Skip to main content

Khari Khari - Comments on Himanshu's Post and मध्यप्रदेश की जनता के नाम खुला ख़त Posts of 8 April 2021

 मध्यप्रदेश की जनता के नाम खुला ख़त

•••••••••••••••
Rx
Remdesivir 200mg - 5 Injection
Rantaz 4.5 - 2 Injection
Enoxaparin - 2 Injection
भैया, दादा प्लीज कही से भी इंतजाम करवा दें, जो भी रुपये होंगे दे दूंगा
----------------
इस तरह के संदेश, डाक्टर के लिखें पर्चे, स्कैन किये हुए मेल बहुत आ रहें है, चूंकि मित्र वर्ग बड़ा है और सभी तरह के मित्रों से सम्बंध है,दोस्ती है तो लोग सहज रूप से मदद पूरे अधिकार से मांग लेते हैं, जहाँ तक हो सकें - मैं घर बैठे मदद कर भी रहा हूँ , आर्थिक मदद का ज़िक्र यहाँ नही करूँगा पर वो भी चालू हो गई है
शाजापुर, बड़नगर, खरगोन, सीहोर, महू, नेमावर, खातेगांव, होशंगाबाद, बैतूल, ग्वालियर, भिंड, भिलाई, मुरैना, रतलाम, नीमच, मन्दसौर, जबलपुर, छिंदवाड़ा, मंडला, उज्जैन, देवास से लेकर भोपाल तक से मित्रों परिजनों के फोन आ रहें है
अफसोस यह है कि
● अस्पतालों की अव्यवस्था बरकरार है हर जगह
● उन सभी शहरों में तांडव और कहर है कोरोना का जहाँ पिछले वर्ष भयावह था
● अस्पताल, डॉक्टर्स, निजी अस्पताल, जाँच, मरीज़ो के लिये परिवहन, दवाईयां, मरने पर लाश ढोने और जलाने और दफनाने की कोई माकूल व्यवस्था जैसी व्यवस्थाएं बदहाल है और सुधर नही पा रही है
● हमने और सरकार ने पिछले एक वर्ष में क्या सीखा है यह सबसे बड़ा सवाल है
● पिछले साल खरीदी और कमलनाथ सरकार को खो देकर आई शिवराज सरकार के लिए कोरोना से जूझना नया अनुभव था - जैसे पूरी दुनिया के लिये था, पर अब एक साल में शिवराज जी, प्रमुख सचिव स्वास्थ्य, सचिव स्वास्थ्य, कमिश्नर स्वास्थ्य ने और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की डायरेक्टर क्या बताएंगी पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ कि आपने अस्पतालों में आधारभूत ढांचों, व्यवस्था, अलग -अलग तरह के सप्लाय चैन मैनेजमेंट में क्या किया, प्रशिक्षण और कौशल तथा दक्षता वर्धन के लिये क्या किया, फील्ड में क्या काम ठोस हुआ
● आखिर आज जो ये हाहाकार मच गया है उसका जिम्मेदार कौन है
● केंद्र सरकार की ओर से केबिनेट मंत्री हर्षवर्धन ने कितनी बार दौरा किया प्रदेश का और ज़मीनी हालात की पड़ताल की
● केंद्र प्रवर्तित योजनाओं के अंतर्गत पिछले वर्ष जो मोदी सरकार ने अरबों रुपयों की घोषणाएं की थी दवा, शोध, ढांचों के लिये - निश्चित ही रुपया हजम करके उस फंड का उपयोगिता प्रमाण पत्र तो 31 मार्च को गया ही होगा - पर ज़मीन पर क्या काम हुआ
● प्रदेश के सभी विधायकों, सांसदों ने या पार्षदों और पंच - सरपंचों ने अपने क्षेत्र के अस्पतालों का कितना निरीक्षण कर पुख्ता इंतजामात करने में विधायक निधि, सांसद निधि का उपयोग किया
● राजनैतिक विचारधारा आदि सब गई तेल लेने या भाड़ में - पर एक साल के बाद इस हाहाकार और वीभत्स स्थिति के लिये जिम्मेदार कौन है
● मप्र हाई कोर्ट क्यों चुप है - इस हाहाकार के लिए क्यों नही स्वतः संज्ञान ले रहा, प्रदेश में राज्य से लेकर जिले और ब्लॉक स्तर तक के बार कौंसिल के सदस्य क्या सिर्फ बार के चुनाव लड़ने तक ही सक्रिय रहते है
◆ मित्रों, कुल मिलाकर यह स्थिति Civil Disobedience की ओर जा रही है - जो भीड़ आज लाइन में खड़ी है रात रात भर, इंजेक्शन के लिए चार गुना रुपये दे रही है - वो अपने परिजनों को खोने के बाद निश्चित रूप से हिंसा पर उतरेगी और तब कोई कुछ नही कर सकेगा
◆ जरा सोचिये - इसके मूल में हमारी लापरवाही भी तो शामिल नही, सरकारें तो निकम्मी और भ्रष्ट है ही, प्रशासन आपदा में अवसर खोज ही ले रहा है - बर्बर और हिंसक होना शुरू हो ही गया है, पर हम लोग क्या करें जो जनता है और सिर्फ एक वोट है
◆ शिवराज जी और भाजपा को जवाब देना चाहिये कि पिछले 17 - 18 वर्षों में क्या किया इन लोगों ने, यदि आज प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था लचर है तो संविधान और गीता की कसम खाने वाले मुख्यमंत्री से लेकर तमाम स्वास्थ्य मंत्री अपराधी है जो 18 वर्षों से स्वास्थ्य का पोर्ट फोलियों सम्हालते रहें और कुछ भी नही कर पाएं और यह बेहद शर्मनाक और घृणास्पद है
🥀🥀🥀🥀🥀🥀
और अंत में प्रार्थना, कि कभी किसी एक आदमी को 5 साल से ज्यादा शासन मत करने देना - वो आपको ही नही, देश या पर्यावरण को ही नही, बल्कि आपकी आने वाली पीढ़ियों के जींस, डीएनए, शुक्राणु और अंडाणु को भी बर्बाद कर देता है - 18 साल से एक आदमी मुख्यमंत्री रहेगा तो आप और क्या उम्मीद करेंगे
***
कोरोना काल की तकलीफों का ऐसा कसीदा पढ़ना कितना विचित्र है, लेखकों के लिखें फ्री माल को छापने वालों पर तो कोई सवाल नही उठाता, फिर कलाकार जब लाखों में कमा रहे थे तो कभी किसी की मदद की, साहित्यकारों को ज्ञानपीठ या साहित्य अकादमी मिलें तो एक बच्चे की फीस भरी, यह भी सवाल है - मैं तो अपने यहाँ के अनुभवों के सन्दर्भ में बात करता हूँ मदद तो दूर ढंग से बात करने को तैयार नही थे, किसी फिल्म में दो मिनिट के दृश्य के लिए तीन तीन लाख और फ़िल्म के कॉपी राइट मांगे और बेहद हल्के तरीकों से बात की जिनकी कोई औकात नही थी वे ऐसे बात कर रहें थे जैसे खुदा हो गए हो
कलाकारों ने अकूत दौलत कमाई है और कभी सार्वजनिक मदद नही की और ना जाहिर की पारदर्शिता से, अपनी विदाई भी जो ना बताते हो उनसे क्या ईमानदारी की उम्मीद , हो सकता है देश की खातिर इनकम टैक्स भी शायद ही भरा होगा; ऐसे में पूछने की जरूरत नही है और कम से कम मेरे आसपास जो लोग है वे तो अभी भी ऐयाशी से जी रहें हैं इसमें कोई शक नही , ना उनके इत्र या डियो की महक कम हुई ना कपड़ों की सलवट मुरझाई
किसी ने हम जैसे टुच्चे लोगों या एनजीओ कर्मियों को पूछा क्या - जिनके पास काम देने की कुछ सम्भावना थी वे भी अपने ही लोगों को उपकृत कर अमीर बनाते रहें और हमसे मिलने की बात और वादे कर बरगलाते रहें उनका क्या
इन कलाकारों ने कभी जन सरोकारों का कोई काम नही किया, हमेशा सत्ता और ब्यूरोक्रेसी की चाटुकारिता करते रहें, कार्पोरेट्स के दरबारों में मुजरे सुनाते रहें और विश्व विद्यालयों के कुलपतितों को प्लीज़ करते रहे और आज तमाम कलाकार रोना धोना कर रहें है
बहरहाल पूरे कुएं में भाँग है मजे में वे है जो पढ़ने पढ़ाने के नाम पर मजे कर हर माह हरामखोरी के लाखों रूपये ले रहे है, नौकरी के नाम पर मजे ले रहे हैं, ऐसे भी लोग है जो बरसों से नौकरी पर नही गए और पत्रकार लेखक होने की धमकी देकर दूसरे धंधे चला रहे है बकैती के और कॉपी पेस्ट के
ख़ैर, अपुन ख़ुश है इससे कि कम से कम रोजी रोटी के भाव तो मालूम पड़ रहे हैं नही तो फैब इंडिया के झब्बों से नीचे नही उतरते थे , एक ही माल को हर जगह बेचते ये लोग रज़ा के अशोक वाजपेयी से भी ऐंठ लेंगे अपनी मर्मज्ञता के झांसे देकर और किसी कामरेड की रोटी चटनी भी हड़प लेंगे , पूरे खानदान को पालते पोसते हुए ये लोग खजानों पर बैठे है, रॉयल्टी ही इतनी आती है कि सात पीढियां खा लें पर हवस का अंत नही कोई
कोई इसे व्यक्तिगत ना लेते हुए वृहद सन्दर्भो में ले, यह लिखते समय दोनो ओर के चेहरे निगाह में है हम जैसे भी और अनगिनत अनुदान की सम्पदा पर वैठे महाप्रभु भी है जो बेदर्दी से रुपया बर्बाद कर रहें है और लेखको का शोषण करते है, झाँसेबाजी से मीठा बोलकर हमेशा गोली दे जाते है गटागट की और खुद मनुक्का लेकर स्वप्न लोक में विचरण करते रहते है
____
Himanshu Bajpeyi ' s Post 8 April
"एक बात ये भी ध्यान रखी जाए कि जितने ऑर्गनाइज़र कला और अदब के उद्धारक/प्रमोटर बन कर फ्री में परफॉर्म करने के लिए फोन करते थे, कोरोना काल शुरू होने से लेकर अब तक उन कला उद्धारकों का एक भी फोन नहीं आया ख़ैरियत लेने को। एक ने भी नहीं पूछा कि एक साल से शो बंद हैं, तुमको कोई दिक्कत तो नहीं ? कोई मदद तो नहीं चाहिए ? इसीलिए हम कहते हैं कि ये अदब के उद्धारक नहीं हैं, इनको साहित्य संस्कृति की चिंता नहीं है, ये सिर्फ अपनी ब्रांडिंग, अपनी इमेज, अपनी फॉलोइंग की चिंता करने वाले लोग हैं। अगर कला की चिंता होती तो इन्हें कलाकारों की भी चिंता होती। फ्री में परफॉर्म बिल्कुल नहीं करना चाहिए। चाहें कोई घमंडी समझे या तंगदिल। जब कोरोना जैसा वक़्त आएगा तो पैसा ही काम आएगा। चिरकुट कला-उद्धारकों की झूठी तारीफ़ें नहीं।"

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...