एक विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के एक रीडर महाशय से अभी फोन पर लम्बी बात हुई - सम सामयिक हिंदी के परिदृश्य पर, उसने कहा प्रेमचंद ने "आधा गांव और राग दरबारी" लिखा है, उस बापडे का नाम लिखूंगा तो आज रात ही आत्महत्या कर लेगा "प्रेमचंद गुड़गांव के पास एक मिडिल स्कूल में अध्यापक है और युवा लेखक हैं हंस पत्रिका के संपादक का दायित्व उनके पास अतिरिक्त है बेचारे को दरियागंज दिल्ली आने जाने में बहुत तकलीफ होती है" - यह उसकी लेटेस्ट जानकारी है जय हो जय हो जय हो विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग कितने जड़मति हो गए हैं इससे समझा जा सकता है मैं लटक जाऊं क्या आज की रात हिंदी के नाम पर *** क्योकि प्याज़ के छिलके नही होते ◆◆◆ वर्षान्त पर हिंदी के साहित्यकारों के आत्म मुग्ध विश्लेषण जहां दर्प और घमंड से भरे है वही बेहद थोथे भी और इस नशे में चूर वे जमीन पर पांव नही रख रहें इसी के मद्दे नजर मैंने आज सुबह # खरी_खरी लिखा तो मित्र Bahadur Patel ने एक तीखी कविता लिखी है आज - जो बहुत कुछ बयान करती है जाहिर है यह सब बेहद पीड़ादायी है, अपनी ही जात बिरादरी, संगी साथी और ...
The World I See Everyday & What I Think About It...