Skip to main content

डॉक्टर लाखन सिंह मरा नही करते 8 Sept 2019

डॉक्टर लाखन सिंह मरा नही करते
◆◆◆

आज ही अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस है और आज ही साथी डाक्टर लाखन सिंह , बिलासपुर की मृत्यु की सूचना मिली है Himanshu Kumar जी से
सन 1990 की बात थी - दुनियाभर में अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता वर्ष मनाया जा रहा था देशभर के समाजवादी लोग, एनजीओ के लोग और विभिन्न शैक्षिक संस्थाओं के लोग साक्षरता मिशन से जुड़ रहे थे - यह वही वर्ष था जब प्रोफेसर स्वर्गीय यशपाल ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष के पद पर रहते हुए साक्षरता मिशन भी जॉइन किया था और आव्हान किया था कि एक वर्ष के लिये स्कूल कॉलेज और विश्व विद्यालय बन्द कर दो , पहली बार देश में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की स्थापना की गई थी और डॉक्टर लक्ष्मीधर मिश्र उसके पहले निदेशक बनाए गए थे
मध्यप्रदेश में हम लोग एकलव्य और भारत ज्ञान विज्ञान समिति के माध्यम से तत्कालीन मप्र के 45 जिलों में साक्षरता का काम अभियान के रूप में आरंभ कर रहे थे, डॉक्टर संतोष चौबे, डॉ विनोद रायना, अमिता शर्मा, स्व आर गोपाल कृष्णन (आय ए एस) आदि जैसे लोग इस मिशन की अगुवाई कर रहे थे और जिलों में जिला साक्षरता समितियाँ बनाई गई थी देवास जिले का जिला संयोजक मैं था , देश भर के जत्थों के साथ मप्र भर में भी जत्थे निकलें, नुक्कड़ नाटक से लेकर सायकिल यात्राएं और इतने काम हम लोगों ने किए कि आज सोचकर ही कंपकंपी आ जाती है और हिम्मत भी नही कि वो सब सोच भी सकें
राज्य स्तर पर पहले डॉक्टर विनोद रैना, फिर संतोष चौबे और बाद में मप्र खादी संघ से आये खादी संघ के वरिष्ठ अधिकारी डॉक्टर लाखन सिंह ने राज्य संयोजक का दायित्व निभाया था, मुंगेली नाका, बिलासपुर, छग - बस इतना ही पता लाखन सिंह का था, लगभग 5 फीट की ऊंचाई, दुबला - पतला आदमी, तीखी और बुलंद आवाज़ और दृढ़ इरादों वाला हमेंशा हंसता रहता श्वेत दंत पंक्तियों की उज्ज्वल मुस्कान का यह छत्तीसगढ़िया जल्दी ही हम सबका साथी हो गया - लाखन सिंह ने बहुत काम किया, हमेशा खादी का कुर्ता पजामा, जैकेट पहनकर मुस्कुराते हुए काम करते थे - हम सब के साथी और साथ रहकर काम करने वाला यह शख्स गहरे सामाजिक सरोकार रखता था लंबे समय तक लाखन सिंह से दोस्ती बनी रही बीच में वे गायब थे पर इधर फिर गत 5 - 6 वर्षों से सक्रिय थे और मैं लगातार मिलता रहा सुकमा या भिलाई, दुर्ग, नांदगांव या दूर चाम्पा जांजगीर में या गरियाबंद या कही भोपाल में
छत्तीसगढ़ विभाजन के बाद भी हम लोग मिलते जुलते रहे और ज्ञान विज्ञान समिति के माध्यम से अनेक राज्य स्तरीय कार्यक्रमों में हमारा मेलजोल होता रहा, पिछले दिनों तक मैं जब भी छत्तीसगढ़ जाता लाखन सिंह से मिलकर आता था , बहुत ही सरल और सहज स्वभाव से थे कभी रायपुर, कभी बिलासपुर, कभी अंबिकापुर, कभी विश्रामपुर, दंतेवाड़ा या जगदलपुर में मिल जाते और मुझे आश्चर्य होता कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ दुबली पतली काया वाला यह आदमी कितना काम करता है
इलीना और बिनायक सेन जब भाटापारा में थे तो मैं जाता था " नवा अँजोर " साक्षरता के मॉड्यूल हमने मिलकर बनाये थे, छत्तीसगढ़ी में तब भी लाखनसिंह जी से मिलता था, बाद में छग के लिए भाषा, पाठ्यक्रम और मॉड्यूल के लिए हम लोगों ने बहुत काम किया था , रायपुर, बिलासपुर में हुए राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन, जन विज्ञान के कार्यक्रम ऐतिहासिक रहें है, होलकर कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉक्टर बीके निलोसे जी तब ज्ञान विज्ञान समिति के राज्याध्यक्ष थे - यह सब एक इतिहास बन गया है
मप्र ज्ञान विज्ञान समिति में अनूप रंजन पांडेय, राजकमल नायक से लेकर चुन्नीलाल और न जाने किन-किन लोगों को साक्षरता आंदोलन में खींच कर लाए थे तूहीन देव भी उनमें से एक थे, छत्तीसगढ़ अलग होने के बाद भी रायपुर के राज्य संसाधन केंद्र (प्रौढ़ शिक्षा) से जुड़े रहे और कई कार्यक्रमों में मुझे बुलाया , इन दिनों में वे छत्तीसगढ़ में पीयूसीएल का काम देख रहे थे और पिछली सरकार से जमकर कई मोर्चों पर लड़े थे, नई सरकार आने के बाद खुश नहीं थे और उनका कहना था कि आदिवासियों की हालत अभी भी वैसी ही है - जन अधिकार और नक्सलवाद के बीच आदिवासी पीस रहे हैं और वह लगातार मोर्चा ले रहे थे
आज उनका दुखद समाचार मिला तो बहुत बेचैन हो गया हूं लग ही नहीं रहा कि डॉक्टर लाखन सिंह हमारे बीच नहीं है , स्वर्गीय डॉक्टर लखन सिंह को सौ - सौ सलाम जोहार, प्यार और हार्दिक श्रद्धांजलि ऐसे प्यारे और प्रतिबद्ध लोग बहुत कम हुए हैं जो लंबे समय तक याद रखे जाते हैं और उनका काम हमेशा होता है - चाहे कितने भी वीभत्स तरीके से इतिहास को लिखा जाए विनोद रायना, लाखन सिंह , अजय खरे जैसे लोग हमेशा अमर रहते हैं - उनका काम बोलता है और वह कभी नहीं मरते
अभी पिछले हफ्ते अरुण त्यागी साथ छोड़ गए, आज लाखन सिंह जी - संगी साथी बिछड़ रहें हैं, मौत का एक दिन मुअय्यन है ग़ालिब - नींद क्यों आती नही , डर नही लगता पर अकेले रह जाने का गम ज़ियादा सालता है कि मैदान ए जंग में अब लड़ाई लड़ने को हम अकेले होते जा रहें हैं
नमन , और श्रद्धा सुमन
Image may contain: Shyam Vinchurkar, smiling, standing

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही