II AC में आज फंस गया हूँ - उदयपुर से देवास के सफ़र में। एक मारवाड़ी परिवार है जिसके पांच बच्चे है चार लड़कियां और एक लड़का । सबमे एक एक साल का अंतर भी मुश्किल होगा। परिवार की महिला जिद कर रही है कि बच्चे छोटे है बीमार पड़ जायेंगे एसी बंद करवाओ। बाकी सारे लोग हैरान है कि यह क्या पागलपन है जब हमने दो गुना किराया एसी में बैठने का दिया है, सुविधा के लिए दिया है तो फिर ये क्या मूर्खों की तरह से बात कर रही है महिला।
दूसरा परिवार युवा दंपत्ति है जिनकी तीन लड़कियां है बेंगलोर जायेंगे इंदौर होकर । इस परिवार की महिला ने बिजली पंखे बंद कर दिए है क्योकि मेरी लड़कियां छोटी है , अभी लाईट से डर लगता है। मेरा चार्जर भी निकाल दिया कि मोबाईल फट सकता है और टेबलेट से तरंगे निकलती है तो बच्चों पर गलत असर पडेगा।
कमाल यह है कि दोनों पुरुष और दोनों महिलायें सॉफ्ट वेयर इंजिनियर है और घोर पिछड़े और भयानक अन्धविश्वासी। ऊपर से परिवार नियोजन की ना कोई समझ है, ना समानता में यकीन। कुल मिलाकर मेरे कम्पार्टमेंट में छह बर्थ (चार आमने सामने की और दो साईड की) के बीच में हम पांच लोग बड़े और आठ छोटे बच्चे ।
आज क़यामत की रात है , पुरे कोच में आठ बच्चों की चिल्लपों मची है और दोनों इंजिनियर माताएं विशुद्ध चिल्ला चोट कर रही है बच्चों पर और दोनों के पति परमेश्वर सो गए है खर्राटों के साथ उपरी सीट पर। इस घोर वैज्ञानिक युग में ये सब देखकर सर पीटने के दिल करता है।
कितने पिछड़े है हम, सही है अच्छे दिन कौन और कैसे लाएगा।
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