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Showing posts from December, 2018

Posts of 28 Dec Tapan Da, Bahadur's poem and HIndi VV Reader s story

एक विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के एक रीडर महाशय से अभी फोन पर लम्बी बात हुई - सम सामयिक हिंदी के परिदृश्य पर, उसने कहा प्रेमचंद ने "आधा गांव और राग दरबारी" लिखा है, उस बापडे का नाम लिखूंगा तो आज रात ही आत्महत्या कर लेगा "प्रेमचंद गुड़गांव के पास एक मिडिल स्कूल में अध्यापक है और युवा लेखक हैं हंस पत्रिका के संपादक का दायित्व उनके पास अतिरिक्त है बेचारे को दरियागंज दिल्ली आने जाने में बहुत तकलीफ होती है" - यह उसकी लेटेस्ट जानकारी है जय हो जय हो जय हो विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग कितने जड़मति हो गए हैं इससे समझा जा सकता है मैं लटक जाऊं क्या आज की रात हिंदी के नाम पर *** क्योकि प्याज़ के छिलके नही होते ◆◆◆ वर्षान्त पर हिंदी के साहित्यकारों के आत्म मुग्ध विश्लेषण जहां दर्प और घमंड से भरे है वही बेहद थोथे भी और इस नशे में चूर वे जमीन पर पांव नही रख रहें इसी के मद्दे नजर मैंने आज सुबह  # खरी_खरी  लिखा तो मित्र  Bahadur Patel  ने एक तीखी कविता लिखी है आज - जो बहुत कुछ बयान करती है जाहिर है यह सब बेहद पीड़ादायी है, अपनी ही जात बिरादरी, संगी साथी और ...

Letter From Kishore to Friends and Family on successful completion of Aditya's marriage 23 Dec 2018

★★नेह डोर बंधी रहें★★ _____________________ चिरंजीव आदित्य और सौ अश्विनी का विवाह सुख रूप संपन्न हुआ, सभी लोग आए -  आप ने आशीर्वाद दिया, पूरे मन से आप 2 दिन साथ रहे हमारे परिवार के साथ और सारे रस्मों और कार्यक्रमों में हिस्सेदारी की, सारे विवाह संस्कारों को देखा और सराहा । हमारी खुशियों में आपके आने से निश्चित ही चार चांद लगे हैं आपका आशीर्वाद इन दोनों बच्चों के साथ -  साथ हमारे परिवार पर भी रहा - यह हम लोगों के लिए गर्व की बात है। मैं, मेघा और अखिल, साथ ही पूरा धर्माधिकारी परिवार आपके अत्यंत आभारी हैं कि आपने अपने महत्वपूर्ण समय में से 2 दिन हमें दिए और हमारे मांगलिक कार्यों में साथ रहे - आपका यह प्यार और स्नेह हम सब के लिए अमूल्य धरोहर है - हम चाहते हैं कि यह प्रेम, रिश्तो की कोमल डोर, नेह का बंधन हमेशा बना रहे । आभार शब्द बहुत छोटा है परंतु फिर भी हम सब आपके आभारी हैं कि आपने जिस उत्साह और जोश के साथ नव दंपत्ति को प्यार दिया, आशीर्वाद दिया और सबसे महत्वपूर्ण हमें समय दिया इसके लिए हम व्यक्तिगत रूप ...

नए संकल्पों और नई उम्मीदों का जनवरी 27 Dec 2018

06/01/2019 Naiduniya  "खुश है जमाना आज पहली तारीख है"-  यह गाना बचपन की स्मृतियों में कहीं ऐसा दर्ज है कि आज तक भुलाए नहीं भूलता। हर माह की एक तारीख को मां और पिताजी जब घर आते थे तो उनके पर्स या बैग हम छीन लेते थे और उसमें रखी नोटों की चमकदार गड्डी अपने आप खुल जाती थी या पिता सिले हुए पेंट की चोर जेब में से नोटों की चमकदार गड्डी निकलती थी जिसे देख कर हम खुश हो जाते थे। कभी रेवड़ी, कभी गुलाब जामुन, कभी जलेबी, कभी रसभरी और कभी गाजर के हलवे के लिए रुपया निकाल दे देते थे और इसके अलावा हमें हाथ में थमा देते थे एक दो रुपये की चिल्लर कि जाओ मिठाई के अलावा तुम्हारी पसंद की चॉकलेट भी ले आना।  मुझे याद पड़ता है कि वह नोटों की गड्डी रात को खुलती थी और सारे देनदारों का हिसाब माँ और पिता मिलकर बनाते थे और हरेक का रुपया दिया जाता था - चाहे वह दूध वाला हो, प्रेस वाला हो,  मकान मालिक या अखबार वाला और उसके बाद एक लोहे की अलमारी में या किसी संदूक में ताला लगाकर शेष बची नोट की गड्डी सुरक्षित रख दी जाती थी। धीरे धीरे पिता और मां माह के अंत तक उस गड्डी से नोट नि...

विरक्त दुनिया के बारह माह Dec 2018

रात बहुत उजली थी ऐसी कितनी रातें आई, मोमबत्ती जली बुझी, सूरज का प्रचंड ताप सहा, और खूब भीगा बरसात में भी. उस दिसंबर और इस दिसंबर में फर्क सिर्फ इतना है कि उस दिसंबर में प्रचंड उत्साह, जोश, उद्दाम आशाएं सामने थी और आज जब मैं यह दिसंबर खत्म हो रहा है बैठकर मंथन कर रहा हूं कि क्या सच में जीवन को आगे बढ़ाना चाहिए एक जनवरी का होना क्या वास्तव में इतना आवश्यक है ? शैशवावस्था, युवावस्था तक एक जनवरी का कोई खास महत्त्व नहीं था परंतु जैसे परिपक्व होता गया या यूं कहूं कि उम्र कम होती गई - जन्मदिन मनाना हर साल, एक जनवरी देखना अपने आप को रिक्त करना है और खारिज करना है. इन दोनों की प्रक्रियाओं में लगातार टूटता रहा और अपनी ही नज़रों से गिरा बार - बार, डरता रहा, कभी पूरा होगा सफर कहीं कुछ होगा. शिक्षा, सामाजिक क्षेत्र और लेखन पठन पाठन और दोस्ती में जीवन का  समय गुजार दिया, लगा ही नहीं आधा जीवन बीत गया एक साल फिर बीत गया और एक नया साल ठीक सामने आने को है. इस साल में पूरे बारह माह घर रहा हूं अपने – लड़ता झगड़ता दुनिया भर से, इस दौरान बहुत सारे दोस्त दुश्मन बनें और दुश्मन दोस्त भी, बेरोजगार या ठुल्ला ...