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Drisht kavi, Khari Khari, Jivananubhav and Uday Prakash 's Donation , Amber's new story - posts of 3 to 7 Feb 2021

 सुबह सुबह फोन आ गया था कविराज का बोले

"फेसबुक पर कुछ लिखा नहीं था तो गुलाब का फूल लेकर घर चला गया अब्बी, वहां दो बच्चे खेल क्रिकेट रहे थे - जब मैंने पूछा कि कवियत्री है तो बच्चों ने आवाज देकर कहा 'पापा देखिए- मम्मी से कोई मिलने दादाजी टाईप आदमी आया है और उनके पापा बाहर निकल कर आए और मुझे डांट दिया - 'बोले चल भाग यहां से चला आया सुबह - सुबह गुलाब लेकर, साला केले के फूल या गोभी या पत्ता गोभी लेकर आता तो कम से कम आज परिवार की सब्जी तो बन जाती, चल अब आ ही गया तो वहाँ बैठ - आंगन में बाहर, एक काम कर 2 किलो मटर रखे हैं, बैठकर छिल दे"
"मतलब हद है, साला ये फेसबुक पर यह कवयित्रियाँ लिखती क्यों नहीं - सिंगल है या मैरिड, कुछ पता ई नई चलता" - बुरी तरह भुनभुना रहा था, गुलाब फेंक गया था मेरे घर, दो हफ्ते पेले का जो किसी मैय्यत से उठा लाया था
वैलेंटाइन सप्ताह बुरी तरह से बर्बाद होने वाला था, बोअनी ही बहुत खराब हुई बापड़े की
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अपनी सरकार ने ग्रेटा के ख़िलाफ़ रिपोर्ट की, उधर हिंदी के ठाकुर और पुरस्कार वापसी गैंग के प्रथम पुरूष ने राम मंदिर को ₹ 5400/- नगद चंदा देने की रसीद लगाई सार्वजनिक रूप से 

सरकार हो या साहित्य - मनोरंजन में कमी हो तो बताओ , अभी थोड़े दिन पहले ही Davinder Kaur Uppal जी ने मुझे याद दिलाया था कि इन्हीं ठाकुर साहब ने सांप्रदायिकता और अड़ियल सरकार के खिलाफ होकर पुरस्कार वापसी की सार्थक पहल की थी

हो सकता है वो मजे ले रहे हैं, क्योकि चंदे की राशि 5400 है - एक अजीब राशि, और रसीद में भी नाम से छेड़छाड़ की गई है

वयोवृद्ध होने पर ध्यान आकर्षित करने के लिए मेरी लिस्ट में कई बड़े बूढ़े उत्पात करते रहते है यहाँ , फालतू की बकवास करते है, कुछ तो इतने बदमाश और चालू है कि मेरे घर में मेरे भतीजों और रिश्तेदारों को भड़काने का काम करते है, 80 को छू रहें है पर इनका आचरण लज्जास्पद है, इसलिए मैं ना पढ़ता हूँ इन्हें और ना प्रतिक्रिया देता हूँ - बस मजे लो और इनका खून जलाते रहो कमबख्त यूँही घुट घुटकर खत्म हो जायेंगे

ठाकुर साहब भी प्रतिबद्ध थे, इधर अपने घर के झगड़ों और भतीजों की गुंडागर्दी को लेकर सरकार और दुनिया को बता कर सहानुभूति बटोरने में लगे थे और स्वार्थ निहायत निजी ज़मीन का था और आज अचानक यह सनसनी फैलाई है - निश्चित ही गम्भीर डिप्रेशन है यह, अरे चंदा देना है या नही - यह आपका व्यक्तिगत मामला है, सार्वजनिक क्यों कर रहे - जबकि सबको आपको रंग ढंग मालूम है, पुराना इतिहास भी ज्ञात है, इन्ही को एक हिंदी के घटिया पीजीटी ने खुदा बना रखा है और इनके चरण रज पीकर सुबह की शुरुवात करता है और हिन्दी का स्वयम्भू भगवान बनता है ससुरा फ्रस्ट्रू कही का 

बहुत साल पहले दो प्रतिष्ठित लेखक देवास आये थे - तो एक नए कहा था "अब नाम वाम बहुत हो गया, अब लड़की चाहिये एकदम जवान लड़की" क्या कीजिये, जब आपके आसपास ही नमूने और नगीने मौजूद हो तो ठाकुर साब बड़ी हस्ती है, मजे लो टेंशन नई लेने का मामू, टेंशन देने का और यही ठाकुर साब कर रहे है

जय हो, मैं दृष्ट कवि लिखता हूँ तो मसाला यूँ मिलता है, यह पोस्ट उनके लिए जो पूछते है कि कच्चा माल कहाँ से मिलता है, मेरी सूची के प्रतिबद्ध मूर्खो और युवा फड़कते कामरेडों सुन लो - घण्टा फर्क नही पड़ रहा तुम्हारी प्रगतिशीलता, जन पक्षधरता, रैली प्रदर्शन, बुकलेट्स, संविधान या कामरेडों की कामशाला में, सॉरी कार्यशाला में ज्ञान देने का - अरे तुम खुद भी बीयर, आंटियों और कमसिन उम्र की लड़कियों के साथ गांव से दिल्ली तक दौड़ते दिखते हो और विदेशी संस्थाओं का माल उड़ाते हो वाम के नाम पर काम 

मेरे एक अनुज, जो मप्र में भाप्रसे में अधिकारी है, हिंदी के प्रेमी है - अक्सर पूछते है कि - "दादा हिंदी का लेखक दोगला क्यों है, घेट्टो में रहता है, जाति वर्ग और अमीरी का पक्षधर है और नाटक जमाने भर के  करता है - खायेगा पियेगा, शादी करेगा, पुरस्कार लेगा या वापस करेगा तो हर बात का भयानक दिखावा करेगा ढेर फोटो चेंपेगा, लम्बा बकवास लिखेगा और आत्म मुग्ध तो इतना कि उसकी घटिया सी पंक्ति, कहानी, पोस्ट या किताब पर कमेंट ना करो तो आत्महत्या कर लेगा या आपका खून कर देगा " 

तिलक, तराजू और तलवार ....

😜😜😜😂😂😂

#खरी_खरी
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तुझसे अब कोई वास्ता तो नहीं है लेकिन,
तेरे हिस्से का वक्त आज भी तन्हा ही गुजर जाता है
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तुझसे अब कोई वास्ता तो नहीं है लेकिन,
तेरे हिस्से का वक्त आज भी तन्हा ही गुजर जाता है
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पिछले माह एक करीबी मित्र के पालतू कुत्ते की मौत हो गई निमोनिया से, मेरे पास भी एक कुत्ता है तो वह दर्द समानुभूति से समझ सकता हूँ, हम मेरे घर अभी मिलने वाले थे पर वे दुखी थे लिहाज़ा आये नही
खैर, अब वे नया कुत्ता लेंगे, उन्हें एक व्यक्ति ने सुझाव दिया जिसके पास आठ दस कुत्ते है , सभी अच्छी और ऊँची नस्ल के है; उस व्यक्ति ने मित्र से कहा कि - "आपको जरूर ऊँची नस्ल के कुत्ते का बच्चा दूँगा, पर आप कुत्तों को कुत्तों की तरह ही पालिये, बहुत ज़्यादा लाड़ - प्यार मत जतलाईये और घर के ड्राइंग रूम, बैडरूम या किचन तक मत ले जाईये, ज़्यादा इंसानियत दिखाने से कुत्ते बिगड़ भी जाते है और फिर वे नाज़ुक होते है और आपका ही नुकसान करते है - सीधी सी बात है - कुत्तों को कुत्तों की तरह ही रखें और पालें, इंसानियत कुत्तों की दुनिया में वर्जित है"
कल लम्बी बात हुई , मैंने सांत्वना प्रकट कर फोन रखा, एक लेब्राडोर मेरे पास है और गली मोहल्ले के भी ढेरों कुत्ते लगभग पालतू समान है, फिर से सोचना पड़ेगा अपनी ही समझ पर
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अम्बर की नई कहानी समालोचन में
मुझे नहीं पता की कहानी कितनी सरल या कठिन होना चाहिए पर यदि किसी कहानी को पढ़ने के लिए मशक्कत करना पड़े, ढ़ेरों सन्दर्भ याद रखना पड़े और खूब सारी घटनाएं सिलसिलेवार याद रखकर एक क्रोनोलॉजी मे विचारधारा, सामान्य ज्ञान की भयानक समझ, सरकार, दुनिया का इतिहास, भाषाओं की पुख्ता समझ , वास्तु और अखबारों की न्यूज को संयोजित कर दिल दिमाग़ पर ज़ोर देते हुए कुछ पढ़ना पड़े वो भी रंजकता के नाम पर तो यह सिर्फ एक तरह का बुद्धि विलास ही होगा 

