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10 सितंबर Post of 11 Sept 2019

10 सितंबर
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कमरा पूरा अस्त व्यस्त था - किताबों का अंबार लगा था पत्रिकाएं खुली पड़ी थी, कुछ कागज बिखरे पड़े थे , टूटे हुए पेन, जमीन पर ढुलकी हुई स्याही, खुला हुआ लैपटॉप, रेडियो , लेपटॉप का टूटा हुआ बेग, मोबाइल के चार्जर, यूएसबी, एक स्विच पर लटक रहा मोबाइल , फ्यूज बल्ब, धूल खाती ट्यूबलाईट्स, हेडफोन जो बुरी तरह उलझ गया था, बिस्तर पर अखबारों के ढेर थे , चादरे कहां छुप गई थी - मालूम नहीं पड़ रहा था
तकिए की खोल में रोटी के टुकड़े और प्लास्टिक के बर्तन में पड़ी दाल , टमाटर , प्याज़ और खीरा के टुकड़े रोटी के साथ सलाद होने का इतिहास बता रहे थे, समझ नहीं आ रहा था कि यह कमरा है या किसी कबाड़ी का ठेला - परंतु जो भी था कमरा ही था , शराब की बोतलें इतनी थी कि उन्हें बेचकर इस मंदी में एक देशी अध्दा तो आ ही सकता था , पर अब मन उचट गया था शराब से भी लिहाज़ा उसे अब ग्लानि होती थी
दीवार से सटकर बैठा हुआ वह शख्स ऊपर से टूटी हुई छत को देख रहा था जहां से लगातार तीन दिन से पानी टपक रहा था और उसके ठीक नीचे पानी का सैलाब था जो पूरे कमरे को गीला किए हुए था, उसका पैंट भी गीला होकर अब बदबू मार रहा था , पुट्ठों पर खुजली मच रही थी, कंजी लगी दीवारों से सटा होने के कारण पीठ भी भींज गई थी, लाल ददौडे उभर आये थे, दोनो जांघों के बीच लाल चकत्ते निकलें थे और पांव के पंजों में पानी के कारण लाल दाग हो रहे थे ,अपने दोनों हाथों की उंगलियों को हथियार बनाकर वह इस मीठी खुजली को खुजाकर तीन दिन से संतुष्ट कर रहा था और आंखों में एक वहशी पन उभर आया था उसकी
समझ नहीं आ रहा था कि इस पानी को कैसे बाहर निकाला जाए क्योंकि निकासी का कोई द्वार नहीं था ठीक वैसे जैसे फैली हुई देह पर छिद्र तो कई थे परंतु अंत में आत्मा कहां से निकलेगी - उसे पता नहीं था, कल ही वह दिन गुजरा है जब दुनिया भर के लोग एक दूसरे को सांत्वना बांट रहे थे और कह रहे थे कि अपने अवसाद और तनाव में मुझे फोन कर लेना , मुझे कह देना कहने से जी हल्का हो जाता है, बोल लेने से मन का घाव भर जाता है, सब कुछ साफ-साफ कह देने से सब कुछ ठीक हो जाता है
उसने भी कुछ ऐसे ही संदेश अपने मोबाइल पर पढ़े थे और उसके बाद जब मोबाइल की बैटरी खत्म हुई तो उसे जरूरत महसूस नहीं हुई कि उसे फिर से चार्ज पर लगाया जाए - परंतु अचानक उसे याद आया कि बहुत साल पहले उसके पिता और फिर बाद में थोड़े साल पहले मां गुजर गई थी, कभी-कभी उसे लगता था कि अंधेरे में आकर वे दोनों उससे बात करना चाहते हैं मोबाइल पर कैमरे के सामने, जी हां ठीक समझ रहे हैं आप - फ्रंट कैमरा के पास में जब नीले रंग का एक बहुत बारीक सा मद्धम नीली रोशनी वाला सेंसर का बल्ब रात अंधेरे में जलता है तो उसे लगता है कि उसके पिता