छोटी बहन सीमा व्यास को जन्मदिन की बधाई
विलक्षण कहानीकार, शिक्षा - साक्षरता और स्वास्थ्य, जीवन कौशल की बेहतरीन प्रशिक्षक, संवेदनशील व्यक्तित्व, सहज और बेख़ौफ़ अपनी बात कहने वाली और सबसे ज़्यादा सच के लिए किसी से भी भीड़ में भी भिड़ जाने वाली है
सीमा के साथ साक्षरता अभियानों में साथ काम करने से दोस्ती की शुरुवात हुई थी,1990 में अंतरराष्ट्रीय साक्षरता वर्ष हम युवा लोग शिक्षा में बदलाव के साथ समाज भी बदलने के मंसूबे देख रहें थे, आज हम सब पाँचवे दशक के मध्य में है, अनुभवी कामरेडों और ज़मीनी लोगों की बड़ी टीम थी, धीरे धीरे खूब काम किया, खूब लिखा पढ़ा और देश भर में हजारों प्रशिक्षण, मूल्यांकन और नीतिगत काम किये , आज स्व विनोद रायना, कुंदा सुपेकर , कृष्णा अग्रवाल, प्रोफेसर कृष्ण कुमार, डीएन शर्मा से लेकर उन तमाम लोगों की याद आना साहजिक है कि हम सब लोग उनके आलोक में पककर परिपक्व हुए और ऐसे कामरेडों और इंदौर से लेकर दिल्ली सोशल साइंस विभाग, आई आई टी, IISC, JNU, DU, DAVV के प्रोडक्ट्स की असली मंशाओं से भी रूबरू हुए - जो मूलरूप से पूंजीवादी थे और जिन्होंने समाज सेवा की आड़ में करोड़ों की संपत्ति बनाई और महल - अटारी खड़े किये, देश भर में आज उनकी दुकानें भर्राट चल रही है
सीमा की कहानियों और लघु कथाओं में जो वास्तविकताएं, यथार्थ और संघर्ष दिखता है वह छतरपुर, पन्ना ही नही वरन उप्र, राजस्थान, महाराष्ट्र, या बिहार की गरीबी और दलित - वंचित समुदाय के लोगों को छला जाना या कलम का कहानी में हीरो हो जाना भी इसी वृहद अनुभव का हिस्सा है जो अब शब्दों में उभरकर आता हैं
ये छोटी आज नब्बे बरस की हो रही है (उम्र से नही अनुभव से दुनिया चलती और मापी जाती है - बिरले ही लोग होते है जो कम उम्र में दुनियावी संजाल समझकर रचना संसार मे एक बड़ी जगह बना लेते है), इन दिनों ललिता पवार टाईप खड़ूस सास बनने का प्रशिक्षण ले रही है यह छोटी
, तीन चार साल बाद पाल्टी देगी और आज दो रोटी ज्यादा भी खायेगी - यह पोस्ट पढ़कर भोत घुस्सा भी करेगी और हो सकता है सांझ तक बारंट निकलवा दें हाई कोर्ट से मेरे नाम - फिर भी अपुन तो लिखेगा और बोलेगा कि दो सौ साल, हजारों साल जियो और खूब लिखों - वो सब भी लिखों - जो गढ़ों मठों को तोड़ने के लिए, सामने लाने के लिए जरूरी है
स्वस्तिकामनाएँ और शुभाशीष
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