कोरोना और लॉक डाउन ने लेखकों के मन मस्तिष्क पर गहरा असर डाला है - उन्होंने ना मात्र सैंकड़ों लाइव किये बल्कि शायद पढ़ा भी बहुत और इस बहुत में सब कुछ आ गया क्योंकि विकल्प और चुनने की आज़ादी नही थी 

Ammber Pandey की समालोचन में आई आज की कहानी " अस्मिता भवन "- ना मात्र क्लिष्ट है बल्कि आम पाठक को बहुत सारा स्वाध्याय करने की मांग करती है और ज़ाहिर है हिन्दी का पाठक ना इतना बौद्धिक है और ना स्वाध्याय करेगा तो फिर सवाल यह है कि लेखक ने क्यों इस तरह की कहानी लिखी या समालोचन ने भी छापी - निश्चित रूप से यह कहानी और अम्बर की लगभग पिछली सभी कहानियाँ एक विशेष वर्ग के पाठकों जिसे आप इलीट कह लें या हिन्दी के प्राध्यापक या रज़ा फाउंडेशन जैसे संगठन से जुड़े लेखक गैंग या अभिजात्य वर्ग को विशेष लक्ष्य करके लिखी गई है इसलिये ना वो आम जनमानस में चर्चा का बिंदु बन पाई और ना कही बहुत चर्चा में रही , मुझे लगता है और गम्भीरता से कहने में गुरेज़ भी नही कि हिन्दी की प्रचलित पत्रिकाएँ या अखबार इन कहानियों को प्रकाशित ना भी करें 

अम्बर की मेधा और लेखनी पर शक नही पर जिस तरह का बौद्धिक आतंक और देशी विदेशी सन्दर्भ देकर वो अपनी बुद्धिमत्ता का लोहा मनवाना चाहते है और सामान्य पाठक को डराते है वह मेरे लिए चिंता का विषय है 

उनके पाठकों ने ही सम्भवतः अम्बर को इस तरह का आतंक पैदा करने के लिए प्रशिक्षित किया है - यह कहानी बेहद जटिल राजनीति, दक्षिण पंथी सरकार, साहित्य, विवि के प्राध्यापकों, उनके उबाऊ और सन्दर्भहीन विषयों, व्याख्यानों की पोल ही नही खोलती बल्कि सरकार का जे एन यू से लेकर बुद्धिजीवी एक्टिविस्ट्स का जमीनी आंदोलन, गिरफ़्तारी और भारतीय संविधान के बरक्स स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की पोल भी खोलती है - इस कहानी में भारतीय पतनशील राजनीति के आलोक में विवि के विभिन्न विदेशी भाषा शिक्षण संस्थानों और विभागों  की दास्ताँ है जो रोचक होने के साथ भाषा बनाम जाति, संस्कृति बनाम राजनीति की पुरज़ोर तरीके से पैरवी भी करती है और पोलपट्टी भी खोलती है ; 
नए संसद भवन के मुद्दों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ताज़ा टिप्पणी और इसका कहानी में होना एक सुखद संयोग ही कहा जायेगा, लेखक दृष्टा होता है - यह कहना अतिशयोक्ति नही होगा 

