पिछले माह एक करीबी मित्र के पालतू कुत्ते की मौत हो गई निमोनिया से, मेरे पास भी एक कुत्ता है तो वह दर्द समानुभूति से समझ सकता हूँ, हम मेरे घर अभी मिलने वाले थे पर वे दुखी थे लिहाज़ा आये नही
खैर, अब वे नया कुत्ता लेंगे, उन्हें एक व्यक्ति ने सुझाव दिया जिसके पास आठ दस कुत्ते है , सभी अच्छी और ऊँची नस्ल के है; उस व्यक्ति ने मित्र से कहा कि - "आपको जरूर ऊँची नस्ल के कुत्ते का बच्चा दूँगा, पर आप कुत्तों को कुत्तों की तरह ही पालिये, बहुत ज़्यादा लाड़ - प्यार मत जतलाईये और घर के ड्राइंग रूम, बैडरूम या किचन तक मत ले जाईये, ज़्यादा इंसानियत दिखाने से कुत्ते बिगड़ भी जाते है और फिर वे नाज़ुक होते है और आपका ही नुकसान करते है - सीधी सी बात है - कुत्तों को कुत्तों की तरह ही रखें और पालें, इंसानियत कुत्तों की दुनिया में वर्जित है"
कल लम्बी बात हुई , मैंने सांत्वना प्रकट कर फोन रखा, एक लेब्राडोर मेरे पास है और गली मोहल्ले के भी ढेरों कुत्ते लगभग पालतू समान है, फिर से सोचना पड़ेगा अपनी ही समझ पर
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"तीन चार अँग्रेजी के कवि, दो फ्रांस के आलोचक, दो जर्मनी के लेखक, पाँच इंग्लैंड के नाटककार, दो फलानेडेल्फ़िया के निबंधकार और आठ दस हींदि के सड़ियल किस्म के भोत पुराने टाइप लोगों के नाम भाट्स अप के दें - जरा जल्दी है" - उनका फोन आया
"क्यो क्या हुआ, मिक्स अचार या मिक्स वेज बना रहे हो" - मैंने पूछा
"अरे नही, बो एक गोष्ठी में जाना था, हींदि की प्रगतिशील कबिता और वैशबीक परिदृश्य बिषय पे बीज वक्तव्य देना है, साला जब तक जे सब नाम नई डालो प्रबचन में, तब तक कुछ असर नी पड़ता सोरताओं पे" - लाइवा बोला
"किसने बोला" - मैं हैरान था
"अरे ये आकाशवाणी के उदघोषक, बैंक बाबू, पोस्टमैन, किलर्क, पत्तलकार, हींदि के पीजीटी और साइंस से रिटार्यड माड़साब लोग ये ई सब करके तो बड़े कबी बन जाते हेंगे " - रौ में बकता जा रहा था लाइवा
उसकी जानकारी भयंकर प्रामाणिक थी और मैं चेहरे खोज रहा था
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"चमन में इख़्तिलात-ए-रंग-ओ-बू से बात बनती है,
हम ही हम हैं तो क्या हम हैं, तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो"
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