी भी भीड़ धूपगढ़ पर सूर्यास्त देखने जाती है" - मैंने कहा "आप आईये कभी, साथ चलेंगे"
जब कौवे और काला पानी पढ़ता हूं, लाल टीन की छत पढ़ता हूं या अपने सबसे पसंदीदा उपन्यास अंतिम अरण्य को पढ़ता हूं तो निर्मल वर्मा बरबस ही याद आ जाते हैं, उनके धूप के विवरण को पढ़ता हूँ तो शरीर पर ताप महसूस करता हूँ, एक पत्ती जब पेड़ से बिछड़ कर बवंडर में फंस जाती है और धूल के साथ उड़ने लगती है तो लगता है पूरा शरीर हल्का हो गया है और मैं उस पत्ती के साथ - साथ उड़ रहा हूँ, मानो शब्द हल्के होकर बवंडर में मेरे पीछे - पीछे उड़ रहे हैं
यह कल्पना करना भी मुश्किल है कि हिंदी में निर्मल वर्मा जैसा कोई व्यक्ति भी हुआ है जिसने इतना विपुल और वृहद लिखा है कि समझना मुश्किल है, उनका अपना एक वर्ग है पाठकों का और दृष्टा का जिसे निर्मल का निर्मलता से समझना और उनके लिखे को Comprehend करना आता है
अपने एकाकीपन और एकांत को उनकी दृष्टि से देखता - समझता हूं तो लगता है और कुछ पढ़ने की आवश्यकता ही नहीं है; जीवन, शब्द और साहित्य की एक सीमा निर्मल वर्मा से शुरू होकर निर्मल वर्मा पर ही खत्म हो जाती है और हो जाना भी चाहिये - क्योंकि उसके ना पहले कुछ है ना बाद
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Compromise with past, avoid future and live right now - live in the moment you are in, leave regrets and guilts - that's the pinnacle of success
Want to apply this in life, bit difficult, but ultimately this may exempt me from all worries
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