अम्बर असल में अब वर्ग विशेष के लेखक है  और उनके लिए बहुत मुश्किल है कि वे उस सरज़मीन पर आये जहाँ अभी भी साहित्य सिर्फ पढ़ने के लिए पढ़ा जाता है , यह मेरी मांग नही कि वे सरल और सन्दर्भहीन लिखें पर यह उम्मीद ना करें कि मुझ जैसे अपढ़, कुपढ़ या अनपढ़ उन्हें पढ़कर टिप्पणी करें या सार्थक लिखें उनके रचना संसार के बारे में

असल में मैं पिछली दो तीन कहानियों को पोस्ट कोविड युग में रचे साहित्य के परिप्रेक्ष्य  में देखता हूँ और नितांत कठिन समय मे से गुजरते हुए, मौतों के तांडव, डिप्रेशन और फ्रस्ट्रेटेड बिंबों के सम्मुख अपने आपको इस तरह के भारी भरकम साहित्य के पाठक होने से इंकार भी करता हूँ और खुद को मुआफ़ भी कर देता हूँ कि मेरे लिए Struggle for Existence and Survival of the Fittest बड़े मुद्दे है बजाय लाइव देखने, बौद्धिक जुगाली और समझने के 

बहरहाल, अम्बर को हार्दिक बधाई और मंगल कामनाएं कि वो लेखन के सर्वोच्च मक़ाम पर पहुंचे और Arun Dev जी को भी बधाई कि वे समालोचन पर नित्य नए प्रयोग नवाचार करते है और करते रहें, दस साल की यात्रा के बाद दूसरे दशक में जाहिर है समालोचन की अपनी समझ और दृष्टि विकसित हुई है 

सबकी जै जै 8 दिसंबर 2020 
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गड्डी में पिट्रोल खत्म हो गिया हेगा
मैं के रियाँ था " अरे मोई जी, दो चार दिन में पिट्रोल का भाव 0.33, 0.57, 0.99 पैसा या एकाध रुपया कम कर रिये तो बता दो तब तक पैदल चल लूँगा और नी तो फेर डलवाउँ किसी से ऋण लेकर
बोलो, कोई इस्पान्सर हेगा क्या
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"तीन चार अँग्रेजी के कवि, दो फ्रांस के आलोचक, दो जर्मनी के लेखक, पाँच इंग्लैंड के नाटककार, दो फलानेडेल्फ़िया के निबंधकार और आठ दस हींदि के सड़ियल किस्म के भोत पुराने टाइप लोगों के नाम भाट्स अप के दें - जरा जल्दी है" - उनका फोन आया
"क्यो क्या हुआ, मिक्स अचार या मिक्स वेज बना रहे हो" - मैंने पूछा
"अरे नही, बो एक गोष्ठी में जाना था, हींदि की प्रगतिशील कबिता और वैशबीक परिदृश्य बिषय पे बीज वक्तव्य देना है, साला जब तक जे सब नाम नई डालो प्रबचन में, तब तक कुछ असर नी पड़ता सोरताओं पे" - लाइवा बोला
"किसने बोला" - मैं हैरान था
"अरे ये आकाशवाणी के उदघोषक, बैंक बाबू, पोस्टमैन, किलर्क, पत्तलकार, हींदि के पीजीटी और साइंस से रिटार्यड माड़साब लोग ये ई सब करके तो बड़े कबी बन जाते हेंगे " - रौ में बकता जा रहा था लाइवा
उसकी जानकारी भयंकर प्रामाणिक थी और मैं चेहरे खोज रहा था

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