बात कर रहे हैं , बीच-बीच में जब बैटरी कम होने के मैसेज आते है कि 25% बैटरी बची है तो उसे लगता है कि उसकी मां उसे कह रही है कि जीवन का इतना हिस्सा निकल चुका है , अब चार्ज कर लो - अपना जीवन संवार लो और कुछ आगे बढ़ो परंतु उससे कुछ समझ नहीं आता उसे लगता है जो कुछ होना था वह हो चुका है, जो कुछ उसके पास है वह खत्म हो चुका है , उसके पैदा होने का मकसद यही तक था , उसने अपना सर्वस्व देकर अपना कर्ज संसार के प्रति चुका दिया है और अब जो वह जी रहा है वह महज एक अनवरत सी प्रतीक्षा है मौत के आगत की
वह धीमे से उठा उसने धीमे से उस डिब्बे को ढूँढा जिसमे माचिस रखी थी सौभाग्य से उसके बहुत पास रखा था वह डिब्बा, भीगी हुई अगरबत्तियों को बमुश्किल जलाया और एक खीरे के टुकड़े में खोंस दिया और फिर बेचैनी से आलमारी के टूटे दरवाज़े को आहिस्ता से पकड़कर रखा और दूसरे हाथ से एक कपड़े की थैली निकाली जिसमे टेलीफोन बीड़ी का आधा बिण्डल पड़ा था जो उसके दोस्त ने उसे दिलवाया था जब वो उसके घर अरसा पहले आया था, इन दिनों वह बहुत बड़ा आदमी हो गया है उसकी कहानियों पर दो फिल्में बन गई है - काँपते हाथों से बीड़ी सुलगाई स्वाद तो नही था पर दोस्ती की आंच बाकी थी सो कमरा बीड़ी और अगरबत्ती के धुँए से महक रहा था उसने एक बार अपने कमरे को देखा, उन किताबों को देखा जो उसने पेट काटकर खरीदी थी, बरसों फ़टे कपड़े और दो जोड़ी स्लीपर में निकाल दी ज़िंदगी यह कहते हुए कि पुराने कपड़े पहनो नई किताबें खरीदो पर आज यह जाला भी टूट गया है भ्रम का
बाहर बरसात के बाद की धुंध थी, ना कोई अपना नज़र आ रहा था ना कोई दोस्त , बूंदों का शोर था, चुभती हुई हवा और आसमान का साया भी सर से उठ गया था, पाँव रखने को जमीन बची नही थी - उसकी आवाज भी कही जा नही रही थी, अचानक उसने निर्णय लिया और वह जुट गया अपनी यात्रा की तैयारी में उसे खुद अपने को विदाई देना थी आज
एक ढेर किताबों का लगाया उसने बीचों बीच, उसे सब याद आ रहा था और वह हाथ में कोहनी से पंजों के बीच प्लास्टिक की सुतली को डबल करने की प्रक्रिया में साक्षी भाव से जुटा था - एक बार छत की गर्डर को देखा फिर गणितीय ज्ञान से अनुमान नामक मूल्य का प्रयोग किया सुतली का फंदा उस पार से निकाला और फिर तसल्ली से किताबों पर खड़ा हुआ , जेब से बीड़ी निकाली एक और - सुलगाई और जोर से तीन बार चिल्लाया 10 सितंबर
मुक्तिबोध को याद किया उसने जिसका जन्मदिन था और ताउम्र घुटता रहा वह भी ऐसी ही वीरानियों में, अँधेरों में "अपना सब वर्तमान, भूत भविष्य स्वाहा कर
पृथ्वी-रहित, नभ रहित होकर मैं
वीरान जलती हुई अकेली धड़कन"

और अंत में मजबूत इरादा करके दोनों हाथों से प्लास्टिक की सुतली खींच ही दी, झूलकर लटक गया था चेहरा, वह फिर भी मुस्कुराया मानो कह रहा हो - "अरे , मर गए तुम और ज़िंदा रह गया देश "
[ तटस्थ ]

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