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Posts of II and III Week of Sept Bhopal Accident of 11 youths in Ganesh Visarjan

कुठियाला हो तो कोई विवि तीन करोड़ श्रेष्ठ विवि की लिस्ट में नही आएगा कभी
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माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल, का कुलपतित कुठियाला न पत्रकारिता पढ़ा था ना 20 साल का अनुभव था, न कभी उसने कुछ पढ़ाया फिर भी कुलपति बन गया इतना घोर फर्जीवाड़ा जिस सरकार ने किया हो वह सरकार उम्मीद करती है कि भारत के विश्वविद्यालय दुनिया के श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में से एक होंगे
आप सोचिए कि शिवराज सरकार ने सारे नियमों को ताक पर रखकर इसकी नियुक्ति की - जिस आदमी ने अपने चेंबर में शराब का बार बना रखा हो और अनाप-शनाप खर्च किए हो, स्टडी सेंटर के नाम पर बंदरबांट की हो और अयोग्य और घोर अपढ़ व्यक्तियों को नियुक्त किया हो उस आदमी का क्या किया जाना चाहिए
अपने सरकारी दौरों में शराब पीने के विवि फण्ड से भुगतान किये, फिश एक्वेरियम घर ले गया - कितना नीच और घटिया होगा ये - क्या इनका शिक्षाविद यही है - जगसिरमौर बनाने की संस्कृति , इसलिए देशभर में "अम्ब विमल मति दें" जैसी पवित्र प्रार्थना गाते है कि इस तरह के लोगों से बल मिलेगा सारे कथित पापों को
अफसोस यह है कि बहुत सारे मित्र वहाँ प्राध्यापक है पर वे भी चुप रहें और कुछ ना बोलें, शर्म आना चाहिए इन लोगों को अपने को प्राध्यापक कहते जो 15 वर्ष तक एक निहायत नीच और पतित आदमी का साथ देते रहें - यहां फेसबुक पर ज्ञान, जनसरोकार और अपने छात्रों के साथ खुद को स्वयंभू आदर्श बनाते नही अघाते और एक नीच व्यक्ति के पापों में सहभागी बनकर सद्कार्य करते रहें - यह ज्यादा पीड़ादायी है, आप लोग ना शिक्षक हो ना पत्रकारिता के जानकार - आप भी उतने ही भ्रष्ट और पतित हो जितना यह कुठियाला है , किसी को टैग नही कर रहा पर आप लोगों की इज्जत मेरी नज़र में रही नही और शर्म आती है कि रिटायर्ड होकर , सारी सुविधाएं भकोसकर नर्मदा आंदोलन या मानवता के गुणगान गाते हुए आप लोग यहां नैतिकता की मूरत बनें हुए है या अभी भी रीढ़हीन होकर चुप है - अफसोस कि आपके ही छात्र ये न्यूज लिखकर आपको आईना भी दिखा रहें है और आपका झूठा सम्मान भी कर रहें है - छि और थू - अपराध करने वालों के साथ शामिल थे आप भी
पिछले 15 सालों में बहुत ही कम ढंग के प्रोडक्ट इस विश्वविद्यालय से निकले हैं - बाकी तो बंदरों की जमात है अफसोस कि माखनलाल चतुर्वेदी के नाम पर बना राष्ट्रीय विश्वविद्यालय आज अपने कलंक धो नहीं पा रहा
इस तरह के लोगों को या तो फांसी हो या सड़क पर जनता के हवाले छोड़ दिया जाये ताकि फिर कोई कुलपति इतनी हिम्मत ना करें
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प्रोफेसर जेड ए सैय्यद जो हमारे मित्र सैयद सादिक अली और भाई जाकिर के पिताजी थे, का आज दुखद निधन हो गया
सैय्यद साहब हमारे समय भूगोल विभाग के अध्यक्ष थे के पी कॉलेज में और बहुत ही सहज व्यक्ति थे - पिछले वर्ष जब मैंने लॉ महाविद्यालय में प्रवेश लिया तो मुझे तत्कालीन प्राचार्य डॉक्टर रहमान ने बताया कि सैय्यद साहब भी लॉ पढ़ रहे हैं, 85 वर्ष की उम्र में वे महाविद्यालय में आते थे कभी-कभी और कक्षाएं अटेंड करते थे , कॉलेज में बहुत ही युवा प्राध्यापक पढ़ाते थे और उनसे वे छात्र के रूप में सीखते थे, ये उनका लॉ का अंतिम वर्ष था
प्रोफेसर सैय्यद अपने समय में भूगोल के विद्वान पर रहे और लंबे समय तक उन्होंने अकादमिक शोध और भूगोल के क्षेत्र में बड़े काम किए, उनका जाना एक बड़ी क्षति है
सादिक और जाकिर तथा समस्त परिवार के लिए प्रार्थनाएँ , प्रोफेसर सैय्यद को हार्दिक श्रद्धांजलि
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दुनिया के सबसे ज़्यादा युवा वाले देश के मूर्ख और कठपुतली बने 55 % युवा
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भोपाल में गणेश विसर्जन के दौरान 11 युवाओं की मौत और फिर भी जुलूस निकले ढोल और डीजे के साथ , देशभर के आंकड़े 40 पार है - बताईये कोई तार्किकता है इन मौतों की
सरकार ने हमारे मेहनत के रुपयों को फिर ख़ैरात के रूप में बांटा 11 - 11 लाख का भंडारा - क्यों इस पर कोई सवाल नही कर रहा , मेरी बला से 1000 मरें जब उन्होंने धर्म की अफीम चाट रखी है, अपनी पारिवारिक या व्यक्तिगत जिम्मेदारी नही समझ कर मन्दिर मस्जिद के इशारों पर चलने वालों को पब्लिक ट्रस्ट से एक रुपया नही देना चाहिए, कमलनाथ सरकार की यह नीति बहुत ही घातक और घटिया है - जो लोग एक रुपया ना कमाकर चंदे के रुपयों से उत्सवों के नाम धींगा मस्ती और डीजे पर अश्लील नाच गाना करके समाज का जीवन नरक बना रहे है उन्हें और उनके परिवारों को सज़ा दी जाना चाहिए
क्या ये पढ़े लिखें गंवार सुधरेंगे - कभी नही, क्योकि गलती हमारी है सरकारों की है , 73 वर्षों में हमने उन्हें रोजगार देने के बजाय हमने धर्म की अफीम चटाई है
कांवड़िये हो या राम मन्दिर के झंडा उठाउँ या गणेश पंडाल के ये युवा तुर्क या या हुसैन कहकर सड़कों पर खून बहाने वाले युवा सबका दिमाग़ धार्मिक गुरुओं ने खराब कर रखा है
कुछ उपाय जो दिमाग़ में आ रहें है -
● अभी दुर्गा पूजा आने वाली है डीजे ढोल और बैंड वालों को ही कसा जाएं उनके उपकरण और साधन जप्त कर लिए जाएं
● मूर्ति बनाने वालों को ही निगरानी में रखा जाएं, ऊंचाई और आकार के स्पष्ट निर्देश हो एक SOP बनाई जाए
● समाज 11 या 51 रुपये से ज्यादा चंदा ना दें
● नगर निगम बिजली विभाग अपने कर कड़ाई से वसूले जगह और बिजली के
● सुबह और शाम आरती के बाद बिजली काट दी जाएं ताकि शोरगुल हो ही ना
● लाइटिंग से लेकर होर्डिंग, झंडे पताकें लगाने पर कड़ा प्रतिबंध हो
● ये प्रावधान तोड़ने वालों की मूर्ति जब्त कर ली जाए फिर वो मोहर्रम का ताजिया हो या गणेश की मूरत
अभी सड़कों पर जुलूस डीजे का ये हाल है कि गणेश उत्सव, मोहर्रम, डोल ग्यारस, दुर्गाउत्सव, पर्युषण, गुरु पर्व , तेजाजी, गोगादेव, आशाराम का जन्मदिन या क्रिसमस के जुलूस ने ट्राफिक का तो कबाड़ा कर रखा है और अश्लील भौंडे नाच और कानफोड़ू गानों से रात रात भर सो नही पा रहे लोग यह अब बारहों मासों का रोना है
अभी 5 सितंबर को हिंदी के वरिष्ठ कवि डाक्टर ओम प्रभाकर जी के घर गए थे - वो गम्भीर बीमार हो गए है - घर के ठीक पास मन्दिर के भोंपू से उनका जीवन नरक बन गया है , 24 घँटों भोंगे बजते रहते है भागवत, आरती और ना जाने क्या क्या - कई बार मैंने भी अपने यहां की समस्या को लेकर कोतवाली में फोन किया तो जवाब मिला कि बर्दाश्त करिये हम कुछ नही कर सकते
अजान हो या भजन - भारत मे नरक बन गया है जीवन और हमारे युवा जान दे देंगे पर मूर्खता नही छोड़ेंगे , अपना समय और जीवन ऐसे लोगों के बहकावे में आकर बर्बाद कर रहे है जो खुद मूर्खता की हदें पार कर चुके है दो कौड़ी की अक्ल के साथ
अभी दुर्गा उत्सव में 15 - 20 दिन है - क्या कोई प्रशासनिक या सामाजिक पहल हो सकती है
बहुत मन है कि मरने के पहले देशभर के इन 55% युवाओं को अपनी नौकरी, शिक्षा और बेहतर जिंदगी के लिए , परिवार, बूढ़े माँ - बाप और देश के लिए "संसद भवन , रायसीना हिल्स और नार्थ / साउथ ब्लॉक्स" को घेरकर समस्या निवारण तक डटे रहते हुए देखूँ पर यह सम्भव नही लगता इस जन्म में क्योकि हम कुतर्की है बजाय तार्किक होने के
या बन्द कर दो स्कूल कॉलेज, IITs , IIMs , और सब जो इन्हें जहर परोस रहें है
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हम करें राष्ट्र आराधन
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एक ओर चाँद पर चंद्रयान, 104 उपग्रह छोड़ना
दूसरी ओर
न्यूटन, ग्रेविटी, मोर के आंसुओं से बच्चा, महाभारत काल मे इंटरनेट, कर्ण के समान पैदा होने / करने की तकनीक, बत्तख, गाय और ऑक्सीजन - मतलब दुनिया में ना इतने एक्ट्रीम पर रहने वाले मूर्ख ना कोई थे, ना है और ना होंगे
कम से कम चरक या सुश्रुत को ही याद कर लेते, पतंजलि को ही याद कर लेते, पण्डिता रमा बाई को ही याद कर लेते या गार्गी को ही याद कर लेते
गैलीलियो को जो चर्च ने सज़ा दी या ब्रूनो को जलाया या चर्च के आधिपत्य को ना मानने वालों के साथ अमानवीय व्यवहार किया वह कोई गलत नही था - सत्ता जब मूर्ख, उजबक, अपढ़ और अनपढ़ों के हाथ मे होती है तो वे सिर्फ ज्ञान का ही सत्यानाश नही करते बल्कि पूरी पीढ़ियों को बिगाड़ते है
यह सिर्फ इस सरकार की बात नही विप्लव देव या केंद्रीय मंत्री उदाहरण नही बल्कि यह एक श्रृंखलाबद्ध सुनियोजित कार्यक्रम और संगठन कृत दुष्प्रचार का हिस्सा है इसी देश मे हम गोबर गणेशों ने गणेश की मूरत को दूध पिलाया है और वैज्ञानिकता को धता बताई है - याद है उस समय स्व प्रो यशपाल ने कितना लिखा , समझाया था पर हम तो धर्म भीरू और भेड़ है
अभी साढ़े चार साल बाकी है इंतज़ार कीजिये ये महामना क्या क्या परिकल्पनाएँ स्थापित करते है और विलक्षणता की ऊंचाइयों को छूते है - एक ओर दुनिया भर में ज्ञान का डंका बजाने और भीख मांगने हम घूम रहे है दूसरी ओर सामान्य से कम समझ वाले मंत्री जिम्मेदार विभाग लेकर बैठे है
उच्च शिक्षा , ज्ञान, खुलापन, बहस और शोध की संभावनाएं यही निहित है - यकीन मानिए जनाब यह नया अंधा युग है और यहां चीज़े साफ़ तभी दिखेंगी जब हम सब गहन अँधेरे में होंगे
आईए स्वागत करें हम अपना ही , अपने भाल पर उन्नत टीका लगाकर
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मैं के रियाँ था वो भोपाल वाली मेंढकी कूँ भारतीय दण्ड संहिता की धारा 125 में भरण पोषण भत्ता सांसद कोटे से जाएगा क्या या शिवराज जी की पेंशन से या कमलनाथ जी मुख्यमंत्री मेंढकी भरण पोषण योजना सुरु कर रिये हेंगे महिला सशक्तिकरण विभाग से
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पुढच्या वर्षी लवकर या
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'दर्द का रिश्ता' स्मिता पाटिल और सुनील दत्त की अदभुत फ़िल्म थी जिसमे देश प्रेम, चिकित्सा सेवाएं, कैंसर, बोनमेरो, और प्रेम के बीच पूरा महीन रिश्तों का तानाबाना बुना गया था, अंत में सब भला होता है और फ़िल्म आस्था और पारिवारिक मूल्यों के साथ देश प्रेम पर खत्म होती है, इसका एक गाना आजतक प्रचलित है - " मेरे मन मंदिर में तुम भगवान रहे / मेरे दुख से तुम कैसे अनजान रहे "
इस फ़िल्म को पिताजी देखने ले गए थे, अंत में उनकी आंखों में आंसू थे और बहुत भावुक मन से उन्होंने इस फ़िल्म की तारीफ़ की थी, आज यह सब सोच रहा हूँ तो याद आ रहा है सब कुछ
मराठी घरों में गणपति उत्सव एक विशेष उत्सव है जिसके लिए पूरा परिवार, पूरा मोहल्ला और पूरी संस्कृति उत्साहित रहती है - गणपति के आने से पूर्व ढेरों तैयारियां होती है और 10 दिन का यह उत्सव इतनी धूमधाम से मनाया जाता है कि विश्वास नहीं होता गणपति कोई मूर्ति है, कोई देवता है या कोई ऐसी चीज जो 10 दिन बाद खत्म हो जाएगी - गणपति की मूर्ति घर में आने के साथ साथ उन्हें विराजित किया जाता है और उनके साथ परिवार के जरूरी सदस्य के रूप में व्यवहार किया जाता है - जहां उन्हें मीठा और नमकीन का भोग तक लगाया जाता है, वही परिवार के हर सदस्य उनसे अपने मन की बात करते हैं और यह कोशिश करते हैं कि अपनी समस्याएं उनके साथ बांट सके, कह सके और सुन सके
10 दिन के बाद जब गणपति की विदाई होती है तो मन बहुत भारी हो जाता है ऐसा लगता है कि शरीर से - देह से आत्मा निकल कर जा रही है और भावुक मन से सभी बहुत भारी आंखों से उन्हें विदा देते हैं, 10 दिन का हल्ला गुल्ला और मेला ऐसे खत्म होता है जैसे जीवन से सब कुछ समाप्त हो गया - तब लगता है कि बचा क्या है
आज ऐसा ही कुछ हुआ जब मित्र प्रयास और समाधान गौतम ने अपने महाविद्यालय में हम मित्रों को बुलाया और गणपति उत्सव का समापन किया तो बहुत अच्छा लगा - हॉल में भव्य रूप से विराजित किये गए गणपति जी की आरती हुई और फिर एक भंडारा हुआ जहां पर शहर के गणमान्य नागरिक, महाविद्यालय के विद्यार्थी , शिक्षक और पारिवारिक सदस्य उपस्थित थे यह आत्मीय आयोजन इतना भव्य था कि लगा हम सब एकाकार हो गए हैं
देवास शहर में ही अपने साथ पढ़े हुए हम सात आठ मित्र हैं जिसमें से हम चार -छह लोग आज मिल पाए, कुल मिलाकर यह दिन बहुत अच्छा रहा; मन दुखी है गणपति जी की विदाई है - इन 10 दिनों में बहुत कुछ मैंने भी कहा और सुना है और कुछ - कुछ बातें हुई हैं - जिनका जिक्र फिर कभी करूंगा, अभी रुंधे हुए गले से यही कहूंगा कि "गणपति बप्पा मोरया - पुढच्या वर्षी लवकर या"
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