बड़े दिनों बाद एक शाम खुशनुमा हुई और खूब बातें की, देवास में शायद ही ऐसी कोई शाम बीती हो कभी . असल में अब दिक्कत यह हो गयी है कि कोई फोन करता है तो कहता है कि मिलना है तो काम के अलावा कुछ नहीं कहता - मसलन नौकरी लगवा दो, फलां सुनील भाई से आपकी दोस्ती है तो वहाँ नौकरी का जुगाड़ करवा दो, रिज्यूम भेज देता हूँ, एनजीओ के प्रोजेक्ट्स लिख दो या फंड दिलवा दो, भाई को कही लगवा दो, कुछ उधार मिल जाएगा क्या, वो एक अखबार के लिए कुछ लिखा था उसे ठीक कर दो, अनुवाद करवाना था, एक पार्टी दे दो दारु की, कवितायें लिखी है छपवाना है किसी जगह छपवा दो, या कुछ और अजीब तरह के काम बताकर लोग, तथाकथित दोस्त लोग मिलना चाहते है.
ग्लोबल होती दुनिया में छोटे कस्बों के लोगों के एक्सपोजर बड़े हो गए है जाहिर है उम्मीदें भी बड़ी और माशा अल्लाह ज्यादा ही बड़ी हो गयी है, और मै ठहरा छोटा आदमी और गैर संपर्कों वाला, ना सिफारिश करता हूँ, ना पसंद करता हूँ कि सिफारिश बन जाऊं. लोग दोस्ती रिश्तों को दुहना चाहते है और यदि आप उनके काम के नहीं तो दूध में से मख्खी की तरह से निकाल फेकेंगे और पीठ पीछे ना जाने क्या क्या बात करेंगे साहित्य हो या समाज सेवा पत्रकारिता हो या रिश्तेदारी, बस इसी सब के चलते अब मिलना जुलना कम कर दिया है और सोच रहा हूँ बंद कर दूं फ़ालतू समय बर्बाद करने से अच्छा है कि मुंह ढाक कर सो जाओ थोड़ा आराम कर लो.
इस सबके बीच एक युवा उद्यमी और उत्साही साथी, मित्र के साथ बगैर किसी स्वार्थ के लम्बी बातचीत, गर्मागर्म कॉफ़ी और ऐसे ही लगातार मिलते रहने का वादा लिए जब यह शाम गुज़री तो यकीन ही नहीं हुआ कि ऐसा भी हो सकता है.
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