Skip to main content

Drishta KAvi, Mother tongue and Posts from 19 to 22 Feb 2021

 मातृभाषा मराठी

समझ बनाने वाली हिंदी का आभार कि बोलना - लिखना सीख और समझ पाया
आपणी मालवी मौसी की भी जय जय
चच्ची अंग्रेजी जो आजीविका है, का आभार
बाकी रिश्तेदार बघेली, बुंदेलखंडी, निमाड़ी, छत्तीसगढ़ी, हल्की - फुल्की मलयालम, बंगाली, गुजराती का भी आभार - जो संग साथ रहकर ऊर्जा फूंकते रही जीवन में, वक्त बेवक़्त काम आई तो यहाँ तक पहुंच गया
फ्रेंच, उर्दू, अभी तक सीख ना पाने का अफ़सोस है
बाकी सब चंगा सी
***
बड़ा लेखक है एक दिन में 9 से 13 पोस्ट होती है इसकी वाल पर, जिसमें 22 से 28 तक खुद के बंदर की शक्ल वाले फोटो, वीडियो और अपना लिखा होता है, बस इससे पेट नही भरता तो दूसरों को फेसबुकिया कहकर लताड़ता एवं कोसता है अपनी आख़िरी पोस्ट में - और फिर अपनी पोस्ट पर आए कमेंट्स पर जवाबों की बिनाका गीतमाला चलती है - हीहीही, हाहाहा स्टाइल में बोनस के रूप में सबको टैग कर - करके; महिलाओं को जवाब 4 से 5 बार में होता है
मज़ेदार यह है नौकरी संग साथ चल ही रही है, एक से डेढ़ लाख हर माह का फोकट मिल ही रहा है, हाँ हर दिन कम वेतन, घर से दूर रहकर जनता को समर्पित जीवन का ज़िक्र जरूर होता है - ठाकुर जी को जैसे भोग लगाना है - जबकि नौकरी मतलब विशुद्ध मक्कारी की है, जहाँ की खाते है वही छेद करने का ठेका भी लिया है - कुछ तो शारजाह, दुबई में बैठे है दो दशकों से और मुस्लिमों को ही गाली देते है कमबख्त
आप ज़माने भर की सेटिंग करो, अपनी दो कौड़ी की समझ का ढिंढोरा पीटो, अपनी बीबियों और माशूकाओं के फोटो चैंप कर या उनके उल्टी - दस्त यहाँ जबरन पेलकर महान बनो, अपने इष्ट और आकाओं के किस्से, कहानी, कविताएँ या फोटो थोपकर हमें प्रताड़ित करते रहो और हर किसी की वाल पर जाकर एफआईआर करने की नीचतम धमकी देते रहो - वो सब जायज, पर हम कुछ भी लिखें 3 से 4 पोस्ट हुई तो निंदा रस में डूबकर फोन घुमाने लगेंगे और स्क्रीन शॉट या लिंक का रायता बाँटने लगोगे, ऊँची जाति में रहकर फायदे सब लोगे पर यहाँ दलित वंचितों के लिए घड़ियाली आंसू बहाओगे फर्जी जातिवादियों - सब जानते है कि तुम कितने बड़े सवर्णवादी हो
कोई हल या इलाज नही - इस आत्म मुग्धता का, बस हम जैसों को गाली मत दो जो पैदा ही फेसबुक पर बैठने के लिए हुए है
अबै मूर्ख शिरोमणि निकल लें यहाँ से, सालों दो डिग्री पाकर आय ए एस या प्रोफ़ेसर ना बन पाने का फ्रस्ट्रेशन यूँ निकालोगे, सबको देख लूँगा
------------
[ लाइवा कवि की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति अभी प्रूफ रीडिंग को आई है - कोई माई का लाल सुधार दें और जवाब भी लिख दें ]
***
कविराज, यह सही है कि बिदेश से पढ़कर आये हो पर भाई Everest की इस्पेलिंग तो अपने जही भारत के सरकारी पिराथमिक इस्कूल के माड़साब लोग छड़ी मार - मारकर सीखा देते हेंगे - कायकूँ गए इत्ती दूर
और सुनो, अब जे मत केना कि टाइपिंग मिशटेक गलती से हो गिया हेगा, चार साल से तो जेई देख रियाँ हूँ, इत्ती कविताएँ पेलते हो , फोटू चैंपते हो, कब्बी पिरोफाईल बी देख लो भिया - हम सब्कूँ भोत पुण्य मिलेगा सुधार लो तो
एक विलक्षण कवि की प्रोफाइल का फोटू - अब कौन बोलें
***

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही