Skip to main content

#सांप_के_सिर_पर_पांव Posts of Sept III week 2019



1
किसी प्राइवेट स्कूल में बिल्कुल छोटे बच्चों को सुसु करवाने से लेकर के ख ग घ को पढ़ाने वाली कोई कम अक्ल वाली महिला - जो प्रोफेसर से नीचे ना आंके खुद को, यदि किसी थर्ड क्लास सरकारी कर्मचारी के साथ ब्याह दी जाए और वह किसी जाहिल की कुसंगति में लिखने पढ़ने लगे तो फेसबुक जैसे माध्यम उसे लेखिका बनाकर ही छोड़ते है और ये कुसंगत के यार दोस्त जो विशुद्ध मूर्ख होते है उसे चने के झाड़ पर चढ़ा - चढ़ा के एक दिन साहित्यकार घोषित कर देते हैं और फिर वह महिला घटिया किस्म का साहित्य रचने लगती है और नकचढ़ी बनकर मठाधीश बनने का जतन करती है
2
हर शाख पे लोमड़ियां बैठी है अंजामे साहित्य क्या होगा
लेखिका को सुंदर साड़ी पहनना जरूरी है, एक अपराध बोध होना जरुरी है कॉलेज में ना पढ़ा पाने का - हिंदी या अंग्रेज़ी भाषा
कोई ध्यान नही देता तो घटिया मजाक का पहाड़ बनाकर जमाने की सहानुभूति बटोरना जरूरी है - टसुए बहाना और फिर कुसंगति के दोस्त आयेंगे आँसू पोछने

मोदी, शिवराज या योगी की भक्तन बनकर हिंदी के हमदर्दों का प्यार बटोरना जरूरी है
दो कौड़ी के कहानी संकलन और अपने रुपयों से उपन्यास छपवाकर फ्री में बांटना - वो भी गली गली द्वारे द्वारे बांटना भी जरूरी है ताकि मुकम्मल पहचान बनें
3
फिर उस लेखिका ने अपनी माहेश्वरी साड़ी घर आई महिला लेखिकाओं की गैंग को दिखाते हुए बोला "आपको पता है कार्ल मार्क्स, लेनिन का ससुर था और कालिगुला 'मार्स' का बेटा था जिसकी शादी स्तालिन के बेटी से हुई थी - इस तरह से फ्रांस में बहुत साहित्य रचा गया और उसका असर यह हुआ कि भारत में महात्मा गांधी ने आजादी आंदोलन शुरू किया जो भारत के पहले मार्क्सवादी कम्युनिस्ट थे
इतिहास और गणितीय आंकड़ों के बोझ से ग्रस्त ज्ञान के भयानक दस्त लगे थे इस बापड़ी को
4
शहर में घास नही मिलती यह बात सिर्फ उन्हें ही समझ आती है जो अक्सर हर तरफ, हर घड़ी घास देखने, भोगने के आदी हो जाते है लाज़िम है कि गधों की यह बिरादरी अडोस पड़ोस के कूचा घरों में जाकर आस घास भकोस आती है
अडोस पड़ोस वाले भी खुश कि "उल्लू बनाया चरखा चलाया" की तर्ज पर कोई मुर्गा या बकरी खुद हलाल होने चला आया, ताली पीटो, कट चाय और जी भर पेला पेली करो, विष वमन कर - विष वमन कर और ये जीवन समर्पण की इस्टाइल में धो डालो ससुरों को इत्ता कि खुजाल मिट जायें
कवि, कवियत्री हो इस बिरादराना में शामिल - तो बात ही क्या फिर - नकचढ़ी, घोर बगदादी बकलोली करने चली जाएंगी क्योकि घास को मालूम नही कि गधे और गधियों के भी पर सुर्खाब के हो जाते है कविता,कहानी, उपन्यास लिख - पढ़कर - ऊपर से कोई ना छापे फेसबुक पर आशिक दीवाने तो रो धोकर मातम पुर्सी कर ही जायेंगे लाईक और कमेंट्स की
5
कुछ कवि और कहानीकार और आलोचक और उपन्यासकार और समालोचक और टिप्पणीकार और सम्पादक इतने भयानक वाले महान ईश्वर होते हैं कि वे हर गोष्ठी में, हर चर्चा में, हर बहस में, हर जगह, हर कस्बे, हर पत्रिका, हर अखबार, हर शहर, हर राजधानी और हर शोक पत्र पर भी मौजूद होते हैं
हर पुरस्कार में भी इनकी भोली शक्ल दिख जाती है जैसे हर फेसबुकिया महिला की पोस्ट पर रात 3 बजे तक किये इनके कमेंट्स

ये बिल्कुल गोबर है जो हर कहीं चिपक सकता है जिसकी संझा भी बनेगी और कंडे - बाटी सब सिकेगा, खाद बीज में भी काम आएगा, बाद में बदबू आने पर घूरे की शोभा भी बढ़ा देंगे


{ ये हैश टैग किसी विशेष को किसी पोस्ट और कमेंट के संदर्भ में है सामान्य नही, महिला मित्र दिल पर ना लें }

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही